loader

तालिबान से सहानुभूति या विरोध गद्दारी या देशभक्ति कैसे?

तालिबान की तारीफ करना देशद्रोह है, आतंकवाद या कट्टरवाद का समर्थन है? क्या ऐसा करने वालों को हिन्दुस्तान में रहने का अधिकार नहीं है? इसके उलट प्रश्न है कि तालिबान का विरोध किए बगैर क्या कोई देशभक्त नहीं हो सकता या फिर आतंकवाद या कट्टरवाद का विरोधी नहीं हो सकता या फिर लोकतंत्रवादी और प्रगतिशील नहीं हो सकता? दोनों प्रश्नों को मिलाकर देखें तो तालिबान पर हमारी समझ ही क्या हमें लायक या नालायक बनाएगी?

यूएन ने भी यह साफ कर दिया है कि तालिबान पर प्रतिबंध जारी रहेगा लेकिन उसे आतंकवादी संगठन के रूप में आगे नहीं देखा जा सकता क्योंकि वह एक देश की राजनीतिक व्यवस्था का सक्रिय भागीदार है। 

ऑस्ट्रेलिया ने खुलकर यूएन की इस सोच का समर्थन किया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत इस वक्त यूएन की सुरक्षा परिषद का अस्थायी अध्यक्ष है।

ताज़ा ख़बरें

बंटे हुए हैं देश

सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य यानी वीटो पावर वाले देश तालिबान को लेकर बंटे हुए हैं। रूस और चीन अफ़ग़ानिस्तान में अपने दूतावास जारी रखे हुए हैं और दोनों ने तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है। वहीं, अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस ने नयी सरकार को मान्यता तो नहीं दी है लेकिन, तालिबान को सत्तासीन बनाने में यूरोपीय संघ और अमेरिका का पूरा योगदान है। 

तालिबान से लगातार बातचीत के बाद ही अमेरिकी फौज ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ा है। स्वयं भारत सरकार तो औपचारिक वार्ताओं का हिस्सा नहीं रही लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर तालिबान के संपर्क में रहे हैं। 

देखिए, तालिबान के बढ़ते असर पर चर्चा- 

जनता के बीच बहस

तालिबान से संपर्क में नहीं है तो वह किसी भी देश की आम जनता है। फिर भी तालिबान के नाम पर दुनिया में यही जनता बंटी हुई है और एक-दूसरे से बहस कर रही है। हिन्दुस्तान में तालिबान के समर्थन या विरोध की बहस बड़ा सियासी मुद्दा बन चुकी है। देशभक्ति और गद्दार की परिभाषाएं इस बहस के दौरान टेलीविजन चैनलों पर गढ़ी जा रही हैं। 

Taliban supporters in india controversy  - Satya Hindi

मुनव्वर राणा की बात में दम

शायर मुनव्वर राणा फरमा रहे हैं कि हम अफ़ग़ानिस्तान से अपने सदियों पुराने रिश्तों को देखें न कि तालिबान के प्रति नजरिए के हिसाब से हम इस रिश्ते पर आंच आने दें। वे आतंकवाद को लेकर सिर्फ तालिबान को कोसने से बचना चाहते हैं। उनका कहना है कि अमेरिका जब किसी देश में बम बरसा रहा होता है तो वह भी आतंकवाद है। 

यह जरूरी नहीं कि कोई मुनव्वर राणा के विचार को मान ले। मगर, ऐसा क्यों है कि अगर मुनव्वर राणा के विचार पसंद नहीं आए तो हम उन्हें देशद्रोही करार दें या फिर आतंकवाद और कट्टरवाद का समर्थक मान लें? 

कल्पना कीजिए कि भारत की सरकार अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता दे देती है। उस स्थिति में आज के तालिबानी समर्थक का ‘कसूर’ क्या माफ हो जाएगा? और, आज के तालिबानी विरोधी नयी परिस्थिति में क्या ‘कसूरवार’ हो जाएंगे?
सच यह है कि भारत सरकार के उस फैसले पर भी हमारी राय मुख्तलिफ होगी कि तालिबान सरकार को मान्यता देना सही है या ग़लत? लेकिन, ऐसी मुख्तलिफ राय हमें देशविरोधी और देशभक्त के खांचे में क्यों बांटने लग जाती हैं?- यही चिंता का सबब है।

शरीयत को अहमियत 

तालिबान शरीयत के हिसाब से अफ़ग़ानिस्तान का प्रशासन चलाने का ख्वाहिशमंद है। कम से कम वह इस बात का दिखावा करता है। मगर, तालिबान का व्यवहार उसके दावे के विपरीत रहा है। 

शरीयत के क़ानून से चलने का दावा करने के बावजूद दुनिया का कोई भी इसलामिक देश मानवता की कसौटी पर बिल्कुल खरा नहीं उतर सका है। इसके बजाए शरीयत लागू करने की ज़िद से ज़ोर-ज़ुल्म बढ़े हैं। क्या ऐसे देशों से हमें संबंध नहीं रखना चाहिए? वास्तव में ऐसे विचार अपने आप में तालिबानी हैं।

तालिबान अगर शरीयत के नाम पर ज़ुल्म की व्यवस्था थोपना चाहता है तो क्या हम हिन्दुस्तान में तालिबान के विरोध को सुनिश्चित करने की जिद करते हुए ज़ुल्म की व्यवस्था बनाएंगे? यह सच है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन से संबंध रखना क़ानूनन ग़लत है। 

मगर, तालिबान के मामले में यूएन तक को नये सिरे से सोचने को बाध्य होना पड़ा है क्योंकि तालिबान महज सशस्त्र संगठन नहीं, अफ़ग़ानिस्तान की शासन-व्यवस्था का सिरमौर है या बनने जा रहा है। क़ानूनन ग़लत रहते हुए भी व्यावहारिक नजरिया दिखाना दुनिया की सरकारों की विवशता बन चुकी है। क्या आम लोग इस सच्चाई से आंखें मूंद लेंगे?

प्रतिबंधित आतंकी संगठन से संबद्धता या उसके लिए सक्रियता तो क़ानूनन ग़लत है लेकिन केवल जुबानी समर्थन या सहानुभूति क़ानूनन ग़लत नहीं होता। अगर ऐसा हुआ तो सही-ग़लत के लिए वैचारिक द्वंद्व की संभावना ही खत्म हो जाएगी जो लोकतंत्र के जिन्दा रहने का आधार है।

सियासत और मजहब 

अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति यह सोचने को भी विवश करती है कि मजहब के नाम पर जब-जब सियासत आगे बढ़ती है तो उसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम विवेचना करें कि हमारे देश की सियासत भी मजहब का सहारा न ले। चुनावी घोषणापत्रों में राम मंदिर की जगह बने या अल्पसंख्यकों को लुभाया जाए या फिर धर्म के आधार पर सीएए कानून बनाए जाएं- सियासत में धर्म की घुसपैठ के नतीजे कभी अच्छे नहीं हो सकते। 

अमेरिका आतंकवादी देश?

इराक पर अमेरिकी हमले हुए। इराक के राष्ट्रपति को मुकदमा चलाकर फांसी दे दी गयी। उन पर रासायनिक हथियार जमा करने के इल्जाम लगाए गये। मगर, बाद में पता चला कि ऐसा कोई जखीरा इराक ने जमा नहीं किया था। जाहिर है कि सद्दाम हुसैन को दी गयी फांसी का आधार ही ग़लत साबित हो गया। 

विचार से और ख़बरें

आतंकवादी कौन? 

तालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा करता है तो यह गृहयुद्ध का उदाहरण है। लेकिन, अमेरिका अगर अफ़ग़ानिस्तान को तबाह कर तालिबान सरकार की जगह अपनी कठमुल्ला सरकार बिठाता है तो यह गृहयुद्ध नहीं, एक संप्रभु देश में पराए देश का हस्तक्षेप है। यह हस्तक्षेप क्या किसी आतंकवाद से कम है? 

तालिबान ग़लत है, महिला विरोधी है या दकियानूस है तो इसका विरोध स्थानीय जनता को करने दिया जाना चाहिए। तालिबान के खिलाफ जनता के संघर्ष का समर्थन भी किया जा सकता है। तालिबान को ग़लत भी ठहराया जा सकता है। 

मगर, ऐसी सोच से किसी अन्य देश में देशभक्ति और देशविरोध कैसे तय हो सकता है? हिन्दुस्तान के लोगों को तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान के संदर्भ में इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें