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घायल सैनिक के परिवार ने कहा- वो “बिना हथियार” थे, तो विदेश मंत्री ने सच क्यों नहीं बोला?

चीनी सैनिकों के साथ लड़ाई में घायल हुए जवान सुरेंद्र सिंह के परिवार ने कहा कि लद्दाख की गलवान घाटी में सैनिक निहत्थे गए थे। फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्या देश से झूठ बोला कि गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिक हथियार लेकर गये थे? अगर देश की रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के मामले में भी सरकारें और दल झूठ बोलने लगें तो फिर समझना चाहिये कि संकट बहुत गहरा है। देश भारी ख़तरे में है।
आशुतोष

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्या देश से झूठ बोला कि गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिक हथियार लेकर गये थे? अब इस बात के पुख़्ता सबूत मिल रहे हैं जो ये साबित कर रहे हैं कि कि विदेश मंत्री ने सच नहीं बोला। 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ लड़ाई में घायल हुए जवान सुरेंद्र सिंह के पिता ने यह बात आजतक चैनल को दिये एक इंटरव्यू में कही है। सुरेंद्र ने घायल होने के बाद अपने परिवार वालों को फ़ोन किया था। उनकी अपने पिता और पत्नी से बातचीत हुई थी। दोनों ने कैमरे पर कहा है कि सुरेंद्र ने उन्हें बताया था कि वो निहत्थे थे। और उन्हें चीनियों ने घेर कर मारा। सुरेंद्र का परिवार राजस्थान के अलवर में रहता है।

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पहले सुरेंद्र के पिता बलवंत सिंह ने क्या कहा, ये बताते हैं- 

“कल 11 - 12 बजे की बात है फ़ोन आया मेरे पास अचानक... मैंने पूछा कैसे हो - बोले ठीक हूँ ... कहाँ है। मैं तो हॉस्पिटल में दाखिल हूँ...  लेह के आसपास हूँ कहीं। बोला - ठीक हूँ ... इलाज चल रहा है। वहाँ ... हम 300-400 आदमी थे वो 2000 - 2500 थे ... ज़्यादा घेरे में आ गया मैं... अचानक आया पता नहीं चला ... उनके पास रॉड थे, डंडे और पत्थर चलाए उन्होंने... हमारे पास कुछ नहीं ख़ाली थे ...जब उन्होंने खूब हाथापाई की, झगड़ा हुआ ... बच के आए क्या करते ... भगवान बचा लिया ... 10 - 12 टाँके सिर पर लगे हैं, हाथ पाँव में लगी है ... जो हुआ फ़ोन पर बता दिया  ...”

सुरेंद्र की पत्नी गुरप्रीत कौर - 

गुरप्रीत - “2 - 3 लोग इकठ्ठे झपट पड़े ... दो जनों को तो घायल ही मारा जैसा भी वहाँ का माहौल था ... बाकी अगर उनके पास हमारे गुरु की जो होती है दाद दी हुई हमको श्री साहिब नहीं होते तो यही बोल रहे थे कि हाल फ़िलहाल वो मेरे को मार ही देते ...”

रिपोर्टर - “कितने लोगों पर उन्होंने क़ाबू पाया उस समय?” 

गुरप्रीत - “3-4 लोग बता रहे हैं ...” 

रिपोर्टर - “इन लोगों के पास कोई हथियार नहीं था उस समय?”

गुरप्रीत - “ये निहत्थे थे इनके पास कुछ नहीं था ... ये मतलब था बातचीत का माहौल था ... बातचीत से भी मसला कम कर देंगे वो हथियार के साथ आए थे जो चीन वाले थे ...” 

ऊपर सुरेंद्र के पिता साफ़ कह रहे हैं कि सुरेंद्र ने उन्हें बताया था कि - “वो ख़ाली हाथ थे”। उनकी पत्नी गुरप्रीत भी कहती हैं कि सुरेंद्र ने बताया था कि - “वो निहत्थे थे, उनके पास कुछ नहीं था। जबकि चीन वाले हथियार साथ लाये थे।”

सुरेंद्र के परिवारवालों के पास ऐसा कोई कारण नहीं है कि यह कहा जाये कि वो झूठ बोल रहे हैं या फिर वो किसी के दबाव में बोल रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि देश के विदेश मंत्री क्यों कह रहे हैं कि हमारे सिपाही हथियार ले कर गये थे। पढ़ें, विदेश मंत्री एस जयशंकर का ट्वीट - हिंदी अनुवाद-

“सभी सैनिक सीमा पर हथियार लेकर चलते हैं, ख़ासतौर पर तब जब वो पोस्ट छोड़ते हैं। 15 जून को गलवान में भी यही हुआ। 1996 - 2005 के समझौते के तहत आमना सामना होने पर हथियार का प्रयोग नहीं करने की परंपरा है।”

यानी विदेश मंत्री कह रहे हैं कि सैनिक हथियार लेकर चीनी कैंप की तरफ़ गये थे। अगर ऐसा है तो फिर क्या सुरेंद्र का परिवार झूठ बोल रहा है। यह असंभव है। ये मासूम लोग हैं। उनके बेटे/पति ने जो बताया वो उन्होंने कैमरे पर बोल दिया। मतलब साफ़ है कि सरकार झूठ बोल रही है। सरकार क्यों झूठ बोल रही है? इसके कारण है-

राहुल गाँधी ने एक वीडियो जारी कर कहा था

“चीन ने भारत के शस्त्रहीन सैनिकों की हत्या कर एक बहुत बड़ा अपराध किया है। मैं पूछना चाहता हूँ कि इन वीरों को बिना हथियार ख़तरे की ओर किसने भेजा, क्यों भेजा और कौन ज़िम्मेदार हैं।” 

विपक्ष के इस हमले के बाद सरकार को जवाब देना था। सरकार यह कभी क़बूल नहीं कर सकती कि उसने सैनिकों को बिना हथियार भेजा था। अगर ऐसा होता तो फिर 20 सैनिकों की बर्बर मौत की ज़िम्मेदारी सीधे सरकार पर जाती और कोई अति राष्ट्रवादी सरकार ऐसा कभी भी नहीं क़बूलेगी। लिहाज़ा एक बयान जारी किया गया, जो सच नहीं था। 

सरकार यह अगर मान ले कि सैनिक बिना हथियार गये थे तो यह सेना के नियम के ख़िलाफ़ है। कोई सैनिक अफ़सर दुश्मन से मिलते समय बिना हथियार नहीं जायेगा। वैसे भी नियम के अनुसार फ़ॉरवर्ड पोस्ट पर कोई भी सैनिक कभी भी बिना हथियार बाहर नहीं निकलता है। ऐसे में 200-300 सैनिक बिना हथियार चीनी कैंप जाये ये सेना के लिये अकल्पनीय है। ऐसा तभी हो सकता है जब आदेश सेना से नहीं कहीं और से आया हो, और आदेश देनेवाला इतना बड़ा हो कि उसको नकारा नहीं जा सकता। और अगर विदेश मंत्री माने कि बिना हथियार भेजे गये थे तो फिर यह पता लगाना होगा कि ये आदेश किसने दिया और क्यों दिया और जिसने दिया वो सैनिकों की शहादत के लिये ज़िम्मेदार है। 

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फिर यह सवाल भी उठता है कि सेना का मामला है। राहुल के सवाल का जवाब रक्षा मंत्री को देना चाहिये, विदेश मंत्री को नहीं। राजनाथ सिंह की जगह जयशंकर का बोलना, बताता है कि कुछ गड़बड़ है। 

फिर जो यह तर्क दिया जा रहा है कि चीन से हुए समझौते की वजह से भारतीय सैनिकों ने हथियार नहीं उठाया, ये एक बेहूदा तर्क है। रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल पनाग का कहना है कि चीन से समझौता सीमा प्रबंधन के लिये है, युद्ध के लिये नहीं। यानी चीनी हमें जान से मार दे, हम पिटते रहें। ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता, कोई सेना नहीं करती। और अगर हमला कमांडिंग अफ़सर पर हो तब तो सेना दुश्मन को सबक़ सिखाने के लिये कुछ भी करेगी। वो अपने कमांडिंग अफ़सर को यों नहीं मरने देगी। कमांडिंग अफ़सर संतोष बाबू का मरना मज़ाक़ बात नहीं है। सरकार इस बात को जितनी जल्दी समझ ले उतना ही बेहतर है। 

राजनीति में झूठ बोला जाता है। लेकिन अगर देश की रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के मामले में भी सरकारें और दल झूठ बोलने लगें तो फिर समझना चाहिये कि संकट बहुत गहरा है। देश भारी ख़तरे में है।

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