इस समय भारत ही नहीं, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के भी ग़ुस्से का शिकार कौन हो रहा है- पाकिस्तान। ईरान के 27 फ़ौजी जवानों को पाकिस्तान के ‘जैश-ए-अदल’ नामक आतंकवादी गिरोह ने मार डाला है। जैसे भारत में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भयंकर ग़ुस्सा फूट रहा है, वैसे ही पूरा ईरान भी ग़ुस्से में उबल रहा है। इधर, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से अपील की है कि वह पाकिस्तान को रोके, क्योंकि वह अफ़ग़ान-तालिबान से सीधे ही सौदेबाज़ी कर रहा है। ऐसा करके वह अफ़ग़ान-संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है।
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के कारण सारी दुनिया में पाकिस्तान की बदनामी पहले से ही हो रही है और अब दो पड़ोसी मुसलिम राष्ट्रों ने भी उसके विरुद्ध कमर कस ली है।
इमरान के पास अच्छा मौक़ा
यह अच्छा हुआ कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तालिबान से अपनी भेंट को रद्द कर दिया है। इसमें शक नहीं कि सउदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने 20 बिलियन डाॅलर पाकिस्तान में खपाने का वादा करके उसे अभय-वचन दे दिया है। अब उसे किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध का मुक़ाबला करने में कोई दिक्क़त नहीं होगी लेकिन इमरान चाहें तो इस नाज़ुक मौक़े पर ज़बर्दस्त पहल कर सकते हैं।- वह अपने सारे आतंकवादी गिरोहों से आत्म-समर्पण करवाकर पड़ोसी देशों को तो शांत कर ही सकते हैं, पाकिस्तान का भी बहुत भला कर सकते हैं। वे चाहें तो आतंकवाद को अपनी फ़ौज का हथियार बने रहने की नीति बदल सकते हैं।
आतंकवाद से पाक ख़ुद भी तबाह हो जाएगा
इस आतंकवाद से पाकिस्तान के पड़ोसी देशों का नुक़सान तो हो ही रहा है लेकिन पाकिस्तान को यह बिल्कुल तबाह कर देगा। पाकिस्तान ने इसके ज़रिए अपने ही विनाश का रास्ता खोल लिया है। वह भस्मासुर बनता जा रहा है। कश्मीर, तालिबान, बलूचों और पठानों से संबंधित सभी मुद्दे ऐसे हैं, जो बातचीत से हल हो सकते हैं। यदि इमरान यह सुरक्षित रास्ता नहीं अपनाएँगे तो उनके प्रधानमंत्री-काल में पाकिस्तान को शायद इतने कठिन दौरे से गुज़रना पड़ेगा कि जैसे दौर से वह पहले कभी नहीं गुज़रा। क्या इमरान यह ऐतिहासिक भूमिका निभाने को तैयार हैं?
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