फ़िरोज़ ख़ान को आख़िरकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान में संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर का पद छोड़ना पड़ा। साफ़-साफ़ कहें तो फ़िरोज़ ख़ान को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
'सर्वविद्या की राजधानी' कहलाने वाली बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद पर हुई फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति अब राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा है।
बीएचयू में नियुक्त किए गए संस्कृत के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान छात्रों के लगातार विरोध के बाद कथित तौर पर बीएचयू कैंपस से चले गये हैं। क्या सुरक्षा कारणों से वह घर लौटे हैं?
बीएचयू में भले ही एक मुसलिम फ़िरोज़ ख़ान के संस्कृत का प्रोफ़ेसर बनाए जाने का ज़बर्दस्त विरोध हो रहा हो, लेकिन दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में एक मुसलिम के ही और संस्कृत का ही प्रोफ़ेसर बनने की अलग दास्ताँ है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एक मुसलमान के संस्कृत प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के बाद कुछ छात्रो ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया है। यह क्या दिखाता है?
क्या किसी विषय को पढ़ाने के लिए किसी ख़ास धर्म का होना ज़रूरी है? फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू में एक मुसलिम फ़िरोज़ ख़ान के संस्कृत पढ़ाने का विवाद क्यों बढ़ता जा रहा है?
सरकारी विश्वविद्यालय बीएचयू के परिसर में आरएसएस का झंडा हटाने की वजह से एक अफ़सर को इस्तीफ़ा देने को बाध्य कर दिया गया। उसके ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कर दिया गया।
बीएचयू के संस्कृत फ़ैकल्टी में एक मुसलिम के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर नियुक्त किए जाने का विरोध क्यों? क्या संस्कृत भाषा किसी ख़ास मज़हब या जाति का व्यक्ति ही पढ़ा सकता है?