फ़िल्म- भोंसले
निर्देशक- देवाशीष मखीजा
स्टार कास्ट- मनोज बाजपेयी, संतोष जुवेकर, इपशिता चक्रवर्ती सिंह, अभिषेक बनर्जी, विराट वैभव
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म- सोनी लाइव
शैली- ड्रामा
रेटिंग- 3/5
इस शुक्रवार ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लाइव पर फ़िल्म 'भोंसले' रिलीज़ हुई है। फ़िल्म का निर्देशन देवाशीष मखीजा ने किया है। इसकी कहानी मखीजा, शरन्य राजगोपाल और मिरत त्रिवेदी ने मिलकर लिखी है।
'भोंसले' में मुख्य भूमिका में मनोज बाजपेयी, संतोष जुवेकर, इपशिता चक्रवर्ती सिंह और विराट वैभव है। फ़िल्म में उस समय की कहानी दिखाई गई है जब महानगरों में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को लोग ‘बाहरी’ कहकर उनके साथ भेदभाव करते थे।
'भोंसले' की क्या है कहानी?
कहानी शुरू होती है महाराष्ट्र पुलिस में हवलदार गनपत भोंसले (मनोज बाजपेयी) से, जो अपनी बेल्ट, टोपी और वर्दी निकाल रहे होते हैं और दूसरी तरफ महाराष्ट्र की शान गणपति को विसर्जन के लिए तैयार किया जा रहा है। भोंसले रिटायर हो गए हैं और छोटी सी चॉल में अपने घर आ रहते हैं। कमरे में पसरे अंधेरे के बीच भोंसले भगवान के आगे बत्ती जलाते हैं और रेडियो पर गाने लगा लेते हैं। भोंसले बेहद शांत स्वभाव के हैं, किसी से कुछ नहीं कहते और न ही किसी मसले में पड़ना चाहते हैं। दूसरी ओर विलास (संतोष जुवेकर) है, एक टैक्सी ड्राइवर है और राजनीति में जाना चाहता है। इसके लिए वह चॉल के लोगों को बाहरी लोगों (बिहार-उत्तर प्रदेश के लोगों) के ख़िलाफ़ भड़काता रहता है। भोंसले की नई पड़ोसन नर्स सीता (इपशिता चक्रवर्ती) अपने छोटे भाई लालू (विराट वैभव) के साथ वहां रहने के लिए आई है। सीता और लालू भी उत्तर भारत के हैं। सीता और लालू को भी लोग अलग नज़र से ही देखने लगते हैं, जबकि सीता और लालू ही भोंसले को संभालते हैं।
चॉल में ही राजेन्द्र (अभिषेक बनर्जी) है, वह भी बाहरी है। वह गणेश विसर्जन के लिए अलग मूर्ति लगाना चाहता है, लेकिन विलास को यह बात जरा भी रास नहीं आती। इस पर विलास और राजेन्द्र में हाथापाई हो जाती है। इन सब के बीच कुछ ऐसा होता है कि भोंसले विलास को थप्पड़ मार देता है।
अब आगे क्या होगा? क्या विलास बिहार के लोगों के साथ जो व्यवहार कर रहा है, उससे वे लोग कुछ नहीं करेंगे? भोंसले आगे विलास के साथ क्या करेगा? क्या भोंसले बिहारी लोगों के लिए कोई कदम उठाएगा? क्या विलास इस तरह से राजनीति में आगे बढ़ पाएगा? ये सब जानने के लिए आपको सोनी लाइव पर फ़िल्म 'भोंसले' देखनी पड़ेगी। फ़िल्म 2 घंटे की है।
निर्देशन
देवाशीष मखीजा ने काफी अच्छा निर्देशन किया है और छोटी-सी चॉल को बड़े ही अच्छे तरीके से दिखाया है। कैमरा वर्क और सिनेमोटोग्राफी काफी अच्छी की गई है, लेकिन कहानी थोड़ी धीमी है। फ़िल्म को देखने के लिए आपको धैर्य की ज़रूरत पड़ेगी। कहानी अच्छी लिखी गई है और इसे बखूबी दिखाया गया है, यह धीमी नहीं होती तो और अच्छी हो सकती थी। अभिनय
मनोज बाजपेयी ने भोंसले के किरदार को दमदार तरीके से निभाया है। मनोज अपने हर किरदार में जान डाल देते हैं और उनकी रियलिस्टिक एक्टिंग लोगों का दिल जीत लेती है। इस फ़िल्म में भी भोंसले का किरदार आपको खूब पसंद आएगा। संतोष जुवेकर ने भी शानदार एक्टिंग की है। अभिषेक बनर्जी का फ़िल्म में छोटा रोल है, लेकिन उन्होंने काफी अच्छा अभिनय किया है। नर्स के किरदार में इपशिता चक्रवर्ती सिंह और उनके भाई के किरदार में लालू ने भी बेहतरीन अभिनय किया है। इपशिता ने हर सीन में जान डाल दी है।
फ़िल्म 'भोंसले' सिर्फ उन लोगों को ही पसंद आएगी जो गंभीर मुद्दों पर कुछ देखना पसंद करते हैं। गंभीर कहानी के साथ फ़िल्म बनाई गई है, इसमें एक भी कॉमेडी सीन नहीं है।
एक्शन और कॉमेडी जैसी फ़िल्मों में रुचि रखने वाले लोगों को ये फ़िल्म बिल्कुल पसंद नहीं आएगी।फ़िल्म में कई छोटी-छोटी चीजों को बड़ी बारीकी से दिखाया गया है, जैसी शुरुआत होती है वैसा ही अंत होता है। शुरुआत के 20-25 मिनट तक तो आप फ़िल्म से जुड़ ही नहीं पाएंगे। अगर आप मनोज बाजपेयी के फ़ैन हैं और गंभीर फ़िल्मों में दिलचस्पी रखते हैं तो फ़िल्म 'भोंसले' आपको ज़रूर पसंद आएगी।
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