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डॉ. आंबेडकर के घर पर हमला क्यों?

ख़बर है कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के मुंबई स्थित घर ‘राजगृह’ पर तोड़फोड़ की गई है। यह घटना 7 जुलाई की है। जहाँ गमले तो तोड़े ही गए, सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ डाले गए। ‘राजगृह’ को बाबासाहेब ने विशेष रूप से अपनी किताबों के लिए तैयार किया था। यहाँ अपनी निजी लाइब्रेरी में उन्होंने पचास हज़ार के क़रीब किताबें इकट्ठा की थीं। अब वहाँ एक संग्रहालय भी है। सवाल यही है कि ये लोग इन किताबों को हटाकर कौन सी किताबें रखना चाहते हैं?

डॉ. आंबेडकर को हृदयस्थ हुए क़रीब साठ साल हो गये हैं लेकिन ये लोग उनके विचारों से इतने डरे हुए हैं कि उनकी किताबें, गमले, उनके मकान तक को तक ढहा देना चाहते हैं।

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वैसे तो यह ख़बर नेशनल मीडिया पर डिबेट के लिए तय मानकों पर खरी नहीं उतरती क्योंकि नेशनल मीडिया पर डिबेट के लिए मुसलमान, चीन, उत्तर कोरिया, ट्रम्प, इमरान ख़ान, जिहाद, गाय, का होना अनिवार्य रूप से ज़रूरी है। ऊपर से ये कोई विवेकानंद की मूर्ति या उनका आवास तो नहीं है कि इसके आसपास बैठने पर भी, टीवी का एंकर गला फाड़-फाड़ कर अपनी ही जान ले ले।

शायद इसपर स्थानीय अख़बार ही कोई छोटी मोटी-सी ख़बर लिखें, शायद वे लिखें कि किन्हीं शरारती तत्वों ने ‘राजगृह’ को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश की। कुछ अख़बारों के लिए ये लोग शरारती तो कुछ के लिए ये लोग ‘अज्ञात’ हो सकते हैं। लेकिन कोई नहीं कहेगा कि ये मनु की नव पीढ़ियाँ हैं। हमारे लिए ये विचार, ये लोग अज्ञात नहीं हैं, अगर ये ज्ञात नहीं हैं तो फिर कौन ज्ञात हैं? ये विचार तो सदियों पुराना चिर-परिचित है। ये कोई अज्ञात विचारधारा नहीं है। 

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डॉ. आंबेडकर करोड़ों लोगों के लिए भगवान जितने ही नहीं हैं, बल्कि भगवान से अधिक हैं। विशेषकर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए। दलित अस्मिता से जुड़ी गिनी चुनी दो चार धरोहरों में से एक ‘राजगृह’ है। वर्ष भर लाखों की संख्या में आम जनमानस ख़ासकर 14 अप्रैल और 6 दिसम्बर के दिन अपने नेता की यादों से जुड़ने के लिए ‘राजगृह’ पहुँचते हैं। 

राजगृह पर हमला डॉ. आंबेडकर पर हमला है और डॉ. आंबेडकर पर हमला ‘आज़ादी और समानता’ के विचार पर हमला है। आज़ादी और समानता के विचार पर हमला देश के संविधान पर हमला है।

इस देश में दलितों से जुड़ी राष्ट्रीय धरोहरें तक सुरक्षित नहीं हैं, जबकि इनकी सुरक्षा व्यवस्था कितनी चाक-चौबंद होती है, ऊपर से मुम्बई जैसे महानगर में स्थित है तब यह हालत है। गाँव में रहने वाले दलितों की सुरक्षा की स्थिति क्या रहती, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वर्चस्ववादियों को गाँव में सीसीटीवी उखाड़ने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती होगी, न ही वहाँ गार्ड होते हैं और मीडिया का तो अता पता ही नहीं रहता, क्योंकि मीडिया अभी चीन और पाकिस्तान पर व्यस्त है।

सरकार को इस कायरना हरकत पर तुरंत जबाव देना चाहिए अन्यथा यही माना जाएगा कि ये सब उनकी शह में किया जा रहा है।

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श्याम मीरा सिंह

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