loader

सरकार के लिए कोरोना की जगह बंगाल बड़ा मुद्दा क्यों है?

अदालतें तो सरकार को झाड़ रही हैं, उसकी लापरवाही के लिए लेकिन रोज कालाबाजारी की ख़बरें गर्म हो रही हैं। फर्जी इंजेक्शन और सिलेंडर पकड़े जा रहे हैं। अस्पताल के पलंगों के लिए धोखाधड़ी हो रही है। लोग अस्पतालों की सीढ़ियों पर दम तोड़ रहे हैं लेकिन हमारी उच्च और सर्वोच्च अदालतें सिर्फ़ चेतावनियाँ जारी कर रही हैं...
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

मैंने कल लिखा था कि देश के राजनीतिक दल और नेता यदि अपने करोड़ों कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दें तो ऑक्सीजन घर-घर पहुँच सकता है। इंजेक्शन और दवाइयों के लिए लोगों को दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा। कालाबाजारियों के हौंसले पस्त हो जाएँगे। उन्हें पकड़ना आसान होगा। मेरे सुझावों का बहुत-से पाठकों ने बहुत स्वागत किया है लेकिन आप देख रहे हैं कि हमारे नेताओं का मुख्य ध्यान किधर लगा हुआ है? कोरोना की तरफ नहीं, बंगाल की तरफ़! 

बंगाल में दर्जन भर कार्यकर्ता आपस में लड़ मरे, वह नेताओं के लिए पहला राष्ट्रीय संकट बन गया लेकिन चार हजार लोग कोरोना से मर गए, इसकी कोई चिंता उन्हें दिखाई नहीं पड़ी।

ताज़ा ख़बरें

बंगाल में जो हिंसा हो रही है, वह सर्वथा निंदनीय है और केंद्र सरकार की चिंता भी अनुचित नहीं है लेकिन क्या यह कोई राष्ट्रीय संकट है? क्या यह कोरोना से भी अधिक गंभीर समस्या है?

अदालतें तो सरकार को झाड़ रही हैं, उसकी लापरवाही के लिए लेकिन रोज कालाबाजारी की ख़बरें गर्म हो रही हैं। फर्जी इंजेक्शन और सिलेंडर पकड़े जा रहे हैं। अस्पताल के पलंगों के लिए धोखाधड़ी हो रही है। लोग अस्पतालों की सीढ़ियों पर दम तोड़ रहे हैं लेकिन हमारी उच्च और सर्वोच्च अदालतें सिर्फ़ चेतावनियाँ जारी कर रही हैं, सरकारों से कह रही हैं कि वे उनकी मानहानि न करें लेकिन उनमें इतना साहस भी नहीं है कि कालाबाजारियाँ और ठगों को लटकाने के आदेश जारी कर सकें।

वे यह क्यों नहीं समझतीं कि यदि हालात इसी तरह से बिगड़ते रहे तो लाचार और कुपित लोग सीधी कार्रवाई पर भी उतारु हो सकते है। मैं उन्हें फ्रांसीसी राज्य-क्रांति की याद दिलाऊँ क्या? हमारी राजनीति और न्याय-व्यवस्था जैसी है, वैसी है लेकिन हमारे धर्म-ध्वजियों का क्या हाल है? उनका हाल नेताओं से भी बुरा है। 

नेता लोग तो नोट और वोट के लालच में डर के मारे कभी लोक-सेवा का ढोंग भी करने लगते हैं लेकिन हमारे साधु-संत, मुल्ला और पादरी लोगों ने कौनसा अच्छा उदाहरण पेश किया है?

वे तो ईश्वर, अल्लाह और गाॅड के अलावा किसी के भी सामने जवाबदेह नहीं हैं। उन्हें किसी का डर नहीं है। बस, देश के सिक्ख लोग ऐसे हैं, जिनके आचरण से ये सब धर्मध्वजी सबक़ ले सकते हैं। सिक्खों ने सारे पाखंडियों, ढोंगियों और स्वयंसेवियों (स्वयंसेवक नहीं) के विपरीत कोरोना मरीजों की ग़ज़ब की सेवा की है।

विचार से ख़ास
कुंभ में डुबकी लगवाकर करोड़ों अंधभक्तों के ज़रिए कोरोना को गाँवों तक पहुँचवानेवाले ये साधु-संत अपने मठों-मंदिर में क्यों छिपे बैठे हैं? देश के लाखों मंदिरों, मसजिदों, गिरजों, मठों को तात्कालिक अस्पतालों में अभी तक क्यों नहीं बदला गया है? करोड़ों-अरबों का चढ़ावा क्या दूध दे रहा है? वह कब काम आएगा? साधु-संतों की यह अकर्मण्यता उनकी दुकानदारी तो ख़त्म करेगी ही, आम आदमी का ईश्वर-विश्वास भी हिला देगी।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें