इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जैसे प्रगतिशील वामपंथी शायर की नज़्म को मज़हबी चश्मे से देखा जाए और उस पर हिन्दू विरोधी या इसलाम परस्त होने का आरोप लगा दिया जाए।
वर्तमान राजनीतिक हालात को देखकर कहा जा सकता है कि ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने का जो काम संघ 1947 में नहीं कर पाया, उस पर अब सुनियोजित तरीक़े से अमल करने की तैयारी है।
महात्मा गाँधी की एक कट्टरपंथी हिंदू के हाथों हत्या के बाद के 71 बरसों में बार-बार यह सवाल खड़ा किया गया है कि गाँधी के विचारों और उनके सिद्धांतों की प्रासंगिकता क्या है?