वैक्सीन की शुरुआती कामयाबी के बाद पश्चिम के देशों ने शायद यह मान लिया है कि उन्होंने कोविड-19 की महामारी पर जीत हासिल कर ली है। इन दिनों पश्चिम के और खासकर अमेरिका के अखबारों और पत्रिकाओं को देखें तो बहस फिर से इस ओर मुड़ गई है कि कोरोना वायरस आखिर आया कहां से।
कई बड़े अखबार और पत्रिकाएं फिर से यह साबित करने में जुट गए हैं कि कोरोना वायरस हमें प्रकृति से नहीं मिला बल्कि यह चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी से लीक हुआ है। आमतौर पर निष्पक्ष पत्रकारिता की वकालत करती दिखाई देने वाली कुछ मशहूर पत्रिकाएं बिना दूसरे पक्ष की बात किए हुए इसे साबित करने पर तुल गई हैं।
कोरोना वायरस के प्राकृतिक होने के बारे में सबसे पहली आशंका पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके कुछ सहयोगियों ने व्यक्त की थी। इसे लेकर उस समय पूरी दुनिया में माहौल बनाया गया था। यहां तक कि भारत के एक केंद्रीय मंत्री ने भी इस आशंका को दोहराया था।
इस सबसे जो दबाव बना उसके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी जांच शुरू कर दी, जिसकी रिपोर्ट शायद कुछ ही दिनों में आ जाएगी। अब जब रिपोर्ट आने वाली है तो यह दबाव फिर से बनाया जा रहा है।
कोरोना वायरस प्राकृतिक है?
अमेरिकी पत्रिका न्यूज़वीक ने तो इसके लिए बाकायदा अभियान ही चला दिया है। इतना ही नहीं, पत्रिका ने वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयार्क टाइम्स जैसे उन अखबारों पर भी निशाना साधा है जिन्होंने पिछले साल इस वायरस को प्रयोगशाला से आया हुआ नहीं बल्कि प्राकृतिक बताया था।
मजदूरों की हुई थी मौत
इसमें सबसे बड़ा तर्क है कि शायद यह वही वायरस है जिसकी वजह से कुछ साल पहले चीन के मोजियांग प्रांत की खदानों में कई मजदूर मारे गए थे। इंटरनेट पर इस घटना को लेकर चीन के कई शोधपत्र भी खंगाले गए हैं जो बताते हैं कि वहां मौतों का कारण सार्स जैसा ही कोई वायरस था।
यह भी पता लगाया गया है कि वुहान की वायरस प्रयोगशाला की टीमें उन खदानों में पिछले समय से लगातार जाती रही हैं। इसके आगे यह तर्क हमें इस निष्कर्ष पर ले जा सकता है कि इसी प्रयोगशाला से यह वायरस लीक हुआ और महामारी बन कर पूरी दुनिया में फैल गया। लेकिन इसके बारे में कोई सबूत अभी भी नहीं दिया गया।
इससे यह बात भी साबित नहीं होती कि कोविड-19 को कोरोना वायरस प्रयोगशाला में खासतौर पर जीवाणु युद्ध के लिए तैयार किया गया था।
वैसे, कोरोना वायरस के जन्म को लेकर बना शक सिर्फ अमेरिकी पत्रिकाओं या वहां की किसी खास लॉबी के दबाव का नतीजा ही नहीं है, इसमें चीन की भी भूमिका है।
चीन से सच बाहर आना मुश्किल!
चीन जिस तरह का बंद समाज है उससे बहुत सारे सच बाहर नहीं आते, वहां की खबरों और अफवाहों में अंतर कर पाना हमेशा असंभव सा ही होता है। चीन ने इसे लेकर कुछ एक मौखिक खंडनों के अलावा कोई और सबूत देने की कोशिश भी कभी नहीं की। स्वतंत्र जांच दलों का वहां तक जाना तो खैर नामुमकिन ही है।
पिछले दिनों जब वाल स्ट्रीट जरनल के एक रिपोर्टर ने मोजियांग की खदानों के पास जाने की कोशिश की तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया जिसे पूरे दिन की कड़ी पूछताछ के बाद ही रिहा किया गया। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच टीम को भी सब जगह जाने की इजाजत नहीं मिली थी।
यह टीम किसी तरह से उस बाजार तक पहुँचने में कामयाब रही जिसके बारे में दावा है कि कोरोना वायरस वहां से फैला। लेकिन जब टीम वहां पंहुची तो वह बाजार कई हफ्तों से बंद था।
वैसे, चीन ही क्यों किसी भी देश की प्रयोगशाला से अगर ऐसा वायरस लीक हुआ हो तो यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह देश किसी जांच दल को सच तक पहुँचने देगा। और जहां तक जीवाणु युद्ध की तैयारियों की बात है यह माना जाता है कि दुनिया के कई देशों की दो दर्जन से ज्यादा प्रयोगशालाओं में इस पर शोध चल रहा है।
यहां यह भी याद रखना होगा कि इराक जैसे देश को सिर्फ जीवाणु हथियारों के तर्क पर ही तबाह कर दिया गया था, जबकि वहां ऐसा कोई हथियार मिला भी नहीं।
कब ख़त्म होगा विवाद?
अभी जो स्थितियां हैं उसमें शायद हम कभी न जान पाएं कि कोरोना वायरस के जन्म का पूरा सच क्या है। फिलहाल तो इसके सच को जानने से ज्यादा जरूरी है इसकी चुनौतियों से निपटना। कुछ विवाद कभी न खत्म होने के लिए अभिशप्त होते हैं, कोरोना वायरस के जन्म का विवाद भी शायद उन्हीं में से एक है। यह ऐसा विवाद हो सकता है जिसका इस्तेमाल कांस्पिरेसी थ्योरीज़ और शीतयुद्ध में लंबे अर्से तक होता रहेगा।
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