loader

क्या मुसलमान होना गुनाह है?

मुनव्वर राणा ने जैसे ही कहा कि यूपी में मुसलमान होना ही गुनाह हो गया है, देशभर में बवंडर खड़ा हो गया। इस बयान को इस रूप में भी लिया गया कि एक पारिवारिक विवाद को पूरे मुस्लिम समुदाय से जोड़कर विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश मुनव्वर राणा ने की है। वास्तव में मुनव्वर ने अपना बयान दोहराया है। एक महीना पहले भी उन्होंने कहा था कि अगर सीएम योगी दोबारा मुख्यमंत्री बनते हैं तो वे उत्तर प्रदेश छोड़ देंगे। बल्कि, यह समझ लेंगे कि यूपी मुसलमानों के रहने लायक नहीं रह गया है।

मुनव्वर राणा के बयान को अगर पारिवारिक क़लह पर विक्टिम कार्ड के तौर पर देखेंगे तो बयान में एक शायर की जो पीड़ा व्यक्त हो रही है उसे कभी नहीं समझा जा सकता। जो बात मुनव्वर कह रहे हैं कोई दूसरा क्यों नहीं कह पा रहा है? क्या असुद्दीन ओवैसी यही बात नहीं कह सकते थे?

ताज़ा ख़बरें

दूसरे मुसलमान नेता, इस्लामी स्कॉलर, मुल्ला यही बात क्यों नहीं कह पाए अब तक? इसकी वजह यह नहीं है कि मुसलमानों के बीच यह खयालात नहीं हैं कि उनके लिए महफ़ूज़ रहने की फ़िजा ख़राब हुई है। वास्तव में मुनव्वर राणा ने उस यथार्थ को व्यक्त करने का सामर्थ्य और साहस दिखलाया है जो एक सदाबहार शायर में ही हो सकता है।

मुनव्वर राणा पहले भी बता चुके हैं कि बीजेपी सरकार का एक ही काम है कि किसी भी तरीक़े से मुसलमानों को परेशान करो। चाहे वह तरीक़ा धर्मांतरण क़ानून हो या जनसंख्या नियंत्रण क़ानून या फिर आतंकवाद के नाम पर नहीं रुकने वाली मुसलमानों की गिरफ्तारियाँ हों। मुनव्वर राणा की जो भावना है आम मुसलमानों की भी वही है। और, इसके पीछे की 7 बड़ी वजहों को समझना ज़रूरी है।

1. यूपी में 23 मुसलमानों की मौत पर चुप्पी क्यों?

सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान उत्तर प्रदेश में 23 लोग गोली से मारे गये थे। उत्तर प्रदेश की पुलिस ने कहा कि उसने गोली नहीं चलायी। फिर किसने गोली चलायी? क्या मुसलमानों ने मुसलमानों पर गोली चलायी? परिजनों पर दबाव डालकर लाशों का रातों-रात अंतिम संस्कार करा दिया गया था। न तो सत्ताधारी पार्टी और न ही विपक्ष की किसी पार्टी ने ही कभी इस मुद्दे को परवान चढ़ने दिया। मुसलमानों के जख्म पर मरहम लगाने कोई सामने नहीं आया। ऐसे में मुसलमान खुद को अकेले क्यों न समझे?

why munawwar rana says being a muslim in up is the biggest crime - Satya Hindi

2. रिकवरी सिर्फ़ मुसलमानों से ही क्यों?

सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान ही उपद्रव भी हुए थे। उस उपद्रव में जो सार्वजनिक संपत्ति का नुक़सान हुआ, उसे लेकर एक हज़ार से ज़्यादा मुसलमान गिरफ्तार हुए। 327 एफ़आईआर दर्ज की गई थी। डेढ़ सौ से ज़्यादा उपद्रवियों के नाम पोस्टर जारी हुए। नुक़सान हुई संपत्ति की रिकवरी के लिए नोटिस भेजे गये। हॉर्डिंग्स लगीं। सवाल यह है कि क्या कभी उस घटना के बाद या उससे पहले रिकवरी की कोशिश किसी उपद्रव के बाद हुई? अगर नहीं, तो यह मुसलमानों के साथ भेदभाव क्यों नहीं है?

3. मॉब लिंचिंग पर सीएम चुप क्यों?

मॉब लिंचिंग की घटनाएँ डबल इंजन की सरकारों में लगातार बढ़ती गयी हैं। सिर्फ़ गो-रक्षा के नाम पर घटी लिंचिंग की घटनाओं पर नज़र डालें तो 2014 में 3, 2015 में चौगुनी यानी 12, 2016 में दुगुनी यानी 24, 2017 में 37, 2018 में 9 मॉब लिंचिंग की घटनाएँ हुईं। 2014 से 2018 के बीच इन सभी 85 घटनाओं में 34 मौतें हुईं और 285 लोग घायल हुए। मॉब लिंचिंग की ये वो घटनाएँ हैं जिनमें पीड़ित मुसलमान रहे। अगर दलितों को भी जोड़ लें 2018 तक पिछले चार साल में 134 मॉब लिंचिंग की घटनाओं में 68 लोगों की मौत हुई थी।

मतलब साफ़ है कि डरे हुए मुसलमान ही नहीं, दलित भी हैं। इन घटनाओं पर कभी बीजेपी या उसके नेतृत्व वाली सरकार के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री ने संवेदना प्रकट नहीं की। ऐसे में दलित और ख़ासकर मुस्लिम खुद को क्यों न असहाय समझें जिनके विरुद्ध बीजेपी का दुष्प्रचार लगातार चलता रहता है?

4. यूएपीए का दुरुपयोग 

यूएपीए जैसे कठोर क़ानूनों का इस्तेमाल मुसलमानों ने सबसे ज़्यादा झेला है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक़ 2016 से 2019 के बीच राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों और दलितों को परेशान करने वाली घटनाओं की संख्या 2008 रही, जिनमें लिंचिंग भी शामिल है। इन घटनाओं में 43 फ़ीसदी मामले सिर्फ़ उत्तर प्रदेश से रहे। ऐसे में राणा मुनव्वर अगर कह रहे हैं कि मुसलमान होना गुनाह है तो उस पर सवाल क्यों उठने चाहिए?

 5. क्या यूएपीए मुसलमानों को जेलों में ठूंसने के लिए?

देश में 2019 तक यूएपीए से जुड़े मामलों की संख्या 2,361 थी। इनमें से सिर्फ़ 113 का ही निस्तारण हो सका था जिनमें 33 लोग दोषी ठहराए गये जबकि बरी या आरोप मुक्त होने वालों की तादाद 80 रही। सिर्फ़ 4.79 फ़ीसदी मामलों का ही निपटारा हुआ। बाक़ी 95.21 फ़ीसदी मामले लंबित रह गये। अब यही लंबित मामले 98 फ़ीसदी जा पहुँचे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि यूएपीए की धाराओं में सिर्फ़ लोग जेलों में ठूंसे जा रहे हैं। न सुनवाई हो रही है न मामले का निपटारा हो रहा है। कौन नहीं जानता कि इन धाराओं में गिरफ्तार होने वालों में सबसे ज़्यादा संख्या मुसलमानों की है।

विचार से ख़ास

6. मुसलमानों को कोरोना फैलाने वाला क्यों बताया? 

खुलकर देशभर में कोरोना के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया गया। फर्जी और डॉक्टर्ड वीडियो का इस्तेमाल कर मुसलमानों के विरुद्ध नफ़रत फैलायी गयी। बीजेपी का आईटी सेल, मंत्री, विधायक, नेता समेत मुख्य धारा की मीडिया ने ट्विटर और वीडियो के माध्यम से ‘कोरोना जेहाद’ का दुष्प्रचार किया। कोरोना के बारे में सरकारी प्रेस ब्रीफिंग तक में जमात वाले संक्रमण कहते हुए इस नफ़रत को मज़बूत किया गया। मुसलमान ऐसा क्यों न सोचें कि आख़िर उनके विरुद्ध नफ़रत फैलाने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

7. जनसंख्या नियंत्रण बहाना है, मुसलमान निशाना है

बीजेपी के नेता जनसंख्या बढ़ाने में मुसलमानों से प्रतियोगिता करने की बात कहते रहे हैं। आज वही बीजेपी जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की पैरोकारी कर रही है। ऐसा करते हुए वह मुसलमानों पर जनसंख्या विस्फोट की तोहमत झेल रही है। मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि दर हिन्दुओं के मुक़ाबले अधिक है लेकिन यह भी सच है कि जनसंख्या वृद्धि दर में आयी कमी मुसलमानों में हिन्दुओं से कहीं ज़्यादा है। ऐसे में मुसलमान क्यों न समझें कि जनसंख्या नियंत्रण बहाना है असली मक़सद मुसलमानों पर निशाना है?

why munawwar rana says being a muslim in up is the biggest crime - Satya Hindi

बहुसंख्यक समुदाय पर विश्वास होता है तभी अल्पसंख्यक खुद को सुरक्षित समझता है। बंटवारे के बाद जो मुसलमान हिन्दुस्तान में रह गये उन्हें बहुसंख्यक हिन्दुओं और देश के नेतृत्व पर भरोसा था। इस विश्वास को बचाए और बनाए रखने में सरकार की भूमिका अहम होती है। मुसलमान असुरक्षित हैं तो उन्हें सुरक्षित महसूस कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए।

सरकार चलाने वाले राजनीतिक दल की ज़िम्मेदारी अधिक है। क्या बीजेपी को आगे बढ़कर पहल नहीं करनी चाहिए कि मुनव्वर राणा के बयान के बाद मुस्लिम समुदाय को विश्वास में लिया जाए? उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि देश में आप सुरक्षित हैं और कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा? इसके बजाए मुनव्वर राणा को ही कठघरे में खड़ा करने से वास्तव में राणा की कही गयी बात ही सच साबित होती है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रेम कुमार

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें