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1.3 अरब जनसंख्या वाले देश में प्रतिभा का अकाल!

1.3 अरब जनसंख्या वाले देश में प्रतिभा का अकाल है। हालांकि भारत दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसका सत्ताधारी दल, इसकी न्यायपालिका और इसकी ज़रूरत से ज़्यादा लोगों वाली अफ़सरशाही को इन खाली जगहों को भरने के लिए पर्याप्त योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं। 
प्रभु चावला

सरकार के जंग लगे दफ़्तरों में खाली पद पड़े हुए हैं और कुर्सियों पर धूल जमी हुई है। कुछ कुर्सियों को झाड़ पोंछ कर चमका दिया गया है, ताकि उन पर अपने लोग आराम से बैठ सकें, लेकिन दूसरे बड़े और महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हुए हैं।

बीजेपी संसदीय बोर्ड, पार्टी, सतर्कता आयोग, न्यायपालिका, सुरक्षा से जुड़ी सेवाएं, इन सब जगहों में पद वैसे ही खाली पड़े हुए हैं जैसे चाटुकारों का दिमाग खाली होता है। पूर्व में राजनीतिक मौसम विज्ञान के विशेषज्ञों ने कहा है कि आसमान साफ रहेगा, बादल नहीं होंगे न ही बारिश की कोई संभावना है। 

भारी, पर धारदार नहीं

1.3 अरब जनसंख्या वाले देश में प्रतिभा का अकाल है। हालांकि भारत दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसका सत्ताधारी दल, इसकी न्यायपालिका और इसकी ज़रूरत से ज़्यादा लोगों वाली अफ़सरशाही को इन खाली जगहों को भरने के लिए पर्याप्त योग्य लोग नहीं मिल रहे हैं। 

मौजूदा मंत्रिमंडल अब तक का सबसे बड़ा है। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार 'अगली बार' में यकीन नहीं करती, क्योंकि इसके दर्जन भर मंत्रियों के पास दो या उससे ज़्यादा मंत्रालय हैं। इसकी वजह यह है कि भाग्यशाली लोगों में योग्य लोग नहीं हैं।

बीजेपी संसदीय बोर्ड में खाली पद

बीजेपी संसदीय बोर्ड में कई पद खाली पड़े हैं, जिन पर पिछले पाँच साल से धूल जमी हुई है और मकड़े के जाले लटक रहे हैं। 

पिछले मानसून सत्र में बीजेपी के अंदर के लोगों को उम्मीद थी कि बीजेपी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा अपनी क्षमता का इस्तेमाल करेंगे और 11 सदस्यों वाले बोर्ड में खाली पड़े पाँच पदों को भरेंगे। नड्डा अपने कार्यकाल का आधा समय पूरा कर चुके हैं, पर उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं है।

संसदीय बोर्ड के सात सदस्य हैं-नड्डा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चौहान और महासचिव बी. एल. संतोष जो मूल रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हैं और बीजेपी में डेपुटेशन पर भेजे गए हैं। 

narendra modi keeps BJP parliamentary board, CVC posts vacant - Satya Hindi
जे. पी. नड्डा, अध्यक्ष, बीजेपी

बीजेपी के संसदीय बोर्ड का पिछली बार गठन 2014 में हुआ था, जब अमित शाह ने राजनाथ सिंह से अध्यक्ष पद का कार्यभार लिया था। उन्होंने बोर्ड का पुनर्गठन किया था।उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे पुराने व अनुभवी सदस्यों को निकाल बाहर किया था और शिवराज सिंह चौहान व जे. पी. नड्डा को इसमें शामिल किया था। 

एम. वेंकैया नायडू जब उप राष्ट्रपति बन गए तो बोर्ड की एक और कुर्सी खाली हो गई। इसके बाद अनंत कुमार, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की मृत्यु हो गई। हाल ही में एक और पुराने नेता व राज्यसभा में बीजेपी के नेता थावर चंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया। अमित शाह ने अपनी गूढ़ बुद्धिमत्ता का प्रयोग करते हुए इन पदों को नहीं भरने का फ़ैसला किया। 

नड्डा को जनवरी 2020 में जब अध्यक्ष पद मिला, वे उस समय से ही नए नामांकन को लेकर ध्यान की मुद्रा में हैं। बीजेपी के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि वह आधी क्षमता पर काम कर रही है।

यह संसदीय बोर्ड ही है जो नीतियाँ बनाता है, मुख्यमंत्रियों का चुनाव करता है, विधानसभाओं के नेता, राज्यसभा के सदस्य, विधानसभा चुनाव के उम्मीदवार तय करता है।  

बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक बीते दो साल में एक बार भी नहीं हुई है। इस पर अंतिम बार दौड़-धूप 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले की गई थी। केसरिया पार्टी के नेताओं के मुताबिक़, शाह और मोदी अभी भी विश्वसनीय और साफ छवि वाले नेताओं की तलाश में हैं, जो तटस्थ निर्णय ले सकें। 

योग्य लोगों की तलाश

वे महिलाएं, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी तलाश रहे हैं ताकि पुरुष सत्ता को नया रूप दिया जा सके। अभी तो संसदीय बोर्ड में एक भी महिला सदस्य नहीं है। इसकी वजह शायद यह है कि मोदी-शाह के नेतृत्व में पार्टी इतनी कुशलता से काम कर रही है कि पार्टी का अंदरूनी लोकतंत्र उस समय एकदम सख्त हो जाता है जब शीर्ष पर आम सहमति नहीं बन पाती है। और यह कब हो सकेगा, यह तो सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है। 

खोज जारी है

कोई बदलाव नहीं ही सबसे अच्छा बदलाव है? यह दिलचस्प बात है कि मोदी पुरानी शराब को हटा कर उससे भी अधिक पुरानी शराब उस जगह डाल रहे हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय और दूसरे सरकारी विभागों और निकायों के ज़्यादातर खाली पदों को रिटायर हो चुके और कई बार एक्सटेंशन पा चुके अधिकारियों से भरा गया है। कई बार तो यह अंतिम क्षण में किया गया।

प्रतिभा का दिवालियापन 

ऐसा लगता है कि प्रतिभा का दिवालियापन बीजेपी तक सीमित नहीं है। अफ़सरशाही भी इसी कमी का शिकार है। इनफॉर्मेशन ब्यूरो, रिसर्च एंड एनलिसिस विंग, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे तमाम जगहों पर मेजों पर लोग ऐसे जमे हैं मानो उन्होंने खुद को फेवीकोल से चिपका लिया हो। 

नीति आयोग और रक्षा प्रतिष्ठानों में बड़े पदों पर बैठे हुए लोगों को दो-दो बार या उससे अधिक बार सेवा विस्तार मिला। इस तरह दूसरे योग्य अफ़सरों को प्रमोशन नहीं मिल सका। 

खाली जगह भरने की सरकार की नाकामी का खामियाजा सबसे ज़्यादा अफ़सरशाही भुगत रही है। मसलन, सतर्कता आयोग जैसे महत्वपूर्ण विभाग में तीन के बदले सिर्फ एक पद भरा हुआ है, वह कार्यवाहक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त है, जो एक बैंकर है। 

इन पदों पर नियुक्ति के लिए जून में विज्ञापन निकाला गया, लेकिन सेलेक्शन पैनल की बैठक की तारीख़ तय नहीं की गई। प्रधानमंत्री इस पैनल के प्रमुख हैं, उसमें गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं।

सत्ता के गलियारे में चल रही फुसफुसाहटों पर यकीन किया जाए तो बैंक, राजस्व सेवा और आईएएस से रिटायर अफ़सर बड़ी तादाद में हैं जो इन लाभकारी पदों को हथियाने के लिए लॉबीइंग कर रहे हैं। इनमें से एक कार्यकारी निदेशक है जो नवंबर में रिटायर होने वाला है। कुछ और बाबू हैं, जिन्होंने बीते कुछ सालों में राजनीतिक आकाओं की सेवा की है और अब उसका ईनाम चाहते हैं। 

मोदी ने अपने आपको उन विवादास्पद अधिकारियों से दूर रखा है जो उनसे और अमित शाह से नज़दीकी की शेखियाँ बघारते रहते हैं। 

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सीवीसी

सतर्कता आयोग एक बहुत ही ताक़तवर संस्थान है, लिहाज़ा, केंद्र सरकार या सार्वजनिक उपक्रमों का कोई व्यक्ति उस पद पर तब तक नियुक्त नहीं किया जा सकता है जब तक आयोग स्वयं उनके नाम पर को हरी झंडी नहीं दिखाता है। 

सम्मान की पुनर्बहाली, लेकिन पूरी नहीं

लोकतंत्र का तीसरा स्तम्भ न्यायपालिका भी इस बात पर दुखी है कि उसके यहाँ सारे पद भरे हुए नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को नौ खाली पदों को भरने में लगभग तीन साल लग गए। न्यायपालिका में वह दिन ऐतिहासिक बन गया जब एक दिन में सबसे ज़्यादा सुप्रीम कोर्ट जजों ने शपथ ली। 

सभी हाई कोर्ट अपनी क्षमता के 60 प्रतिशत जजों के साथ ही काम कर रहे हैं। विधि मंत्रालय की ओर से लोकसभा में पेश आँकड़ों के अनुसार, हाई कोर्टों में जजों के 1,080 स्वीकृत पदों में से 400 पद खाली पड़े हुए हैं। निचली अदालतों में जजों के 24,247 पद स्वीकृत हैं, उनमें से 4,928 पद खाली हैं।
अर्द्ध न्यायिक और पंचाटों में भी बड़े पैमाने पर पद खाली पड़े हुए हैं। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने सरकार से कहा कि देश के पंचाटों में अध्यक्षों, तकनीकी सदस्यों व न्यायिक सदस्यों के 240 पद खाली पड़े हुए हैं। उन्होंने खुले आम कहा है कि वर्तमान सुप्रीम कोर्ट जजों की अध्यक्षता में बनी सेलेक्शन कमेटियों की सिफ़ारिशों के बावजूद ये पद खाली हैं।

'खेला होबे' का मध्यान्तर

क्या पश्चिम बंगाल में तूफान के पहले की शांति है? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनकड़ दोनों ने ही एक तरह के कठिन युद्धविराम का एलान कर रखा है। इसके पहले उन दोनों लोगों ने ही एक दूसरे पर हमला करने का कोई मौका नहीं गंवाया है। 

पिछले चुनाव के ठीक पहले इन लोगों ने सोशल मीडिया पर एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए सैकड़ों पोस्ट किए। धनकड़ ने 5 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस के ख़िलाफ़ पोस्ट किया, इससे अधिक चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती कि करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए, पर जब से GTA @MamataOfficial सत्ता में आई हैं, कोई ऑडिट नहीं हुआ है। सबको पता है कि GTA भ्रष्टाचार का अड्डा है और इसकी ज़िम्मेदारी बढ़ाने के लिए इसकी जाँच की जानी चाहिए।

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जैन हवाला कांड

दीदी ने धनकड़ को भ्रष्ट व्यक्ति बताया था क्योंकि 1996 के जैन हवाला कांड की डायरी में उनका नाम उन राजनेताओं के साथ पाया गया था, जिन्होंने घूस ली थी। धनकड़ ने इस आरोप को खारिज कर दिया था। 

ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा था, "इस राज्यपाल का नाम जैन हवाला मामले में था। लेकिन वे अदालत चले गए और वहां से क्लीन चिट ले लिया। एक जनहित याचिका दायर की गई है। लेकिन वह लंबित पड़ी हुई है। आप क्या जानना चाहते हैं? मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वह एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं। केंद्र इस तरह के भ्रष्ट आदमी को राज्यपाल क्यों नियुक्त कर देता है? लीजिए  यह चार्जशीट और देखिए कि उनका नाम इसमें है या नहीं।" 

एकदम की चुप्पी से लगता है कि वे अपनी शिकायतों को भूल गए हैं। ममता बनर्जी 14 जुलाई को राजभवन जाकर राज्यपाल से मुलाकात कर आईं। लगभग तीन साल बाद दोनों के बीच बग़ैर किसी अधिकारी की मौजूदगी के लगभग एक घंटे तक बातचीत हुई।

धनकड़ के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया कि माननीय मुख्यमंत्री ने माननीय राज्यपाल से बगैर किसी सहायक के एक घंटे तक बातचीत की। 

उसके बाद से राज्यपाल ने न तो मुख्यमंत्री न ही टीएमसी सरकार के ख़िलाफ़ कोई अपमानजनक टिप्पणी की है। इसके बदले में दीदी और उनके समर्थकों ने दीदी के भतीजे के ख़िलाफ़ एनफोर्समेंट डाइरेक्टरेट के नोटिस के बाबजूद राज्यपाल, गृह मंत्री या प्रधानमंत्री पर कोई हमला नहीं किया है। क्या आमार सोनार बांग्ला में आरोप प्रत्यारोप की जगह सभ्य बातचीत ने ले ली है। देखते रहिए। 

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