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राजोआना की फाँसी पर राजनीति; पंजाब बेशक न जले, पर सुलगता रहे

हिंदुस्तान-पाकिस्तान की सरहद पंजाब को बीचोबीच से चीर कर बनी और इसकी क़ीमत पंजाब और पंजाबियों ने अपने ख़ून से चुकाई। जख़्म इतना गहरा था कि हर बार जब लगता है कि वह भर गया है, पंजाब की रगों में बसी ऐसी टीस उभरती है कि पूरा पंजाब, वहाँ का प्रशासन, वहाँ की सरकार, सब कुछ घुटनों के बल बैठ जाता है। आतंकवाद, ख़ून-ख़राबे और आतंकवाद को उखाड़ फेंकने के नाम पर चली पुलिस की ख़ूनी मुहिम ने पंजाब के सीने में जो गहरे-गहरे घाव दिए हैं, उनसे उठने वाली ऐसी ही टीस का नाम है बलवंत सिंह राजोआना।

52 साल के एक आम शक्ल-सूरत, औसत से लंबी कदकाठी वाले पंजाब पुलिस के इस बर्खास्त सिपाही ने अदालत के सामने यह जुर्म क़ुबूल किया है कि उसने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह को मानव बम से उड़ा देने की साज़िश में हिस्सा लिया। 1 अगस्त 1995 को जब मुख्यमंत्री बेअंत सिंह अपने सचिवालय से निकले तो सुरक्षाकर्मी पंजाब पुलिस का एक सिपाही दिलावर सिंह मानव बम बनकर उनका इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही वह बेअंत सिंह के क़रीब पहुँचा उसने ख़ुद पर बंधी बम-जैकेट में विस्फोट कर लिया। इस धमाके में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह समेत कुल 17 लोग मारे गए।

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पूरे देश को हिलाकर रख देने वाली इस घटना को अंजाम देने का ज़िम्मा जिन लोगों को सौंपा गया था उनमें सबसे अहम रोल सिपाही दिलावर सिंह और सिपाही बलवंत सिंह राजोआना का था। दोनों को मानव बम बनकर विस्फोट करने की ट्रेनिंग दी गयी थी। कहते हैं, राजोआना और दिलावर सिंह के बीच सिक्का उछाल कर तय हुआ था कि जब दोनों ख़ुद पर विस्फोटक बाँध कर बेअंत सिंह को मारने के इरादे से उनके नज़दीक जायेंगे तो पहली बारी किसकी होगी। इस टॉस से यह तय हुआ था कि दिलावर सिंह इस विस्फोट को अंजाम देगा और बलवंत सिंह राजोआना रिज़र्व में रहेगा। अगर दिलावर विस्फोट को अंजाम देने में फ़ेल हुआ तो राजोआना विस्फोट कर बेअंत सिंह को उड़ाएगा, पर बचने नहीं देगा। रिकॉर्ड्स के मुताबिक़ मानव बम दिलावर सिंह पर विस्फोटक जैकेट बलवंत सिंह ने ही बाँधी थी।

भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में 12 साल चले मुक़दमे में राजोआना ने वकील की मदद लेने से इनकार कर दिया। उसने अपना जुर्म क़ुबूल किया और कहा कि बेअंत सिंह की हत्या करने की साज़िश में शामिल होने का उसे कोई पछतावा नहीं है। उलटे उसे इसका गर्व है।

2007 में बलवंत सिंह को फाँसी की सज़ा होने से पहले दो बार इस मामले में जेल में बंद आतंकवादियों ने जेल से भागने की कोशिश की।

पहली बार आरडीएक्स से जेल को उड़ाकर भागने की साज़िश की गयी। पुलिस ज़्यादतियों के कई संगीन आरोप झेल रहे पंजाब पुलिस के पूर्व इंस्पेक्टर गुरमीत सिंह पिंकी ने पत्रकार कँवर संधू को दिए वीडियो इंटरव्यू में दावा किया था कि ख़ुद बलवंत सिंह राजोआना ने उनको इस साज़िश की जानकारी दी, जिसके आधार पर पुलिस ने छापेमारी कर आरडीएक्स बरामद किया और साज़िश का पर्दाफ़ाश किया। हालाँकि राजोआना ने इस दावे का पुरजोर खंडन किया और जेल में गुपचुप मिलने पहुँचे कँवर संधू पर हमला भी किया।

दूसरी बार जब उसके साथियों जगतार सिंह उर्फ़ हवारा, परमजीत सिंह उर्फ़ भ्योरा और जगतार सिंह उर्फ़ तारा ने जेल में सुरंग खोद कर फ़रार होने की साज़िश की, बलवंत ने उनके साथ फ़रार होने से इनकार कर दिया। हवारा, भ्योरा और तारा सुरंग बनाकर जेल से फ़रार हो गए, पर बलवंत उनके साथ नहीं भागा।

राजोआना कट्टरपंथियों का पोस्टर ब्वॉय

यही वजह थी कि राजोआना कट्टरपंथियों का पोस्टर ब्वॉय बनता चला गया और जब कोर्ट ने उसको फाँसी पर लटकाए जाने की तारीख़ तय की तो पंजाब में उपद्रव शुरू हो गया। राजोआना को 30 मार्च 2012 को फाँसी दी जानी थी। दो दिन पहले यानी 28 मार्च 2012 को केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस सरकार ने घुटने टेक दिए और राजोआना की फाँसी पर रोक लगा दी।

पेशेवर राजनेताओं ने पंजाब के इस दु:स्वप्न, इस दर्द को इस कमाल की उस्तादी के साथ अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया जिसकी मिसाल कहीं और मिलनी मुश्किल है। जबकि एक आम पंजाबी इस तलाश में रहा है कि वह इस लड़ाई में किस तरफ़ है, राजनीतिक लोग दोनों तरफ़ अपना फ़ायदा तलाशते रहे हैं।
जिस कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री की बलवंत ने हत्या की, उसी कांग्रेस पार्टी की सरकार ने उसकी फाँसी पर रोक लगाई। अब जबकि राष्ट्रवाद देश में अकेला स्थापित और नॉन निगोशिअबल नैरेटिव है, केंद्र सरकार ने उस बलवंत सिंह राजोआना की फाँसी की सज़ा को उम्रकैद में बदलने का फ़ैसला किया है जो पुलिस मुलाज़िम और सुरक्षाकर्मी होते हुए, पंजाब के मुख्यमंत्री की हत्या में शरीक होने का जुर्म क़ुबूल कर चुका है।
कांग्रेस और बीजेपी में होड़ लगी है कि बलवंत की फाँसी को उम्रकैद में बदलवाने का श्रेय कौन झटक ले। कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कह रहे हैं कि उन्होंने उसकी सिफ़ारिश केंद्र से की थी। बीजेपी केंद्र की मोदी सरकार की पीठ थपथपा रही है।

बीजेपी के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल कांग्रेस को कोस रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी का आभार जता रहे हैं।

बीजेपी पंजाब में अपने बूते जीत हासिल करने का रास्ता तलाश रही है। कांग्रेस अगले चुनाव में बीजेपी को रोकने की जुगत में है। अकाली राजनैतिक तौर पर अप्रासंगिक होने से बचना चाहते हैं। सबके राजनैतिक फ़ायदे की क़ीमत हमेशा पंजाब के लोगों ने चुकाई है। आतंकवाद और उसे उखाड़ फेंकने की मुहिम में जो हज़ारों लाशें पंजाब में बिछायी गयीं, उनमें वे भी थे जो आतंकवादी बने या जिनपर आतंकवादी होने का शक था। वे भी मारे गए जिनपर आतंकवादियों का साथ देने का शक था, मरने वालों में पुलिसवाले और उनके परिवारवाले भी शामिल हैं, और वे भी जिन्होंने पुलिस का साथ दिया या जिनपर पुलिस मुखबिर होने का शक था। मरने वालों की लम्बी लिस्ट में बहुत बड़ी तादाद उन बेगुनाहों की है, जिनका कोई लेना देना नहीं था, जो किसी तरफ़ नहीं थे।

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राजोआना राजनीति का मोहरा भर

बड़ी मुश्किल से लगता है कि पंजाब पटरी पर आया है। इस राज्य की समस्याएँ अब आतंकवाद, हिंसा, हिरासत में मौतें और अस्थिरता नहीं हैं। समस्याएँ हैं आत्महत्या करते किसान, बेरोज़गारी, नशा और भ्रष्टाचार। पर राजनीति की अपनी ज़रूरतें हैं। उसके लिए पंजाब जले बेशक न, पर सुलगता ज़रूर रहे। ऐसे में कट्टरपंथियों का पोस्टर ब्वॉय बलवंत सिंह राजोआना राजनीति का मोहरा भर लगता है, जिससे हर पार्टी अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ खेलना चाहती है। कभी फाँसी के तख्ते पर चढ़ा कर और कभी फाँसी के तख्ते से उतार कर। क़ानून जैसी बातों का तो खैर कोई मतलब बचा नहीं है।

ये तो रही पंजाब की राजनीति की बात। उधर राष्ट्रीय राजनीति में फ़ायदे-नुक़सान का अलग गणित है, इसलिए अलग क़िस्म के सवाल हैं। एक सवाल यह है कि अगर मुख्यमंत्री को बम से उड़ाने वाले बलवंत सिंह राजोआना को फाँसी से माफ़ी दी जा रही है, तो अफज़ल को और याकूब मेमन को फाँसी क्यों? इस सवाल का न कोई जवाब है, न कोई इसका जवाब ढूंढना चाहता है। बस देश की जनता जितना ज़्यादा इस सवाल को दोहराए, दोनों तरफ़ की राजनीति करने वालों का उतना फ़ायदा है।

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दीपक बाजपेयी

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