अब मध्य प्रदेश में भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की तरह तोड़-फोड़ के विरुद्ध काफी सख्त क़ानून लाया जा रहा है। इस क़ानून का स्वागत इसलिए किया जाना चाहिए कि राजनीतिक प्रदर्शनकारी ही नहीं, कई असामाजिक और अपराधी लोग भी भयंकर तोड़-फोड़ कर देते हैं और फिर छुट्टे घूमते हैं। यही अपराध वे अकेले में करें तो वे जेल और जुर्माना भुगतेंगे लेकिन भीड़ बनाकर जब वे सरकारी और निजी संपत्तियों को नष्ट करते हैं तो वे साफ-साफ बच निकलते हैं लेकिन अब यह क़ानून बन जाने पर वे भीड़ को अपने कवच की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
होगी सख़्ती
मप्र में इस क़ानून का जो मसविदा सामने आया है, वह काफी सख्त है। उसके मुताबिक जो भी व्यक्ति किसी सरकारी या निजी संपत्ति को नष्ट करते हुए पाया जाएगा, उससे उस संपत्ति की दुगुनी कीमत वसूली जाएगी।
भीड़ को भड़काना पड़ेगा भारी
यदि कोई गैर-सरकारी व्यक्ति अपने नुकसान के विरुद्ध मुकदमा चलाता है तो उसका सारा खर्च भी अपराधी को देना होगा। इस अपराध के लिए वे लोग तो जिम्मेदार माने ही जाएंगे जो तोड़-फोड़ करते हैं लेकिन उन नेताओं, दादाओं और मजहबी ठेकेदारों को भी जुर्माना भरना पड़ेगा, जो भीड़ को भड़काने का काम करते हैं।
महात्मा गांधी का अहिंसक प्रतिकार भी इसी तरह का था। इस क़ानून को पास करने के पहले यह जरुरी है कि पक्ष और विपक्ष के विधायक इस पर गहन विचार-विमर्श करें और इसे सर्वसम्मति से पारित करें।
इस क़ानून को लागू करने की प्रक्रिया पर कुछ मतभेद हो सकते हैं। जैसे कि इस क़ानून के अनुसार कुछ न्यायाधिकरण बनाए जाएंगे, जो दोषियों का निर्धारण करेंगे और उनसे जुर्माना वसूल करने की जिम्मेदारी जिला-प्रशासन की होगी। दोषी लोग उच्च न्यायालय तक भी जा सकेंगे। इस तरह के छोटे-मोटे विवादास्पद प्रावधानों पर विधानसभा सांगोपांग बहस तो करेगी ही लेकिन यह क़ानून हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता निश्चय ही बढ़ाएगा। इस तरह के क़ानून सभी प्रांतों और पड़ोसी देश भी क्यों नहीं बना देते?
सभी मित्रों और पाठकों को दीपावली की शुभकामनाएं।
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