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फ़ोटो साभार: ट्विटर/अनु नागानाथन

ज़हरीली हवा, कोरोना काल में बिना पटाखों की दीवाली कैसी!

बिना रंग-गुलाल की होली कैसी होगी? इसी तरह क्या बिना पटाखे-दीये के दीवाली का उत्सव मनाया जा सकता है? इन सवालों पर बहस हो रही है। यह इसलिए कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली एनसीआर में दीवाली पर पटाखे पर प्रतिबंध लगा दिए हैं और इसके साथ ही कई राज्यों में भी ऐसे ही प्रतिबंध लगाए गए हैं। कहा जा रहा है कि कई शहरों में प्रदूषण इतना ज़्यादा हो गया है कि साँस लेना दूभर है और प्रदूषण के कारण कोरोना संक्रमण के भी तेज़ी से फैलने के आसार हैं। अब ज़ाहिर है पटाखे जलेंगे तो प्रदूषण तो बढ़ेगा। ऐसे में सवाल यह है कि प्रदूषण और कोरोना बढ़ने का ख़तरा उठाया जाए या साल में एक बार आने वाले इस त्योहार को भूल जाएँ? या फिर कोई बीच का रास्ता भी निकल सकता है?

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इन्हीं सवालों को अलग-अलग सरकारें अलग-अलग रूप में ले रही हैं। लेकिन लोगों के लिए तो इसकी अपनी अलग ही अहमियत है। वर्ष भर में कितने ही त्यौहार आते हैं लेकिन प्रमुख रूप से तो होली और दीपावली को ही माना और मनाया जाता है। इन त्यौहारों का रूप चाहे अलग-अलग तरीक़े का लगे लेकिन मामला उत्सवधर्मी ही रहता है। ये त्यौहार अपने मित्रों, संबंधियों और पड़ोसियों के प्रति सद्भावना दर्शाने के अवसर हैं, नहीं तो आम आदमी अपने खाने-कमाने में ही उलझा रहता है। शुभकामना देने-लेने का भी मौक़ा नहीं मिल पाता। हालाँकि, समय के साथ उत्सव के तरीक़े ने अपना रूप बदला और उत्सव के मायने यही नये तरीक़े बनते चले गए। दीवाली पर पटाखे जलाना भी उन्हीं नये तरीक़ों में से एक है। अब तो ऐसा हो गया है जैसे पटाखे नहीं जलाएँ तो दीवाली का उत्सव उत्सव जैसा ही न लगे!

ऐसे में दीवाली पर पटाखे पर पाबंदी का एनजीटी और कई राज्य सरकारों का फ़ैसला लोगों को चुभने वाला है। सरसरी तौर पर भले ही यह फ़ैसला रंग में भंग डालने वाला लगे, लेकिन उनके तर्कों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। 

एनजीटी ने एनसीआर में सभी तरह के पटाखों के प्रयोग या खरीद-बिक्री पर 9 नवंबर से 30 नवंबर के बीच प्रतिबंध लगाते हुए कहा है कि 'खुशी के लिए पटाखे जलाकर उत्सव मनाना चाहिए न कि मौत और बीमारियों का जश्न मनाने के लिए।'

एनजीटी की ऐसी प्रतिक्रिया उस संदर्भ में आई है जिसमें दिल्ली में प्रदूषण काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया है और साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है। विशेषज्ञों ने प्रदूषण बढ़ने से कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका जताई है। दिल्ली में संक्रमण फ़िलहाल रिकॉर्ड स्तर पर फैल भी रहा है। ज़बरदस्त कोरोना संक्रमण की चपेट में आई दिल्ली में आईसीयू बेड कम पड़ने की समस्या के समाधान के लिए हाई कोर्ट को एक अहम फ़ैसला देना पड़ा है। अदालत ने कहा है कि 33 निजी अस्पतालों में 80 फ़ीसदी आईसीयू बेड कोरोना मरीज़ों के लिए आरक्षित रखे जा सकते हैं। बता दें कि दिल्ली में हर रोज़ अब 8000 से ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले आने लगे हैं और ऐसी रिपोर्टें हैं कि अधिकतर अस्पतालों में आईसीयू मरीज़ों से क़रीब-क़रीब भरने वाले हैं।

deepawali celebration without firecrackers amid rising pollution and coronavirus - Satya Hindi

अब आशंका जताई जा रही है कि पूरे देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर भी आ सकती है और ऐसे में स्थिति को नियंत्रित करना काफ़ी ज़्यादा मुश्किल होगा। इसको लेकर भी राज्य सरकारें फूँक-फूँक कर क़दम रख रही हैं। 

यही वजह है कि प्रदूषण फैलने से रोकने के लिए एनजीटी का फ़ैसला आने से पहले ही दिल्ली सरकार ने 7 नवंबर से 30 नवंबर के बीच पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा था कि जो कोई भी इसका उल्लंघन करेगा उस पर जुर्माना लगाया जाएगा।

पश्चिम बंगाल में कलकता हाई कोर्ट ने दीवाली, काली पूजा, छठ और कार्तिक पूजा तक प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए पटाखों की ख़रीद-बिक्री से लेकर इसके इस्तेमाल तक पर प्रतिबंध लगाया है। ओडिशा सरकार ने भी पटाखों पर प्रतिबंध लगाया है। राजस्थान सरकार ने भी प्रतिबंध लगा दिया है।

सिक्किम और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ ने भी पटाखों पर प्रतिबंध लगाया है।

हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने दो घंटे के लिए दीवाली पर पटाखे जलाने की छूट दी है। यह फ़ैसला प्रदूषण कम करने के लिए और एनजीटी के निर्देशों के तहत लिया गया है। कर्नाटक सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार 'ग्रीन पटाखे' ही बेचे और छोड़े जा सकते हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने दीवाली उत्सव के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आग्रह किया है कि लोग घर पर रहकर और दीये जलाकर सादगी से दीवाली मनाएँ। बीएमसी ने सार्वजनिक जगहों पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगाए हैं। 

बहरहाल, शहरों में ज़हरीली हवा और कोरोना संक्रमण के साये में दीवाली का उत्सव तो पहले से ही फीका रहने की आशंका थी, लेकिन पटाखों पर प्रतिबंध से इसके और भी ज़्यादा फीका रहने की संभावना है। 

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क़मर वहीद नक़वी

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