दुनिया भर में सरकारें अभी कोरोना वायरस से लड़ने के जुगाड़ में व्यस्त हैं, ऐसे में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) की हालिया रिपोर्ट ने एक बड़ी चिंता खड़ी कर दी है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ कोरोना महामारी के कारण भारत के 40 करोड़ लोगों के ग़रीबी रेखा के नीचे जाने का ख़तरा बढ़ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से इस साल की दूसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी (फुलटाइम जॉब) जा सकती है।
जबरदस्त वैश्विक संकट
आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में कोरोना महामारी को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे ख़राब वैश्विक संकट बताया है। हमारे देश की व्यवस्था कोरोना के पहले से ही संक्रमण काल में चल रही थी। पिछले कई सालों से गणना के तरीके़ में बदलाव के बावजूद भी जीडीपी के आंकड़ों में कोई खुशहाली की तसवीर नजर नहीं आयी है। ऊपर से रोजगार के अवसर और नौकरियों में लाखों ही नहीं, करोड़ों की संख्या में कमी आयी है। सन्देश साफ़ है कि भारत में आईएलओ की रिपोर्ट के अलावा भी चेतावनी है। लेकिन हमारी सरकार क्या इस विषय को लेकर गंभीर है?
केंद्र सरकार का आर्थिक पैकेज
देश में लॉकडाउन चल रहा है और यह 15 अप्रैल के बाद और आगे कितने दिन चलेगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। लॉकडाउन में फंसे या बेरोजगार हुए मजदूरों या ग़रीब परिवारों के लिए वित्त मंत्रालय ने 26 मार्च को प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इसमें अतिरिक्त अनाज का वितरण, महिलाओं, किसानों और निर्माण कार्य से जुड़े श्रमिकों को सीधे नकद लाभ, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बीमा और संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए लाभ शामिल थे। इनमें से बहुत से लाभ फ़ंडिंग में वास्तविक वृद्धि नहीं हैं, जबकि कुछ वर्तमान योजनाओं से ही जुड़े हैं।
अधिक अनाज वितरण और नकद लाभों से ग़रीब तबक़े को मदद ज़रूर मिलेगी, लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत भुगतान में वृद्धि जैसे कुछ लाभ वास्तव में कोई लाभ नहीं हैं, क्योंकि कई राज्य सरकारें पहले ही केंद्र सरकार की ओर से घोषित “वृद्धि” से अधिक भुगतान दे रही हैं।
कुछ अन्य घोषणाएं, जैसे कर्मचारियों को उनके प्रॉविडेंट फ़ंड (पीएफ़) का 75% या तीन महीने के वेतन के समान राशि निकालने की अनुमति से अतिरिक्त सहायता नहीं मिलेगी क्योंकि यह राशि सरकार की नहीं, बल्कि कर्मचारियों की है और उन्हें केवल उनकी राशि निकालने की छूट दी गई है।
सिविल सोसायटी की तरफ से 635 अर्थशास्त्रियों, शिक्षकों और छात्रों की ओर से 26 मार्च को जारी किये गए एक प्रेस नोट में भी सरकार द्वारा घोषित इस पैकेज को अपूर्ण बताया था। उनके अनुसार, “इस पैकेज का दायरा बड़ा है लेकिन निर्धन तबक़े की सहायता करने और अर्थव्यवस्था की गति और धीमी होने से रोकने में यह सक्षम नहीं है।’
वित्त मंत्री की 1.7 लाख करोड़ रुपये की घोषणा आपात स्थिति के उपायों के लिए ज़रूरी 3.75 लाख करोड़ रुपये की आधी भी नहीं है।
635 अर्थशास्त्रियों द्वारा बताया गया 3.75 लाख करोड़ का पैकेज प्रत्येक ग़रीब परिवार को एकमुश्त 7,000 रुपये ट्रांसफर करने की ज़रूरत के आधार पर तय किया गया है। सरकार द्वारा घोषित पैकेज में मनरेगा के तहत श्रमिकों के मानदेय को बढ़ाने की जो बात कही गयी है उसकी असलियत भी सरकारी दावे के विपरीत ही दिखाई देती है।
केंद्र सरकार ने कहा कि मनरेगा में श्रमिकों का मानदेय एक अप्रैल से 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये किया जाएगा, यह वृद्धि 20 रुपये की है यानी (200 ग्राम के पारले-जी के बिस्कुट की कीमत के बराबर)। जबकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया था कि इससे प्रति परिवार को 2,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी। मनरेगा की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के अनुसार, इस योजना में 2019-20 में 12 करोड़ से अधिक श्रमिक थे जो एक साल में कम से कम 100 दिन के रोज़गार के पात्र थे।
मनरेगा में भुगतान की दर में महंगाई के आधार पर वार्षिक परिवर्तन किया जाता है और वित्त मंत्री ने जो घोषणा की, वह वृद्धि उस औसत से कम है जो राज्य सरकारें वास्तव में मनरेगा श्रमिकों को देती हैं।
मनरेगा में भुगतान में देरी
वैसे भी श्रमिकों को लॉकडाउन के दौरान कोई भुगतान नहीं मिलेगा और यह वृद्धि काम शुरू होने पर ही प्रभावी होगी और यह बात अभी भी साफ़ नहीं है कि सरकार उन सभी को कैसे काम उपलब्ध कराएगी जिन्हें इसकी ज़रूरत है। इस योजना में भुगतान मिलने में लगातार देरी होने की शिकायतें आती रहती हैं। 27 जनवरी, 2020 तक 91% यानी 2,802.59 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया था। यह बकाया दिसंबर 2019 में भुगतान का लगभग 54%, नवंबर 2019 में 32% और अक्टूबर 2019 में 29% बकाया था।
1.1 करोड़ किसानों को लाभ क्यों नहीं?
ऐसी ही समस्या केंद्र सरकार की एक और महत्वाकांक्षी योजना में भी देखने को मिलती है। कोरोना पैकेज के तहत प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत जुलाई में लगभग 14.5 करोड़ किसानों को मिलने वाली 2,000 रुपये की राशि का भुगतान अप्रैल में ही कर देने की बात कही गयी है। इस योजना के तहत लाभार्थियों के आंकड़ों को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इस योजना के तहत सरकार के पास लगभग 9.8 करोड़ किसान पंजीकृत हैं लेकिन लाभ लगभग 8.7 करोड़ किसानों को ही मिलता है।
यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि लाभार्थियों की सूची से 1.1 करोड़ किसान क्यों बाहर हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान शुरू हुई इस योजना के तहत, किसानों को एक साल में तीन समान किश्तों में 6,000 रुपये दिए जाने होते हैं।
कोरोना संकट से लड़ाई में सरकार के इस पैकेज से यह स्पष्ट संकेत हैं कि न सिर्फ स्वास्थ्य सेवा के मोर्चे पर बल्कि ग़रीबों की मदद को लेकर भी कोई ठोस योजना का उसके पास पूरी तरह अभाव है।
लॉकडाउन से मजूदर बुरी तरह प्रभावित
ऐसे में आईएलओ की रिपोर्ट जिसमें कहा गया है, ‘‘भारत, नाइजीरिया और ब्राजील में लॉकडाउन और अन्य नियंत्रण उपायों से बड़ी संख्या में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिक प्रभावित हुए हैं। भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने ग़रीबी में फंसने का संकट है।’’ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये मजूदर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है।
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