loader

कोरोना जैसी महामारी के बाद भी स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हम चेतेंगे या नहीं?

सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म ‘ट्विटर’ पर बेल्जियम की नब्बे वर्षीय महिला का अस्पताल के कमरे के चित्र के साथ समाचार जारी हुआ। सूजेन नाम की यह महिला कोरोना वायरस से पीड़ित थीं। इस महिला ने मौत से पहले अपने इलाज के लिए वेंटिलेटर का उपयोग करने से डॉक्टरों को यह कहते हुए मना कर दिया था कि, ‘मैंने अच्छा जीवन जी लिया है, इसे (वेंटिलेटर को) जवान मरीज़ों के लिए सुरक्षित रख लिया जाए।’

पश्चिमी देशों में चल रहे इन विचारों ने कि संसाधनों के राष्ट्रीय स्तर पर अभाव की हालत में ‘ग़ैर ज़रूरी’ आबादी को उसके हाल पर छोड़ा जा सकता है और यह भी कि चिकित्सा को लेकर हालात चाहे जैसे भी हों आर्थिक गतिविविधियाँ जारी रहनी चाहिए, हमारे यहाँ वैचारिक द्वंद्व पैदा कर दिया है। एक विचार यह आया है कि इलाज और उत्पादन दोनों साथ-साथ चलें और दूसरा विचार यह कि अर्थव्यवस्था तो वापस लौट सकती है, पर लोग नहीं। केंद्र सरकार का अगला निर्णय हो सकता है इसी संशय की स्पष्टता का हो।
ताज़ा ख़बरें

ज़्यादा टेस्टिंग की ज़रूरत

कोरोना महामारी के संभावित परिणामों की शोध में जुटे विशेषज्ञों का मानना है कि ‘लॉकडाउन’ केवल अपेक्षित कार्रवाई के लिए और समय प्राप्त करने का हथियार है, यह महामारी का इलाज नहीं है। इलाज केवल इसी बात में है कि संक्रमण की आशंका वाले लोगों को कितनी जल्दी टेस्टिंग के दायरे में लाया जाता है और संक्रमित मरीज़ों की पहचान करके उनके सम्पर्क में आए सभी लोगों को क्वरेंटीन की सुविधा वाले केंद्रों में पहुँचाया जाता है। पर इस विशाल कार्य के लिए न सिर्फ़ डाक्टरों की बड़ी फ़ौज चाहिए, उनके अपने बचाव के लिए पीपीई किट्स और अन्य संसाधन भी चाहिए जो कि एकदम से तो उपलब्ध नहीं ही हैं।

हम कह सकते हैं कि दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान सहित जिन देशों ने बिना कुछ भी बंद किए स्थिति पर क़ाबू पा लिया वे हमसे काफ़ी छोटे हैं। पर ऐसा तो चीन ने भी कर दिखाया है। वहाँ हालात लगभग सामान्य हो गए हैं। मरने वालों के आँकड़े अब चीन से ज़्यादा अमेरिका में हो गए हैं। इसीलिए यह भी पूछा जा रहा है कि महामारी के प्रति हम समय रहते चेत जाते तो भी और ज़्यादा क्या कर लेते?

विचार से और ख़बरें

कोरोना जो सवाल छोड़कर जाएगा उसमें सबसे बड़ा यही होगा कि हमारी जितनी बड़ी आबादी के लिए भविष्य की ऐसी किसी भी आपदा या वैश्विक महामारी में चौबीसों घंटे उपलब्ध रहने वाले हर तरह के कितने संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी और यह कि क्या हम उसके लिए तैयार हैं या फिर केवल सामने खड़े संकट से ही किसी तरह जान बचाकर बाहर निकलना चाहते हैं?

केजरीवाल दिल्ली में 12 लाख ग़रीबों को दोनों वक्त का खाना और कितने दिन उपलब्ध करा पाएँगे? दूसरी राज्य सरकारें भी अगर ऐसा करें तो वे कब तक ऐसा कर पायेंगी क्योंकि ग़रीबों की संख्या तो करोड़ों में है। कोई भी देश कैसे लम्बे समय तक इस तरह की व्यवस्था चला सकता है और आर्थिक रूप से भी ज़िंदा रह सकता है?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें