नोटबंदी क्या भारत की राजनीति में बोला गया सबसे बड़ा झूठ है? क्या नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया? 8 नवंबर को देश नोटबंदी की तीसरी बरसी झेल रहा है।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज़ इनवेस्टर सेवा ने शुक्रवार को भारत की रेटिंग में कटौती कर दी है। इसने भारत की रेटिंग को 'स्टेबल' से गिरा कर 'निगेटिव' कर दिया है।
प्याज की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी और सोने की कीमत का लगातार गिरना कई सवाल खड़े करता है। यह किस आर्थिक नीति का नतीजा है और सरकार क्यों हस्तक्षेप नहीं करती है?
भारत ने रीजनल कॉम्प्रेहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल होने से इनकार बिल्कुल अंत में किया। प्रधानमंत्री का कहना है कि भारत की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया।
पहले से धीमी चल रही अर्थव्यवस्था की रफ़्तार दिन-ब-दिन और कम होती जा रही है। ताजा आँकड़े बताते हैं कि उत्पादन क्षेत्र दो साल के न्यूनतम स्तर पर पहुँच चुका है।
अर्थव्यवस्था की हालत तो लंबे समय से ख़राब होती जा रही है, लेकिन सुस्त पड़ी कांग्रेस अब इस मुद्दे पर अचानक से तेज़ी कैसे दिखने लगी है? आर्थिक मंदी पर कांग्रेस एक से 8 नवंबर तक 35 प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेगी।
जब देश में आर्थिक हालात बेहद ख़राब हों तो दीपावली का जश्न फ़ीका लगता है। लेकिन मीडिया और सत्तारुढ़ वर्ग यह बताने की कोशिश कर रहा है कि देश में सब कुछ सामान्य है।
पूरी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में पहले से ही है, दूरसंचार क्षेत्र की कंपनयों पर संकट बढ़ता जा रहा है, एक ही कंपनी का वर्चस्व बढ़ रहा है। क्या है मामला?
सत्तारूढ़ दल और मोदी सरकार के हमलों के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने उन्हें याद दिलाया है कि कभी उन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ भी काम किया है।
निर्मला सीतारमण ने देश की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के लिए पिछली सरकार को ज़िम्मेदार बता दिया है। क्या सिर्फ़ दूसरे को दोष देकर समस्या का समाधान हो जाएगा?