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बीजेपी के राज में - जाहे विधि राखे राम ताहि विधि रहिये!

पिछले दिनों किसान आंदोलन के बीच पंजाब में स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न हुए। इसमें कांग्रेस पार्टी की अकाल्पनिक विजय इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी कि भारतीय जनता पार्टी की फ़ज़ीहत के साथ बुरी तरह हुई पराजय। फ़ज़ीहत इसलिए कि कई शहरों के विभिन्न वार्ड ऐसे थे जहाँ बीजेपी को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार भी नसीब नहीं हुआ। बीजेपी के अधिकांश प्रत्याशी ऐसे थे जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान जनता के भारी रोष व विरोध का सामना करना पड़ा। सात नगर निगमों में कांग्रेस को जीत हासिल हुई जबकि कई वार्डों में बीजेपी प्रत्याशी अपना खाता भी नहीं खोल सके। नतीजतन लगभग पूरे राज्य से बीजेपी का सूपड़ा साफ़ हो गया।

हालाँकि इन परिणामों को किसान आंदोलन से जोड़कर ज़रूर देखा जा रहा है परन्तु दरअसल यह शहरी चुनाव थे इसलिए इन्हें पूरी तरह किसान आंदोलन के रंग में रंगा चुनाव भी नहीं कहा जा सकता। हाँ, इसे किसान आंदोलन के प्रति सरकार द्वारा अपनाये जा रहे ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम ज़रूर कहा जा सकता है।

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पिछले दिनों संसद में जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोल रहे थे उस समय देश को, विशेषकर, किसानों को यह उम्मीद थी कि शायद प्रधानमंत्री के संबोधन में किसानों को अपनी समस्याओं से संबंधित कुछ सकारात्मक बातें सुनाई दें और सरकार व किसानों के बीच चला आ रहा गतिरोध समाप्त हो। परन्तु नतीजा बिल्कुल उल्टा रहा। प्रधानमंत्री ने संसद में न सिर्फ़ आंदोलनकारियों व आंदोलनकारी नेताओं को 'आन्दोलनजीवी' व 'परजीवी' जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया बल्कि संसद में भी प्रधानमंत्री की चिंताएँ टोल प्लाज़ा पर किसानों के धरने तथा पंजाब में कई जगह जिओ के मोबाइल टावर क्षतिग्रस्त करने को लेकर ज़रूर सुनी गईं। परन्तु साथ साथ सरकार यह बताने से भी हरगिज़ नहीं चूकती कि वह किसानों के हितों के लिए पूरी तरह समर्पित है।

बहरहाल, एक तरफ़ किसानों के आंदोलन की धार दिन प्रतिदिन और तेज़ होती जा रही है तो दूसरी ओर सरकार इससे सबक़ लेने के बजाय डीज़ल, पेट्रोल व रसोई गैस के दामों में लगातार इज़ाफ़ा करती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार 2014 में सत्ता में आने से लेकर अब तक केवल पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स लगाकर जनता से 21 लाख पचास हज़ार करोड़ रुपये की भारी रक़म वसूल कर चुकी है। गत 11 दिनों से तो लगभग प्रतिदिन पेट्रोल डीज़ल के मूल्यों में वृद्धि का सिलसिला जारी है। 
सरकार जिस मनमोहन सरकार में होने वाली तेल मूल्य वृद्धि को लेकर सड़कों पर उतरती थी यदि उन आँकड़ों पर नज़र डालें तो जनता की जेबें ढीली करने की मंशा को लेकर सरकार की नीयत बिल्कुल साफ़ नज़र आती है।

जब 2013 में मनमोहन सरकार के दौर में कच्चे तेल की क़ीमत 109 डॉलर प्रति बैरल थी उस समय देश में पेट्रोल की क़ीमत सामान्यतः 74 रुपये प्रति लीटर थी तथा डीज़ल का मूल्य 45 रुपये प्रति लीटर था। परन्तु 2021 में जब कच्चा तेल लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल है उस समय हमें पेट्रोल लगभग 90 रुपये और डीज़ल 80 रुपये प्रति लीटर के भाव से मिल रहा है। जबकि कुछ शहरों से तो पेट्रोल की क़ीमत 100 रुपये प्रति लीटर को भी पार कर गयी है।

lesson for bjp in punjab local body election amid farmers protest and petrol price hike - Satya Hindi

तेल की क़ीमतों पर राष्ट्रव्यापी हंगामा खड़ा होते देख प्रधानमंत्री ने इस विषय पर टिप्पणी तो ज़रूर की है मगर वही अपेक्षित टिप्पणी, यानी इसके लिए भी पिछली सरकारों को दोषी ठहरा दिया। याद कीजिये जब कच्चे तेल की क़ीमत घटी थी तो प्रधानमंत्री ने स्वयं को 'नसीब वाला' प्रधानमंत्री बताया था और बढ़ी क़ीमतों के लिए कांग्रेस सरकार आज भी ज़िम्मेदार है?

इस समय सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सत्ता से क़दमताल मिलाकर चलने वाला मीडिया सरकार को किसानों व मूल्यवृद्धि जैसे जनसरोकार के विषयों पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने के बजाय देश को यह बताने में लगा है कि किस तरह मोदी से डरकर चीनी सेना पैंगोंग झील में पीछे हट गई। चीन की नींदें मोदी ने हराम कर दीं, आदि आदि। परन्तु यही मीडिया सरकार से यह पूछने की हिम्मत नहीं कर रहा है कि चीनी सेना के भारतीय सीमा में घुसपैठ के आरोपों पर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में यह कहा था कि 'न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, और न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्ज़े में है' फिर आख़िर चीनी सेना कहाँ से वापस जा रही है? और जो पत्रकार सत्ता से इस तरह के सवाल कर रहा है उसे प्रताड़ित करने या किसी न किसी आरोप में फँसाने की कोशिशें हो रही हैं।

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परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि देश में कुछ भी नहीं हो रहा है। देश में प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेस नेता व पूर्व गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा बनवाकर देश का नाम रौशन किया है। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी' नामक इस मूर्ति को बनाने में लगभग तीन हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। बेशक़ इस मूर्ति के आसपास के गाँव के लोगों का कहना है कि तीन हज़ार करोड़ रुपये राज्य के ग़रीबों या कल्याणकारी योजनाओं पर ख़र्च हो सकते थे।

इसी तरह मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति की यात्राओं के लिये अमेरिका से दो नए विशेष विमान ख़रीदे हैं जिनका मूल्य लगभग 8458 करोड़ रुपये है। उड़ान के दौरान इस विमान पर प्रतिघंटा लगभग 1 करोड़ 30 लाख रुपये का ख़र्च आने का अनुमान है। पिछली सरकारों ने देश की आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र ऐसे ख़र्चीले विमान की ज़रूरत नहीं महसूस की थी। परन्तु वर्तमान प्रधानमंत्री इसे देश की बड़ी ज़रूरत समझते हैं।

इसी तरह दिल्ली में 21 एकड़ के क्षेत्र में सेन्ट्रल विस्टा नामक प्रोजेक्ट यानी नया संसद भवन बनाने पर मोदी सरकार लगभग हज़ारों करोड़ रुपये की लागत से नए संसद भवन का निर्माण करवा रही है।

इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ मोदी सरकार की देन है, जैसे श्री राम मंदिर का शिलान्यास, कश्मीर से धारा 370 हटाना, तीन तलाक़ संबंधी क़ानून, एनआरसी व सीएए संबंधी जद्दोजहद वग़ैरह।

अब देश की जनता को तो सरकार की इन्हीं उपलब्धियों में संतोष तलाशना होगा। और यदि इन सब उपलब्धियों से आप गौरवान्वित न हों और अब भी भूख, महँगाई और रोज़ी-रोटी-रोज़गार की चिंता सताए तो सिवाय भजन के कोई चारा नहीं। और गाइये - जाहे विधि राखे राम, ताहे विधि रहिये।

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तनवीर जाफ़री

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