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चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी।फ़ोटो साभार: ट्विटर/शाह महमूद क़ुरैशी

कश्मीर है पाकिस्तान के पाँव की बेड़ी

सबको पता है कि दुनिया की कोई ताक़त डंडे के ज़ोर पर कश्मीर को भारत से नहीं छीन सकती। हाँ, पाकिस्तान बातचीत का रास्ता अपनाए तथा आक्रमण और आतंकवाद का सहारा न ले तो निश्चय ही कश्मीर का मसला हल हो सकता है। वास्तव में कश्मीर तो पाकिस्तान के पाँव की बेड़ी बन गया है। इसके कारण पाकिस्तान का फौजीकरण हो गया है।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

कल दो दृश्य देखने लायक हुए। एक तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने चीन पहुँच कर फिर कश्मीर की ढपली बजाई और दूसरा, फ्रांस के राष्ट्रपति और जर्मनी की चांसलर जब मिले तो दोनों ने एक-दूसरे को हाथ जोड़कर और नमस्ते बोलकर अभिवादन किया। ऐसा ही ट्रंप और इस्राइल के प्रधानमंत्री भी करते हैं। यह देखकर दिल ख़ुश हुआ लेकिन समझ में नहीं आता कि पाकिस्तान अपने इसलामी मित्र-देशों से क्यों कटता जा रहा है?

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वह ज़माना लद गया जब अंतरराष्ट्रीय इसलामी संगठन कश्मीर पर पाकिस्तान की पीठ ठोका करता था। सालों-साल वह भारत-विरोधी प्रस्ताव पारित करता रहा। पिछले साल जब भारत सरकार ने धारा 370 हटाई तो पाकिस्तान का साथ सिर्फ़ दो देशों ने दिया। तुर्की और मलेशिया। सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मालदीव, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान जैसे इसलामी राष्ट्रों ने उसे भारत का आंतरिक मामला घोषित किया। 

पाकिस्तान के आग्रह के बावजूद सउदी अरब ने कश्मीर पर इसलामी संगठन की बैठक नहीं बुलाई। इस पर उत्तेजित होकर क़ुरैशी ने कह दिया कि यदि सउदी अरब वह बैठक नहीं बुलाएगा तो हम बुला लेंगे। इस पर सउदी अरब ने पाकिस्तान को जो 6.2 बिलियन डाॅलर का क़र्ज़ 2018 में दिया था, उसे वह वापस माँगने लगा। उसने पाकिस्तान को तेल बेचना भी बंद कर दिया। 

पाकिस्तान के सेनापति कमर जावेद बाजवा सउदी शहज़ादे को पटाने के लिए रियाद पहुँचे लेकिन वह उनसे मिला ही नहीं। इसीलिए अब चीन जाकर विदेश मंत्री क़ुरैशी ने अपनी झोली फैलाई होगी लेकिन चीन भी आख़िर कब तक पाकिस्तान की झोली भरते रहेगा?

वह कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान का दबी ज़ुबान से पक्ष इसलिए लेता रहता है कि उसे पाकिस्तान ने अपने ‘आज़ाद कश्मीर’ का मोटा हिस्सा सौंप रखा है। वह लद्दाख के भी केंद्र-प्रशासित क्षेत्र बन जाने से चिढ़ा हुआ है। पाकिस्तान के नेता यह क्यों नहीं सोचते कि चीन अपने स्वार्थ के ख़ातिर उसे चने के पेड़ पर चढ़ाए रखता है? राजीव गाँधी के ज़माने में जब भारत-चीन संबंध सुधरने लगे थे, तब यही चीन कश्मीर पर तटस्थ होता दिखाई देने लगा था। 

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सबको पता है कि दुनिया की कोई ताक़त डंडे के ज़ोर पर कश्मीर को भारत से नहीं छीन सकती। हाँ, पाकिस्तान बातचीत का रास्ता अपनाए तथा आक्रमण और आतंकवाद का सहारा न ले तो निश्चय ही कश्मीर का मसला हल हो सकता है। वास्तव में कश्मीर तो पाकिस्तान के पाँव की बेड़ी बन गया है। इसके कारण पाकिस्तान का फौजीकरण हो गया है। ग़रीबों पर ख़र्च करने की बजाय सरकार हथियारों पर पैसा बहा रही है। उसके आतंकवादी जितनी हत्याएँ भारत में करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा वे पाकिस्तान में करते हैं। पाकिस्तान, जो कभी भारत ही था, वह दूसरे देशों के आगे कब तक झोली फैलाता रहेगा?

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
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