ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी के तालिबान को लेकर दिए बयान से खुद को अलग किया है। नोमानी ने तालिबान की तारीफ़ की थी।
अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व उप राष्ट्रपति अमारुल्ला सालेह रविवार को तालिबान के काबुल पहुँचने पर गायब हो गए थे, अब उसे चुनौती दे रहे हैं और ख़ुद को क़ानूनन कार्यवाहक राष्ट्रपति बता रहे हैं।
तालिबान के स्थानीय कमान्डर ने काबुल के करते परवान गुरुद्वारा जाकर वहां जमा अफ़ग़ान सिखों व हिन्दुओं से मुलाक़ात कर उन्हें सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया और कहा कि वे देश छोड़ कर न जाएं।
तालिबान के प्रवक्ता दावे चाहे जो करें, ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। उनकी कथनी और करनी में क्या अंतर है, देखिए, प्रमोद मल्लिक के साथ सत्य हिन्दी पर।
तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा किया नहीं कि चीन ने तुरन्त उसकी ओर दोस्ती और सहयोग का हाथ बढ़ा दिया। क्या वह अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिए कज़ाख़स्तान, उज़बेकिस्तान, ताज़िकस्तान होते हुए यूरोप तक पहुँचना चाहता है?
भारत ने अगस्त महीने के अध्यक्ष होने के नाते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफ़ग़ानिस्तान पर हुई आपातकालीन बैठक बुलाई, लेकिन उसमें पाकिस्तान को नहीं न्योता। इसलामाबाद ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट कर कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में बने हालात को देखते हुए काबुल से अपने राजदूत और भारतीय स्टाफ़ को तुरंत वापस लाने का फ़ैसला किया गया है।
बाइडन ने अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी अपने देश को युद्ध के लिए तैयार करने में फ़ेल रहे। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका पुरानी ग़लतियों को अब नहीं दोहराएगा।
तालिबान के कब्ज़े से क्या अफगानिस्तान आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना बनेगा? क्या अल क़ायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों को तालिबान से मदद मिलेगी? मुकेश कुमार के साथ चर्चा में शामिल हैं- डॉ. वेद प्रताप वैदिक, क़ुरबान अली, फिरोज़ मीठीबोरवाला, सज्जाद अज़हर पीरज़ादा
काबुल हवाई अड्डे पर मची अफरातफरी की वजह से भारतीयों को वहाँ से नहीं निकाला जा सका है। पर सवाल यह उठता है कि इतने दिन से सरकार क्यों यह कोशिश नहीं कर रही थी।