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सुप्रीम कोर्ट की अपनी ही बार से दूरी क्या स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए शुभ संकेत है?

सुबह ही मेरे एक मित्र विजय जैन, जो कि 43 सालों से सुप्रीम कोर्ट में वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहे हैं, ने एक ऐसा प्रश्न किया जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया। प्रश्न बहुत ही सीधा व सरल था लेकिन उसकी गहराई देखो तो यह बड़ी ही गंभीर बात है। 

प्रश्न था - "सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश कब से आरम्भ हो रहा है?" सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के हिसाब से ग्रीष्मकालीन अवकाश 18 मई से शुरू होकर 6 जुलाई, 2020 तक रहने वाला है लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते सुप्रीम कोर्ट का सामान्य कामकाज 16 मार्च से बंद है। यह अलग बात है कि वर्चुअल कोर्ट या वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट अति महत्वपूर्ण व आवश्यक मामलों की सुनवाई कर रहा है। 

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देश के कई न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से यह सूचना आती है कि इस बार सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश को कम या समाप्त कर दिया जायेगा तथा सुप्रीम कोर्ट इस दौरान वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से ज्यूडिशल कामकाज करता रहेगा। 

वकील विजय जैन या किसी अन्य वकील को ग्रीष्मकालीन अवकाश समाप्त कर देने या कम कर देने से कोई आपत्ति नहीं है। उनकी आपत्ति है कि ऐसी किसी भी योजना पर अमल करने से पहले सुप्रीम कोर्ट बार के सदस्यों या पदाधिकारियों से कम से कम चर्चा तो करनी चाहिए। 

क्या देश की सबसे बड़ी अदालत के लिए यह सही बात है कि सुप्रीम कोर्ट में दशकों तक प्रैक्टिस करने वालों को भी सुप्रीम कोर्ट के बारे में जानकारी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट या बार एसोसिएशन से न मिलकर, समाचार पत्रों या न्यूज़ पोर्टल से मिले?

लॉकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यहां की निर्वाचित बार के पदाधिकारियों से कोई भी चर्चा करनी लगभग बंद ही कर दी है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अपना नाम न छापने के अनुरोध के साथ कहा कि कितने दुःख की बात है कि पिछले लगभग दो माह से सुप्रीम कोर्ट ने हमसे किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर राय-मशविरा या चर्चा नहीं की है। 

उनका आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट के जज बार के सिर्फ दो-चार वरिष्ठ वकील जो कि केंद्र सरकार के हिमायती माने जाते हैं, से चर्चा करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन या सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के किसी भी पदाधिकारी तक को अभी तक यह नहीं पता है कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में सामान्य सुनवाई व ज्यूडिशल कामकाज कब से शुरू होगा?  

सुप्रीम कोर्ट बार का एक बड़ा वर्ग वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से की जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया को सिर्फ छलावा मानता है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील परिमल कुमार का कहना है कि जब सरकार ने धीरे-धीरे लगभग हर क्षेत्र में कामकाज की अनुमति दे दी है तो सुप्रीम कोर्ट की सामान्य सुनवाई से क्यों परहेज हो रहा है?

सिंगल बेंच की खंडपीठ का गठन क्यों?

एक अन्य सबसे बड़ा फ़ैसला जो सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान किया है, वह है सिंगल बेंच की खंडपीठ का गठन व सिंगल बेंच के माध्यम से कुछ मामलों की सुनवाई का निर्णय। अभी तक लागू सुप्रीम कोर्ट रूल्स 2013 के आर्डर VI (1) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में किसी भी मामले की सुनवाई के लिए गठित खंडपीठ में कम से कम दो जज होने चाहिए। 

लेकिन 11 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने बड़ा निर्णय लेते हुए अधिसूचना जारी करवा दी कि 13 मई, 2020 से जमानत, फौजदारी व दीवानी मामलों के ट्रांसफर पिटीशन जैसे मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की सिर्फ एक सदस्यीय खंडपीठ करेगी। 

मुख्य न्यायाधीश के इस निर्णय से सुप्रीम कोर्ट बार के अधिकांश वकील अचंभित हैं। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष रुपिंदर सूरी ने तो 13 मई, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व पांच अन्य जजों को पत्र लिखकर सिंगल बेंच के गठन व सुनवाई को रोके जाने का अनुरोध किया है। 

सूरी का तर्क है, "दो जजों की खंडपीठ का फायदा यह होता है कि वह किसी भी मुद्दे पर अंतिम निर्णय देने से पहले आपस में मंत्रणा कर लेते हैं। कभी-कभी किसी वैधानिक बिंदु पर दो जजों की राय अलग-अलग होती है तो वह मामला किसी अन्य बेंच या विस्तृत बेंच को ट्रांसफ़र कर दिया जाता है। यह अपने आप में दर्शाता है कि जज भी मानव ही हैं तथा उनसे भी ग़लती हो सकती है।”

चर्चित 'पत्रकार' अर्नब गोस्वामी की याचिका को लॉकडाउन के दौरान ही जब सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया तो सुप्रीम कोर्ट के अनेकों वकीलों ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई।

वकील रीपक कंसल ने तो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के भेदभावपूर्ण रवैये के ख़िलाफ़ मुख्य न्यायाधीश व सेक्रेटरी जनरल तक को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। 

न्यायिक प्रणाली अमीरों के पक्ष में!

सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने वाले न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने भी 6 मई, 2020 को अपने विदाई समारोह में स्वीकार किया कि देश की न्यायिक प्रणाली अमीर व प्रभावशाली लोगों के पक्ष में होती जा रही है तथा अब समय आ गया है कि न्यायिक प्रणाली की खामियों को दूर किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने मामलों की लिस्टिंग में कैसे एकरूपता हो, इस बारे में बार से कोई संवाद ही नहीं किया है और न ही सुझाव मांगे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि हकीकत में देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे से दूरी रखना चाहती है क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट में मोदी व अमित शाह के मामलों में उनके ख़िलाफ़ खड़े रहे हैं तथा वह भी काफी प्रभावी रूप से। 

यह तो सच्चाई है कि अदालत में वकील का कर्तव्व अपने क्लाइंट की पैरवी करना होता है और इसे राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिये। देश की लगभग सभी हाई कोर्ट की बार व वहां की न्यायपालिका में मधुर सम्बन्ध व पर्याप्त संवाद है। लगभग यही हाल देश की जिला अदालतों व वहाँ की बार का है। 

देश की सबसे बड़ी अदालत तथा वहां की बार भी इसी मधुर सम्बन्ध व संवाद की हक़दार है। स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पी.डी. गुप्ता बनाम राम मूर्ति नामक केस में बार व न्यायपालिका की भूमिका के बारे में कहा है कि जज व वकील एक दूसरे के पूरक होते हैं। न्यायिक प्रणाली तभी सुचारू रूप से कार्य कर सकती है जब दोनों में पर्याप्त संवाद हो। 

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अनिल कर्णवाल

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