ताजा ख़बर यह है कि उत्तराखंड के सभी मंदिरों में अब यह प्रतिबंध लगेगा कि उनमें कोई मुसलमान नहीं जा सकता। क्यों नहीं जा सकता? इसके उत्तर में हिंदू युवा वाहिनी के लोगों का अपना तर्क है। वे कहते हैं कि इन मंदिरों में पहुंचकर मुसलमान लड़के हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसा लेते हैं।
यदि सचमुच ऐसा होता है तो यह बहुत बुरा है लेकिन इनसे कोई पूछे कि क्या यही काम अन्य स्थानों पर नहीं होता होगा? यदि होता है तो देश के स्कूलों-कालेजों, मोहल्लों, बाजारों, अस्पतालों, सड़कों आदि में हर जगह पर इस प्रतिबंध की मांग ये लोग क्यों नहीं करते? ये प्रतिबंध हर जगह लगवाइए और आप देश में एक नए पाकिस्तान की नींव डाल दीजिए।
लालच, भय और बहकाकर की गई कोई भी शादी अनैतिक है, वह हिंदू से मुसलमान की हो या मुसलमान से हिंदू की! मैं अंतधार्मिक, अन्तर्जातीय, अंतरप्रांतीय और अंतर्वर्गीय शादियों का सदा स्वागत करता हूं क्योंकि वे भारत की एकता और सहिष्णुता को बलवान बनाएंगी। देश की कोई भी मसजिद हो, मंदिर हो, गिरजा हो, गुरुद्वारा हो, साइनेगाॅग हो- वहां सबको जाने की अनुमति क्यों नहीं होनी चाहिए? यदि धर्म-स्थल भगवान के घर हैं तो वहां भेद-भाव कैसा?
यदि आप भेद-भाव करते हैं तो यह साफ है कि आपने भगवान के घर को अपना घर बना लिया है। यदि ईश्वर एक है तो सभी मनुष्य उसी एक ईश्वर के बच्चे हैं। मैं न तो मूर्ति-पूजा करता हूं, न नमाज पढ़ता हूं और न ही बाइबिल की आयतें लेकिन मुझे देश और दुनिया के मंदिरों, मसजिदों, गिरजों, गुरुद्वारों और साइनेगॉगों में जाना बहुत अच्छा लगता है। वहां मुझे बहुत शांति, भव्यता और पवित्रता का अनुभव होता है।
मुझे आज तक ताशकंद, काबुल, तेहरान, ढाका, अबू धाबी, लाहौर, पेशावर आदि की मसजिदों में जाने से किसी ने कभी नहीं रोका; रोम, पेरिस और वाशिंगटन के गिरजाघरों में मेरे भाषण भी कई बार हुए। लंदन के साइनेगाॅग में अपने यहूदी मित्रों के साथ भी मैं उनकी प्रार्थना में शामिल हुआ।
मैं तो भगवान से बड़ा इंसान को मानता हूं। सभी इंसानों की खुशी और भला ही सबसे बड़ा धर्म है। सारे धर्म और धर्मग्रंथ ईश्वरकृत हैं, इसमें भी मुझे संदेह होने लगा है लेकिन इनका आदर इसलिए ज़रूरी है कि इनके मानने वालों के लिए आपके दिल में प्रेम और सम्मान है। वह पूजा-गृह भी क्या पूजा-गृह है, जहां किसी अन्य पूजा-पद्धतिवालों का प्रवेश-निषेध हो?
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