कृषि क़ानूनों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोके जाने, पर क्या बोले जस्टिस लोकुर? देखिए अवमानना के बढ़ते मामलों और कोर्ट की वर्तमान स्थिति पर क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जस्टिस मदन बी लोकुर। उनसे बात की है वरिष्ठ पत्रकार नीलू व्यास ने। Satya Hindi
मैंने प्रवासी मज़दूरों से संबंधित जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बारे में जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस एपी शाह के करण थापर के साथ साक्षात्कार देखे।
सुप्रीम कोर्ट के रंग ढंग पर लगातार उँगलियाँ उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि वह सरकार के दबाव में काम कर रहा है, उसके हिसाब से फ़ैसले दे रहा है। ये आरोप भी न्यायिक क्षेत्र के ही लोग लगा रहे हैं। पूर्व जस्टिस मदन लोकुर भी सुप्रीम कोर्ट से निराश हैं और चाहते हैं कि वह आत्म निरीक्षण करे। मगर वह ऐसा करेगा क्या?
जिस पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चीफ़ जस्टिस रहते हुए कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों की नियुक्ति न्यायपालिका की आज़ादी पर ‘धब्बा’ है, अब सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं की नियुक्ति राज्यसभा के सदस्य के रूप में कर दी गई है।
पिछले दिनों जब मैंने दंगा प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी युद्ध क्षेत्र में आ गया हूँ। दुकान और मकान जले हुए थे और इलाक़े की हर गली का यही हाल था। इन दंगों में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं लेकिन हाल के दिनों में इसके बारे में कई गंभीर प्रश्न खड़े हो गये हैं। अब जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी सवाल उठाए हैं।