अमेरिका ने आतंकवादियों को पनाह देने वाले जिस इस्लामी कट्टरपंथी तालिबान संगठन की जड़ें उखाड़ने के लिए सितंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई की थी वह अब उसी से अपना पिंड छुड़ा रहा है। भारत अब वहाँ किस रूप में दिखेगा?
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हिसाब से कल तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं। एक तो अलास्का में अमेरिकी और चीनी विदेश मंत्रियों की झड़प, दूसरी मास्को में तालिबान-समस्या पर बहुराष्ट्रीय बैठक और तीसरी अमेरिकी रक्षा मंत्री की भारत-यात्रा।
पठानों से भिड़कर पहले रुसी पस्त हुए और अब अमेरिकियों का दम फूल रहा है। अमेरिका अपनी जान छुड़ाने के लिए कहीं भारत को वहाँ न फँसा दे? अमेरिका तो चाहता है कि भारत अब चीन के ख़िलाफ़ भी मोर्चा खोल दे और एशिया में अमेरिका का पप्पू बन जाए।
अफ़ग़ानिस्तान तालिबान वार्ता दोहा में जब अंतिम दौर में है तो इसमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी वीडियो लिंक से शामिल हुए। इस बार तालिबान और काबुल सरकार के बीच समझौते की बड़ी उम्मीद है।