दिल्ली में कुल 70 में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। अपने जन्म से ही 2013 के पहले चुनाव में ही 'आप' ने इन पर झंडा गाड़ दिया था और 2015 में तो उसने इन सारी सीटों को बहुत बड़े अंतर से जीता था। इस बार क्या हो सकता है, 'दिल्ली किसकी' में बता रहे हैं शीतल पी सिंह।
हिंदी के वरिष्ठ पत्रकारों की राय में बीजेपी दिल्ली के चुनाव में हार की ओर है और इस पराजय से बचने के लिए किसी भी किस्म की मर्यादा के पालन को वह तैयार नहीं है। चुनाव आयोग 'केंचुआ' साबित हुआ है और प्रशासनिक संस्थाएँ नाकारा। देखिए शीतल पी सिंह की वरिष्ठ पत्रकारों- शैलैश, उर्मिलेश, आशुतोष, मुकेश कुमार और वीरेंद्र सेंगर की चर्चा।
दिल्ली में 5 सीटें ऐसी है जो मुसलिम बाहुल्य हैं।पहले इनपर कांग्रेस का कब्ज़ा रहता था पर पिछले चुनाव में उलट फेर हो गया। आम आदमी पार्टी ने इन 5 में से 4 सीटें जीती और बीजेपी ने 1 सीट, कांग्रेस सारी सीटें हार गयी। इस चुनाव में मुसलमान किस ओर जाएँगे, इसका विश्लेषण कर रहे हैं शीतल पी सिंह।
2015 में बीजेपी कुल 70 सीटों में से 3 सीटें ही जीत पाई थी और कांग्रेस शून्य पर थी। सत्य हिंदी के लिए शैलेंद्र ने इन क्षेत्रों में कई दिनों तक मतदाताओं की नब्ज़ टटोली। उनकी फ़ील्ड रिपोर्ट पर आधारित शीतल पी सिंह का विश्लेषण देखिए 'दिल्ली किसकी' में।
दिल्ली में सातवीं बार विधानसभा के गठन के लिए चुनाव हो रहे हैं। बीजेपी एक बार, कांग्रेस तीन बार और आप दो बार दिल्ली की गद्दी पर बैठ चुकी हैं। केजरीवाल अपने काम पर और बीजेपी शाहीन बाग़ के ख़िलाफ़ वोट माँग रही है। देखिए दिल्ली का मूड, शीतल पी सिंह की विशेष रिपोर्ट 'दिल्ली किसकी' में।
संसदीय कार्य मंत्री (राज्य) अर्जुन मेघवाल ने राज्य सरकारों को सीएए के मसले पर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि राज्य इसे लागू करने से इनकार नहीं कर सकते। ऐसा तब है जब केरल ने विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है और सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी है। लगभग सारी विपक्षी राज्य सरकारें इसके ख़िलाफ़ हैं। इस नयी समस्या पर सवाल उठा रहे हैं शीतल पी सिंह।
जेएनयू में हिंसा हुई। दर्जनों नकाबपोशों द्वारा। तेज़ाब, लाठी, लोहे की रॉड के साथ होस्टल में घुस कर निहत्थे छात्रों और अध्यापकों पर हमला किया गया। तीन घंटे तक। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस, केन्द्रीय सरकार की शह के बिना यह संभव है? क्या इस हिंसा के लिए साज़िश रची गई। देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शीतल पी सिंह की चर्चा।
गृह मंत्री अमित शाह के ज़ोर देकर यह बोलने के बाद कि पहले वह नागरिकता क़ानून में संशोधन करेंगे और उसके बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करेंगे, यह विवाद बढ़ा।
एचआरडी सेक्रेटरी ने ट्वीट कर कहा है कि जेएनयू प्रशासन ने पिछले फ़ैसले से बड़ा रोलबैक किया है। छात्र आंदोलन छोड़कर कक्षाओं में जाएँ जबकि छात्रों का कहना है कि यह आंदोलन में बँटवारे की साज़िश है और आंदोलन जारी रहेगा। क्या है पूरा मामला, देखिए शीतल के सवाल में।
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने में इतनी जल्दी क्यों? 24 अक्टूबर को नतीजे। 8 नवंबर तक गवर्नर चुप बैठे रहे। पर शिवसेना को 48 घंटे भी देने को तैयार नहीं। क्या राज्यपाल ने निष्पक्ष भूमिका निभाई? या वह केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहे थे? देखिए सत्य हिंदी पर वरिष्ठ पत्रकार शैलेश और शीतल पी सिंह की चर्चा।
महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में एक के अलावा बाक़ी सारे एग्ज़िट पोल्स ने जो नतीजे दिखाए उन्होंने किसी भी तरह के “एरर ऑफ़ मार्जिन” के सिद्धांत को भंग कर दिया है।