कब धैर्य रखना चाहिए और कब नहीं, यह सवाल बार-बार उठा है और बहुसंख्यकवाद के दौर में ज़्यादम अहम है। महात्मा गाँधी ने इस मुद्दे पर अपने बड़े बेटे से क्या कहा था?
देश में ऐसा क्या हो गया है कि लोगों ख़तरा महसूस होने लगा है? क्या स्थितियाँ इतनी ख़राब हो गई हैं कि सचमुच लगने लगा है जैसे हम इस देश में और रह नहीं सकते?