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किसी भी व्यक्ति या संगठन की जासूसी करने की तैयारी में है सरकार

‘व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षा विधेयक’ के अनुच्छेद 35 के अनुसार सरकार की एजेन्सियां ‘शांति और व्यवस्था’, ‘संप्रभुता’, ‘राज्य की सुरक्षा’ के बहाने किसी भी व्यक्ति या संगठन की जासूसी कर सकती हैं और किसी को भी कोई आपत्ति करने का अधिकार नहीं होगा। 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

संसद की संयुक्त संसदीय समिति ने ‘व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षा विधेयक’ पर अपनी रपट पेश कर दी है। संसद के अगले सत्र में कुछ दिन बाद ही यह विधेयक कानून का रुप ले सकता है। इस समिति के 30 सदस्यों में से छह ने इस विधेयक से अपनी असहमति जताई है। इस विधेयक का उद्देश्य है, सरकार, संस्थाओं और व्यक्तियों की निजता की रक्षा करना। 

दूसरे शब्दों में उनके लेन-देन, कथनोपकथन, गतिविधि, पत्र-व्यवहार आदि पर निगरानी रखना यानि यह देखना कि कोई राष्ट्रविरोधी गतिविधि तो चुपचाप नहीं चलाई जा रही है। इस निगरानी के लिए जासूसी-तंत्र को अत्यधिक समर्थ और चुस्त बनाना आवश्यक है। 

इस दृष्टि से कोई भी सरकार चाहेगी कि उसके जासूसी-कर्म पर कोई भी बंधन नहीं हो। वह निर्बाध जासूसी, जिस पर चाहे, उस पर कर सके। 

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इसी उद्देश्य से इस विधेयक को कानून बनाने की तैयारी है लेकिन पेगासस-कांड ने देश में व्यक्तिशः जासूसी के खिलाफ इतना तगड़ा माहौल बना दिया है कि यह विधेयक इसी रुप में कानून बन पाएगा, इसकी संभावना कम ही है, क्योंकि यह सरकार को निरंकुश अधिकार दे रहा है। 

आपत्ति का भी हक नहीं 

इसके अनुच्छेद 35 के अनुसार सरकार की एजेन्सियां ‘शांति और व्यवस्था’, ‘संप्रभुता’, ‘राज्य की सुरक्षा’ के बहाने किसी भी व्यक्ति या संगठन की जासूसी कर सकती हैं और किसी को भी कोई आपत्ति करने का अधिकार नहीं होगा। 

कोई भी व्यक्ति जो अपनी निजता का हनन होते हुए देखता है, वह न तो अदालत में जा सकता है, न किसी सरकारी निकाय में शिकायत कर सकता है और न ही संसद में गुहार लगवा सकता है। यानि सरकार पूर्णरूपेण निरंकुश जासूसी कर सकती है। 

2018 में जस्टिस श्रीकृष्ण कमेटी ने इस संबंध में जो रपट तैयार की थी, उसमें सरकार की इस निरंकुशता पर न्यायालय के अंकुश का प्रावधान था। लेकिन इस विधेयक में सरकार के अधिकारी ही न्यायाधीश की भूमिका निभाएंगे। 

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अधिकारों का हनन 

संसद की किसी कमेटी को भी निगरानी के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इसका नतीजा क्या होगा? नागरिकों की निजता भंग होगी। सत्तारुढ़ लोग अपने विरोधियों की जमकर जासूसी करवाएंगे। संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों का हनन होगा। 

यह ठीक है कि आतंकवादियों, तस्करों, अपराधियों, ठगों, विदेशी दलालों आदि पर कड़ी नजर रखना किसी भी सरकार का आवश्यक कर्तव्य है लेकिन उसके नाम पर यदि मानव अधिकारों का हनन होता है तो यह भारतीय संविधान और लोकतंत्र की अवहेलना है। 

मुझे आशा है कि संसदीय बहस के दौरान सत्तारुढ़ बीजेपी-गठबंधन के सांसद भी इस मुद्दे पर अपनी बेखौफ राय पेश करेंगे।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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