रविवार (3 नवंबर) के अख़बारों में एक छोटी सी ख़बर अंदर के पन्नों पर थी और जाहिर है, बहुत महत्वपूर्ण नहीं होगी। पर इससे सरकार के काम करने का तरीका और सरकारी अधिकारियों के पास उपलब्ध प्रचुर क़ानूनी अधिकारों का पता चलता है। कहावत है कि पानी में रहकर मगर से बैर नहीं लिया जाता और कोई कारोबारी क्यों सरकार या आयकर विभाग वालों से बैर लेगा। इसलिए गाड़ी चलती रहती है पर कुछ मामले आपको यह सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि ऐसा क्यों हुआ होगा और क्या यह सही है। इन दिनों देश में मंदी, बेरोज़गारी और घटते जीडीपी की चिन्ता है। ऐसे में ऐसी हर छोटी सूचना का विशेष महत्व है।
ख़बर यह है कि सरकार ने टाटा के छह ट्रस्ट बंद करा दिए, यह साधारण बात नहीं है। ट्रस्ट लोक कल्याण के लिए ही होते हैं। छोटे-मोटे लाला के ट्रस्ट को आप टैक्स बचाने का तरीका मान सकते हैं पर चलते वे भी क़ानून के तहत ही हैं और अगर वे नियमों का उल्लंघन करके भी चलते हैं या कभी पकड़े नहीं जाते तो उसका कारण भी सबको पता है।
ऐसा नहीं है कि देश में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है और सरकारी अधिकारियों की मनमानी के मामले नहीं हैं। इसकी पुष्टि के लिए अंबानी परिवार को टैक्स नोटिस, फिर कार्यालय में चोरी, अधिकारी की शिकायत, उनका तबादला और देश के सर्वोच्च टैक्स अधिकारी पर उनके आरोप और उनसे कही गई उनकी बातों को याद किया जा सकता है।
वैसे तो यह सब भ्रष्टाचार और बेईमानी का ही मामला है जिसमें पारदर्शिता अथवा ईमानदारी नहीं है और सरकार चुप्पी साधे रहती है। इसके अलावा अख़बार ऐसे मामलों को फ़ॉलो नहीं करते और आम आदमी को कुछ पता नहीं चल पाता है। आप चाहें तो इसे सरकार की कार्यशैली मान सकते हैं। मेरा मानना है कि मंदी में इस कार्यशैली का भी योगदान है।
कहा जा सकता है कि मंदी का मुख्य कारण नोटबंदी और फिर बिना तैयारी के जीएसटी लागू करना है। पर यह सरकार की मनमानी कार्यशैली का ही नमूना है। मनमानी विरोधियों को कुचलने, अत्यधिक ईमानदार दिखने के साथ वसूली के लिए भी की जाती है, पर वह अलग मुद्दा है।
परेशान करने वाली ख़बर यह है कि आयकर विभाग ने टाटा के छह ट्रस्ट के ख़िलाफ़ कार्रवाई की और 31 अक्टूबर के एक आदेश के जरिए उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया। आयकर विभाग ने जिन छह ट्रस्ट के पंजीकरण रद्द किए हैं वे हैं - जमशेदजी टाटा ट्रस्ट, आरडी टाटा ट्रस्ट, टाटा एजुकेशन ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफ़ेयर ट्रस्ट, सार्वजनिक सेवा ट्रस्ट और नवजभाई रतन टाटा ट्रस्ट। सीएजी (जी हां, वही 2जी का हवाई घोटाला बनाने और ईनाम पाने वाले) ने 2013 में कहा था कि इन न्यासों ने 3000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का निवेश प्रतिबंधित तरीकों से किया है। सीएजी ने यह भी कहा था कि ट्रस्ट को जो दर दी गई है उससे विभाग को 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
टाटा ट्रस्ट्स ने 2015 में आयकर क़ानून की धारा 12 एए के तहत अपने पंजीकरण वापस किए जाने की कार्रवाई शुरू की थी। चार साल बाद आयकर विभाग ने इस साल जुलाई में पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई के सिलसिले में ऐसेसमेंट की कार्रवाई को फिर शुरू करना चाहा। इस पर टाटा ट्रस्ट का कहना है कि पंजीकरण रद्द करने का फ़ैसला उसका अपना है और यह आयकर के संबद्ध लाभ का दावा लेने के लिए नहीं है। स्पष्ट है कि टाटा समूह के ट्रस्ट जो अच्छा काम करते रहे हैं, अपेक्षाकृत कम बेईमान हैं लेकिन 2015 से ही सरकारी कार्रवाई के कारण बंद हैं।
ट्रस्ट नियमानुसार नहीं चल रहे थे तो इन्हें बंद कर दिया गया। पर चार साल से बंद ट्रस्ट का पंजीकरण अब रद्द करने का क्या मतलब है? जनहित में क्या सरकार की, सरकारी बाबुओं को यह चिन्ता नहीं होनी चाहिए थी कि ट्रस्ट लोक कल्याण की अपनी सेवा जारी रखें।
सरकारी नियमों का अनुपालन ज़रूरी है पर उसके कारण अगर कोई लोक कल्याण बंद कर दे तो क्या नियमों के अनुपालन पर विचार नहीं होना चाहिए। इसमें चार साल लगे और चार साल बाद भी क्या यह फ़ैसला सही कहा जा सकता है कि पहले से ही बंद ट्रस्ट का पंजीकरण रद्द करने का आदेश जारी कर ट्रस्ट चलाने वालों को चिढ़ाया जाए, उनकी हैसियत बताई जाए। क्या यह ऐसा ही मामला नहीं लगता है?
टाटा समूह ने अपने बयान में कहा है, ‘आयकर विभाग के (नए) आदेश से ट्रस्ट का पंजीकरण तत्काल प्रभाव से रद्द हो गया है लेकिन समूह का मानना है कि क़ानूनी स्थिति के अनुसार और विभाग के अपने पूर्व के निर्णय के अनुसार रद्द करने की कार्रवाई 2015 से प्रभावी होनी चाहिए। टाटा समूह ने कहा, ‘ट्रस्ट्स आदेश को देख रहे हैं और क़ानून के अनुपालन में आवश्यक कदम उठाएंगे। ट्रस्ट के पास आदेश के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानूनी विकल्प हैं।’
टाटा ट्रस्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि पंजीकरण रद्द करने के क्रम में उन्हें आयकर विभाग से कोई मांग पत्र नहीं मिला है, जिसकी मीडिया के एक वर्ग में अटकलें लगाई गई हैं। इससे पहले आयकर विभाग ने इन छह ट्रस्ट्स को नियमों के पालन के संबंध में नोटिस जारी किए थे। नोटिस में पूछा गया था कि आयकर क़ानून की धारा 124-ए के तहत उनके पंजीकरण क्यों नहीं रद्द कर दिए जाएं? विभाग का नोटिस मिलने के बाद सभी छह ट्रस्ट्स ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नोटिस को चुनौती दी थी।
ट्रस्ट्स का कहना था कि वे 2015 में ही अपने पंजीकरण रद्द करने के लिए आवेदन सौंप चुके हैं। हाईकोर्ट ने नोटिस पर अंतरिम रोक लगा कर कहा था कि इस संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी। बाद में ट्रस्ट के वकीलों ने बिना कोई कारण बताए बगैर इन्हें वापस लेने का अनुरोध किया। खंडपीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और मामले का निपटारा कर दिया था।
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