देश की तरक़्क़ी के लिए अगर तेज रफ़्तार वाले सुधारों की ज़रूरत है और मौजूदा ‘कुछ ज़्यादा ही’ लोकतंत्र उसमें बाधक बन रहा है तो फिर संसद की नई इमारत बनाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के एक ताज़ा बयान पर ज़बरदस्त विवाद हुआ है। उन्होंने बयान दिया था- 'भारत में लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है'। लेकिन अब वह मुकर क्यों रहे हैं?