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डीडीसी चुनाव : फ़ासिस्टों के मुँह पर थप्पड़!

मैं यह सकता हूं कि देश के लोगों को यह समझना चाहिए कि कश्मीरी हिंसा का समर्थन नहीं करते, धर्मनिरपेक्ष भारत में आस्था रखते हैं। इसके साथ ही भारत सरकार को यह समझना चाहिए और मान लेना चाहिए कि कश्मीर राजनीतिक समस्या है। उसे संविधान के तहत इसका सबको स्वीकार्य समाधान ढूंढना चाहिए।
इफ़्तिख़ार मिसगर | श्रीनगर

कश्मीर की जनता ने लोकतंत्र और संविधान में आस्था जता कर फ़ासिस्टों के मुँह पर थप्पड़ जड़ दिया है। 

देश के शासकों ने बीते 30 साल में कश्मीर के लोगों को कोने में धकेल कर सबसे अलग-थलग कर दिया है। संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 'ए' को रद्द कर कश्मीर के लोगों को कई महीनों तक अपने घरों में बंद कर दिया गया जैसे पिंजड़े में बंद किया जाता है। यह अवधारणा बना दी गई कि कश्मीर के लोग पत्थरबाज और देशद्रोही हैं। हाल यह हो गया कि एक आम कश्मीरी को राज्य के बाहर किसी होटल में कमरा लेने में दिक्क़त होने लगी। कश्मीरी युवकों को ख़ास कर पुलवामा हमले के बाद देश के दूसरे हिस्सों में परेशान किया जाने लगा।

जब सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पर्यटकों को राज्य के बाहर चले जाने को कहा, कश्मीर की अर्थव्यवस्था पंगु हो गई और लोगों को नुक़सान हुआ। जो कश्मीरी लोग अमरनाथ यात्रा और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित किया करते थे, उन्हें ही अमरनाथ यात्रा के लिए ख़तरा माना गया।
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कश्मीर बना जेल

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के कुछ लोगों ने यह नैरेटिव बना दिया मानो हर कश्मीरी आतंकवाद का समर्थक और भारत-विरोधी है। निर्दोष कश्मीरियों को पंडितों के पलायन के लिए ज़िम्मेदार माना गया, जबकि सच यह है कि कश्मीरियों को हमेशा ही बंदूक और दबाव से तकलीफ़ उठानी पड़ी है। 

संविधान के अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त, 2019, को रद्द करने के बाद पूरे कश्मीर को एक बड़े जेल में तब्दील कर दिया गया। ऐसा नैरेटिव तैयार किया गया कि राज्य में 2016 की तरह ही एक बड़ा आन्दोलन फिर खड़ा किया जा सकता है। लैंडलाइन, मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट समेत संचार के तमाम साधनों को बंद कर दिया गया। यहाँ तक कि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेताओं पर भी पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया गया। मी़डिया और पत्रकारों पर निगरानी रखी गई। 

गुपकार अलायंस

अक्टूबर 2020 में जब सरकार ने ज़िला विकास परिषद के चुनाव कराने का एलान किया, उस समय तक जम्मू और कश्मीर के समान सोच वाले राजनीतिक दलों ने गुपकार अलायंस का गठन कर लिया था। गुपकार अलायंस ने 5 अगस्त, 2019, को सरकार के लिए गए फ़ैसले को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक क़रार दिया और उसके ख़िलाफ क़ानूनी लड़ाई लड़ने का निर्णय किया।

गुपकार अलायंस ने डीडीसी चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया जो सत्तारूढ़ दल बीजेपी को नागवार गुजरा क्योंकि वह चाहती थी कि वह यह चुनाव अकेले लड़े। इसलिए इस पार्टी ने गुपकार अलायंस को 'गैंग' कहा।

बीजेपी ने जम्मू और कश्मीर दोनों ही जगहों पर चुनाव प्रचार के लिए स्टार प्रचारक के रूप में अपने मंत्रियों को उतारा। दूसरी ओर, गुपकार अलायंस में शामिल दलों के नेताओं ने यह आरोप लगाया कि उनके उम्मीदवारों के प्रचार पर रोक लगाई जा रही है। बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में विकास पर ज़ोर दिया, जबकि गुपकार अलायंस ने लोगों से कहा कि वे अनुच्छेद 370 रद्द करने के फ़ैसले पर वोट करें। 

फ़ासिस्टों के मुँह पर थप्पड़

दूसरी ओर, कश्मीरियों ने फ़ासिस्टों के मुँह पर थप्पड़ मारते हुए चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया, कश्मीर में 35 प्रतिशत और जम्मू में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने वोट किया। कश्मीर ने पूरे देश को ज़ोरदार ढंग से यह संदेश दिया कि कश्मीर के लोग लोकतंत्र और संविधान में किसी संघी से ज़्यादा यकीन करते हैं, जो एक मात्र राष्ट्रवादी होने का दावा करते हैं।

इसके साथ ही कश्मीरियों ने गुपकार अलायंस को भारी मत दिया और बीजेपी के विकास के नारे और उसके स्टार प्रचारकों को धूल चटा दिया। जम्मू निवासियों ने भी सत्तारूढ़ बीजेपी के ख़िलाफ़ गुस्सा दिखाया और डीडीसी चुनाव में बीजेपी के कई शीर्ष नेताओं के क्षेत्रों में भी गुपकार अलायंस में शामिल पार्टियों को जिताया। 

चुनाव का संकेत साफ

एक बात साफ है, मैं यह सकता हूं कि देश के लोगों को यह समझना चाहिए कि कश्मीरी हिंसा का समर्थन नहीं करते, धर्मनिरपेक्ष भारत में आस्था रखते हैं। इसके साथ ही भारत सरकार को कश्मीरियों के जनादेश को स्वीकार कर लेना चाहिए और सांप्रदायिक व विभाजक राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए।

भारत सरकार को यह समझना चाहिए और मान लेना चाहिए कि कश्मीर राजनीतिक समस्या है। उसे संविधान के तहत इसका सबको स्वीकार्य समाधान ढूंढना चाहिए। उसे जम्मू और कश्मीर के विकास पर ध्यान देना चाहिए ताकि लोगों का भरोसा और उनकी आस्था बनी रहे।

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