हम जो कुछ भी इस समय अपने ईर्द-गिर्द घटता हुआ देख रहे हैं उसमें नया बहुत कम है, शासकों के अलावा। केवल सरकारें ही बदलती जा रही हैं, बाक़ी सब कुछ लगभग वैसा ही है जो पहले किसी समय था। लोगों की तकलीफ़ें, उनके दर्द और इस सबके प्रति एक बेहद ही क्रूर उदासीनता केवल इसी ज़माने की कोई नयी चीज़ नहीं है। फ़र्क़ केवल इतना है कि हरेक ऐसे संकट के बाद व्यवस्थाओं के कपड़े और ज़्यादा फटे हुए नज़र आने लगते हैं। कहीं भी बदलता बहुत कुछ नहीं है।
‘गमन’ पिछले चालीस वर्षों से ही नहीं दो सौ सालों से जारी है। पर एक बड़ा फ़र्क़ जो इस महामारी ने पैदा कर दिया है वह यह कि नायक ने इस बात की चिंता नहीं की कि कोई ट्रेन उसे उसके शहर तक ले जाएगी भी या नहीं और अगर ले भी गई तो पैसे उससे ही वसूले जाएँगे या फिर कोई और देगा। वह पैदल ही चल पड़ा है अपने घर की तरफ़।
और उसे इस तरह से नंगे पैर चलते देख उसकी औक़ात को अब तक अपने क़ीमती जूतों की नोक पर रखनेवाली सरकारें हिल गई हैं।
प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि कोरोना के बाद का भारत अलग होगा तो वे बिलकुल ठीक बोलते हैं। एक अमेरिकी रिपोर्ट का अध्ययन है कि महामारी के पूरी तरह से शांत होने में अट्ठारह से चौबीस महीने लगेंगे और तब तक दो-तिहाई आबादी उससे संक्रमित हो चुकी होगी। हमें कहने का अधिकार है कि रिपोर्ट ग़लत है। जैसे परिंदों को आने वाले तूफ़ान के संकेत पहले से मिल जाते हैं, ये जो पैदल लौट रहे हैं और जिनके रेल भाड़े को लेकर ज़ुबानी दंगल चल रहे हैं उन्होंने यह भी तय कर रखा है कि अगर मरना ही है तो फिर जगह कौन सी होनी चाहिए। इन मज़दूरों को तो पहले से ज्ञान था कि उन्हें बीच रास्तों पर रुकने के लिए क्यों कहा जा रहा है!
कर्नाटक, तेलंगाना और हरियाणा के मुख्यमंत्री अगर प्रवासी मज़दूरों को रुकने के लिए कह रहे हैं तो वह उनके प्रति किसी ख़ास प्रेम के चलते नहीं बल्कि इसलिए है कि इन लोगों के बिना उनके प्रदेशों की आर्थिक सम्पन्नता का सुहाग ख़तरे में पड़ने वाला है। राज्यों में फ़सलें खेतों में तैयार खड़ी हैं और उन्हें काटनेवाला मज़दूर भूखे पेट सड़कें नाप रहा है।
कल्पना की जानी चाहिए कि 18 मज़दूर ऐसी किस मजबूरी के चलते सीमेंट मिक्सर की मशीन में घुटने मोड़कर छुपते हुए नासिक से लखनऊ तक बारह सौ किलोमीटर तक की यात्रा करने को तैयार हो गए होंगे? इंदौर के निकट उन्हें पकड़ने वाली पुलिस टीम को उच्चाधिकारियों द्वारा पुरस्कृत किया गया। एक चर्चित प्राइम टाइम शो में प्रवासी मज़दूरों के साथ (शायद कुछ दूरी तक) पैदल चल रही रिपोर्टर का एक सवाल यह भी था :’आपको लौटने की जल्दी क्यों है?’
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