loader
फ़ोटो क्रेडिट - https://www.thestar.com

स्पैनिश फ्लू: महामारी से लड़ने वाले तीन भारतीय जिन्हें हम भूल गए

स्पैनिश फ्लू महामारी की दूसरी लहर 1918 के सितंबर में जब भारत पहुंची तो इसने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली। खासकर गुजरात में इसका कहर कुछ ज्यादा ही दिखा। वहां समस्या यह थी कि मानसून में बारिश लगभग न के बराबर हुई थी। खरीफ की फसल का बुरा हाल हो चुका था और ऐसी सूरत नजर नहीं आ रही थी कि रबी की फसल ठीक से बोई जा सकेगी। 

अकाल भयानक होता जा रहा था और पीने का पानी तक लोगों को नहीं मिल पा रहा था। कुछ लेखकों ने तो यहां तक लिखा है कि पानी की चोरी और उसकी लूटपाट आम बात हो चुकी थी। अनाज की कीमतें आसमान छू रही थीं और सरकार यह तय नहीं कर पा रही थी कि गेहूं का निर्यात रोक देना चाहिए या नहीं।

ताज़ा ख़बरें

इन हालात में जब महामारी ने दस्तक दी तो हाहाकार कुछ ज्यादा ही बढ़ गया। यहां तक कहा जाता है कि हर शहर, हर गांव में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान जा रही थी कि दाह संस्कार के लिए लकड़ियां तक कम पड़ गईं। दूसरी समस्या यह थी कि महामारी के आतंक के चलते सगे-संबंधी तक अंतिम संस्कार से हाथ झाड़ने लगे थे। 

देश के बहुत सारे दूसरे हिस्सों की तरह ही गुजरात की समस्या इसलिए भी बड़ी थी कि चिकित्सा सुविधाएँ दिल्ली, बंबई और कोलकाता को छोड़कर बाक़ी जगह ठीक नहीं थीं।

ऐसे में गुजरात के कुछ युवक सामने आए। इनमें दो भाई थे- कल्याणजी मेहता और कुंवरजी मेहता। तीसरे युवक का नाम था दयालजी देसाई। इन तीनों में कईं बातें समान थीं। 

तीनों सरकारी नौकरी में थे। तीनों ने तय किया कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना है, इसलिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। एक और समान बात थी कि मेहता बंधुओं ने नौकरी छोड़ने के बाद सूरत में एक आश्रम शुरू किया तो दयालजी देसाई ने भी सूरत में ही अपना आश्रम खोल दिया।  

विचार से और ख़बरें

मेहता बंधु शुरू में बाल गंगाधर तिलक के विचारों से काफी प्रभावित थे और हिंसा के जरिये स्वराज हासिल करना चाहते थे। कुंवरजी ने तो बाक़ायदा बम बनाने का प्रशिक्षण तक लिया था, हालांकि इसे आजमाने की नौबत आती इससे पहले ही खेड़ा सत्याग्रह के कारण वे लोग गांधी से प्रभावित हो गए। देसाई तो पहले से ही गांधी के अनुयायी थे।

महामारी जब फैलने लगी तो सरकार के हाथ-पांव फूल गए और उसने सामाजिक संगठनों से मदद मांगी। ये दोनों ही आश्रम मदद के लिए आगे आए। उन्होंने सबसे पहले चंदा जमा किया और स्वयंसेवकों की भर्ती की।

इसके बाद उन्होंने पहला काम किया बड़ी संख्या में जमा हो गए शवों के दाह संस्कार का। फिर उन्होंने गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों को सफाई की शिक्षा के साथ ही स्पैनिश फ्लू की दवा देनी शुरू की। इसका कोई रिकाॅर्ड नहीं है कि उन्होंने कौन सी दवा दी और उनकी दवा ऐलोपैथिक थी, आयुर्वेदिक, यूनानी या होम्योपैथिक? 

हालांकि इससे बहुत ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता क्योंकि उस समय तक किसी भी पैथी में इस रोग की कोई भी प्रमाणिक या रामबाण दवा नहीं थी। लेकिन उनके प्रयासों का असर यह हुआ कि लोगों ने महामारी को दैवीय आपदा मानने के बजाए एक रोग की तरह देखना शुरू कर दिया। 

इन लोगों की सबसे बड़ी उपलब्धि थी उन वनवासियों के नजरिये को बदलना, जो शहरी दवाओं को तब तक शक की नजर से देखते थे। अपने प्रयासों से इन तीनों ने जो प्रतिष्ठा हासिल की और जो जनाधार बनाया, वह स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त देश के बहुत काम आया।

पहले विश्वयुद्ध के बाद जब अंग्रेज सरकार ने होमरूल के अपने वादे न सिर्फ पूरी तरह नकार दिये और रौलेट एक्ट जैसा सख़्त क़ानून पास कर दिया तो महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरा देश आंदोलित हो गया। इस आंदोलन में ये तीनों नौजवान गांधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगियों में थे। कल्याणजी मेहता और दयालजी देसाई की जोड़ी तो गुजरात में लंबे समय तक कालू-दालू के नाम से जानी जाती रही।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें