प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना विषाणु (वायरस) का मुक़ाबला करने के लिए देशवासियों को जो संदेश दिया, वह बहुत ही प्रेरक और सामयिक था। यह वैसा ही था, जैसे कि 1965 में प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जनता से कहा था कि सप्ताह में एक दिन उपवास करें। अब इस रविवार को पूरा भारत बंद रहेगा, यह अपने आप में अपूर्व घटना होगी। नरेंद्र भाई को यही अपील दक्षिण एशिया के सभी राष्ट्रों से भी करनी चाहिए थी। वह अब भी यह कर सकते हैं। दक्षिण एशिया के सभी राष्ट्र, ईरान और बर्मा सहित हमारे आर्य-परिवार के सदस्य हैं।
मोदी ने दक्षेस-राष्ट्रों में कोरोना के विरुद्ध युद्ध करने के लिए जिस सामूहिक कोष का प्रस्ताव रखा है, वह सिर्फ़ उसके इलाज तक सीमित नहीं होना चाहिए। उसका लक्ष्य भयंकर आर्थिक मुसीबतों का सामना करना भी होना चाहिए। करोड़ों मज़दूर, किसान, छोटे व्यापारी, कर्मचारी वगैरह अपना रोज़मर्रा का ख़र्च कैसे चलाएँगे? प्रधानमंत्री चाहें तो 23 करोड़ 53 लाख राशन कार्ड वाले लोगों और 33 करोड़ प्रधानमंत्री जन-धन योजना के खातेवाले लोगों को एक-दो माह के लिए हज़ार-दो हज़ार रुपये की सहायता कर सकते हैं।
केरल सरकार ने कोरोना मरीजों की सहायता के लिए जो 20 हज़ार करोड़ रुपये की घोषणा की है, हमारे अन्य प्रांत भी वैसा ही कर सकते हैं। हांगकांग ने अपने प्रत्येक नागरिक को 10,000 डाॅलर दे दिए हैं। अमेरिका उन्हें 250 अरब डाॅलर दे रहा है। यूरोपीय राष्ट्र भी अपने व्यापारियों और उद्योगपतियों को अरबों डाॅलर की सुविधा दे रहे हैं ताकि वे इस शून्यकाल में अपने कर्मचारियों की मदद कर सकें।
यदि भारत किसी बड़ी राशि की घोषणा दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए कर सके तो यह चमत्कारी क़दम होगा। तेल की क़ीमतें गिरने से भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा इकट्ठी हो रही है। यह संतोष का विषय है कि अब तक कोरोना ने भारत की वह दुर्दशा नहीं की है, जो इटली, चीन या अमेरिका जैसे देशों की हो रही है।
भारत की केंद्र और प्रदेश सरकारें काफ़ी मुस्तैदी दिखा रही हैं। रविवार की शाम को पाँच बजे तालियाँ और थालियाँ बजाने का सुझाव मोदी ने दिया है। मेरा निवेदन है कि संकट की इस घड़ी में यह उत्सवी मुद्रा धारण करने की बजाय 3 मिनट का राष्ट्रीय मौन रखना बेहतर होगा।
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