क्या दुनिया में कोई ऐसा भी देश है, जहां कोरोना की वजह से अब तक एक भी आदमी न मरा हो? जी हां, ऐसा एक देश है, जिसका नाम वियतनाम है। लगभग साढ़े नौ करोड़ की जनसंख्या वाला यह देश चीन का एकदम पड़ोसी है। यह साम्यवादी पार्टी द्वारा शासित देश है। इसके नेता हो ची मिन्ह की गिनती दुनिया के बड़े नेताओं में हुआ करती थी।
वियतनाम सिंगापुर, ताइवान और द.कोरिया जैसा संपन्न देश नहीं है लेकिन उसने कोरोना को जैसी टक्कर दी है, वैसी कोई और देश नहीं दे सका है। जनवरी से अभी तक इस देश में कोरोना संक्रमण के 270 मामले सामने आए हैं और उनमें से 220 ठीक हो चुके हैं। 50 लोगों का इलाज चल रहा है।
इसका रहस्य क्या है? वियतनाम में चीन से आए दो व्यक्तियों में 23 जनवरी को कोरोना के लक्षण पाए गए लेकिन सरकार ने 16 जनवरी को ही सारे देश को सावधान कर दिया था। ये लोग 13 जनवरी को राजधानी हो ची मिन्ह सिटी में आ गए थे। लगभग इसी समय हमारे केरल में भी कोरोना का एक मामला पकड़ा गया लेकिन हमारी सरकारें खर्राटे खींचती रहीं।
केंद्र सरकार ने लगभग दो-ढाई माह बाद तालाबंदी की घोषणा की। यदि हमारी केंद्र और राज्य सरकारें जनवरी में ही सतर्क हो जातीं और विदेशों से आनेवालों पर कड़ी नज़र रखतीं तो भारत भी दुनिया के लिए एक मिसाल बन जाता।
वियतनाम के पास न तो पर्याप्त जांच-यंत्र हैं, न सांस यंत्र हैं और न ही दवाइयां हैं लेकिन फिर भी उसने कोरोना पर इसलिए काबू कर लिया कि विदेश से आने वाला कोई भी व्यक्ति या उसके संपर्क में आने वाला व्यक्ति वहां तब्लीग़ी जमात के लोगों की तरह छिपा नहीं रहा।
कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचा दिया। वे हमारे नेताओं की तरह अपने घरों में छुपे हुए बैठे नहीं रहे। वियतनाम में एक-पार्टी शासन होने के बावजूद चीन की तरह इंटरनेट और मीडिया पर सरकारी शिकंजा नहीं है।
कोरोना को घोषित किया ‘राष्ट्रीय शत्रु’
सरकार ने गली-गली और घर-घर में पोस्टर लगाकर, रेडियो, टीवी और अख़बारों में विज्ञापन देकर कोरोना को ‘राष्ट्रीय शत्रु’ घोषित कर दिया। कई शहरों, गांवों और मोहल्लों में थोड़े समय के लिए उसने जबर्दस्त तालाबंदी लागू ज़रूर की लेकिन पूरे वियतनाम को बंद नहीं किया। अब वह सहज जीवन की तरफ लौटता जा रहा है।
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