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‘थप्पड़’ फ़िल्म देखने के बाद घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगी महिलाएं?

हमें कोई दोस्त या कोई रिश्तेदार किसी बात पर थप्पड़ मार दे तो शायद हम उससे पूरी जिंदगी बात न करें। क्योंकि एक तो उसका हमें मारना और दूसरा थप्पड़ का लगना हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है। फिर अगर यही चीज शादी के बाद पति-पत्नी के बीच होती है, मतलब यह कि अगर पति गुस्से में आकर पत्नी को एक थप्पड़ मार दे तो घर वाले, बाहर वाले, रिश्तेदार महिला (पत्नी) से ही कहने लगते हैं कि शादी में इतना तो झेलना ही पड़ता है। 

सवाल यह है कि क्यों? क्यों झेलना पड़ता है और क्यों झेलना चाहिए। क्या शादी होने के बाद महिला का कोई आत्मसम्मान नहीं होता। समाज की इसी सोच को बदलने के लिए और उसे आईना दिखाने के लिए फ़िल्म डायरेक्टर अनुभव सिन्हा 28 फरवरी को एक फ़िल्म लेकर आ रहे हैं, जिसका नाम है - ‘थप्पड़’। 

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लीड रोल में हैं तापसी और पावेल

‘थप्पड़’ का ट्रेलर रिलीज़ हो चुका है और फ़िल्म में काफी उम्दा स्टार कास्ट है। लीड रोल में एक्ट्रेस तापसी पन्नू और पावेल गुलाटी हैं। ट्रेलर में दिखाया गया है कि पति-पत्नी की अच्छी-खासी शादीशुदा जिंदगी चल रही थी लेकिन अचानक एक दिन किसी बात पर एक पार्टी में पति, पत्नी को थप्पड़ मार देता है। पत्नी महिला वकील के पास जाकर तलाक़ की बात करती है। इस पर महिला वकील पूछती है- पति का किसी से अफ़ेयर, आपका किसी से अफ़ेयर है या कुछ और बात है? इस पर पत्नी कहती है, ‘एक थप्पड़ मारा था, जो वह नहीं मार सकता।’ यह वाक्य इस ट्रेलर की जान है। 

महिला आवाज़ उठाये तो उसके मायके और ससुराल वाले उसे समझाते हैं कि यह तो चलता रहता है। इतनी सी बात पर तलाक़ नहीं लिया जा सकता, लेकिन उस महिला का भी आत्मसम्मान है, यह बात कोई नहीं समझता।

थप्पड़ पर समाज की मानसिकता

‘थप्पड़’ फ़िल्म समाज और उन पुरुषों के लिए एक आईना है, जो समझते हैं कि महिलाओं का कोई आत्मसम्मान नहीं होता और वे बस घर व बच्चे संभालने के लिए होती हैं। आज के दौर में महिलाएं कई क्षेत्रों में पुरुषों से आगे हैं और अपने पैरों पर खड़ी हैं लेकिन इसके बाद भी अगर शादी के बाद पति उन पर गुस्सा करे या हाथ उठा दे तो लोग कहते हैं कि वैवाहिक जीवन में इतना तो चलता ही रहता है। 

फ़िल्म में एक थप्पड़ पर ही पत्नी ने तलाक़ मांगा है जबकि असल जिंदगी में पत्नियां आए दिन घरेलू हिंसा झेलती हैं और चुप रहती हैं। इस चुप्पी के पीछे कभी शादी को बचाना तो कभी बच्चों की परवरिश होती है। लगभग हर दूसरी महिला से उसकी मां कहती है कि शादी में थोड़ा तो सहना ही पड़ेगा। सवाल तो यही है कि क्यों सहना पड़ेगा? 

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इसके बाद अगर कोई महिला पति को छोड़कर मायके आकर रहने लगे तो पड़ोसी व समाज के लोग ताना देने लगते हैं कि इसी में कोई कमी होगी तभी पति ने छोड़ दिया होगा। समाज और लोगों की इसी सोच पर फ़िल्म ‘थप्पड़’ क़रारा जवाब है।

घरेलू हिंसा के क्या हैं आंकड़े?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के शोध के अनुसार भारत में 30 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं ने स्वीकार किया है कि वे सभी घरेलू हिंसा की शिकार हैं। इसके अलावा 52 फ़ीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया है कि वे किसी न किसी तरीक़े से घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं। इसमें महिलाओं ने घसीटे जाने, पिटाई, थप्पड़ और जलाने जैसे उत्पीड़न सहे हैं। इसके अलावा 3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने गर्भावस्था के दौरान भी घरेलू हिंसा झेली है। 

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, आए दिन होने वाली घरेलू हिंसा को महिलाएं अपने जीवन का सहज हिस्सा मान लेती हैं और इसलिए कोई शिकायत भी नहीं करतीं। जब ये उत्पीड़न हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो महिलाएं आत्महत्या का रास्ता चुन लेती हैं।

‘थप्पड़’ से क्या होगा असर?

फ़िल्म ‘थप्पड़’ के बाद अगर 10 महिलाओं ने भी घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तो डायरेक्टर अनुभव सिन्हा द्वारा इसे बनाना सफल हो जायेगा। हो सकता है कि अभी गांवों या छोटे शहरों की महिलाएं आवाज़ उठाने से डरें लेकिन अगर हाई सोसायटी या बड़े शहरों की महिलाओं ने ऐसा करना शुरू किया तो जल्द ही वे भी घरेलू हिंसा और एक थप्पड़ के कारण अपने आत्मसम्मान के लिए अपने पति से लड़ेंगी।

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दीपाली श्रीवास्तव

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