loader

खुद को ज़िंदा साबित करने की कहानी है 'कागज़'

फ़िल्म- कागज़

निर्देशक- सतीश कौशिक

स्टार कास्ट- पंकज त्रिपाठी, सतीश कौशिक, एम मोनल गुज्जर, मीता वशिष्ठ, नेहा चौहान, संदीपा धर, ब्रिजेंद्र काला, अमर उपाध्याय

स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म- जी 5

रेटिंग- 4/5

हमारे देश में 'कागज़' का कितना महत्व है, यह बताने की ज़रूरत शायद नहीं है। हमारी पहचान हमारे सरकारी कागज़ों के माध्यम से ही होती है और इसी के ज़रिये हम जीवित हैं या मृत, यह भी साबित होता है। 60 साल से ऊपर हो चुके बुजुर्गों को हाजिरी लगानी पड़ती है कि वे ज़िंदा हैं, ताकि उनकी पेंशन आती रहे। लेकिन कुछ कागज़ों में जीवित लोगों को मृतक बताकर उनकी ज़मीन-जायदाद हड़पने के केस भी हमारे देश में हुए हैं। ऐसे ही एक आम आदमी लाल बिहारी हैं, जो कि कागज़ों में साल 1976 से लेकर 1994 तक मृतक रहे। ख़ुद को ज़िंदा साबित करने की कड़ी लड़ाई के बाद उन्हें 19 साल बाद सफलता मिली थी। इसी आम आदमी पर आधारित फ़िल्म 'कागज़' ओटीटी प्लेटफॉर्म ज़ी 5 पर रिलीज़ हुई है। फ़िल्म का निर्देशन सतीश कौशिक ने किया है और इसमें लीड रोल में पंकज त्रिपाठी, सतीश कौशिक, एम मोनल गुज्जर, मीता वशिष्ठ व अन्य स्टार्स हैं। तो आइये आपको बताते हैं कि फ़िल्म की कहानी क्या है-

ताज़ा ख़बरें

क्या है खास-

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के अमीलो गाँव में भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) रहता है, जिसकी एक बैंड बाजे की दुकान है। उसके घर में पत्नी रुक्मणि (एम मोनल गुज्जर) रहती हैं। रुक्मणि भरत से लोन लेकर दुकान को बड़ा करने की बात कहती है और भरत लोन लेने के लिए सरकारी दफ्तर पहुँचता है। वहाँ उसे कहा जाता है कि कुछ गारंटी रख दो और लोन ले जाओ। भरत के पास पुश्तैनी खेत हैं और उसके कागजात लेने वह लेखपाल के दफ्तर पहुंचता है तो मालूम पड़ता है कि चाचा-चाची ने लेखपाल को घूस देकर उसकी ज़मीन हड़प ली है और उसे कागज़ पर मृतक घोषित कर दिया है।

फिर क्या भरत लाल, जो कि जीते जी मर चुका है। वह अपने आप को ज़िंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने लगता है। लेकिन हमारे देश का जर्जर सिस्टम उसे इधर से उधर भेजता रहता है। फ़िल्म में एक डायलॉग है कि 'हमारा सिस्टम ही आम आदमी के उत्पीड़न का हथियार बन गया है।' भरत लाल भी इसी उत्पीड़न का शिकार हो जाता है। भरत के घर में खाने के लाले पड़ जाते हैं, तो उसकी पत्नी मांग में सिंदूर भरे, गले में मंगलसूत्र पहने पेंशन के लिए आवेदन करने सरकारी विभाग पहुंचती है। अब आगे भरत लाल अपने आप को ज़िंदा साबित करने के लिए क्या-क्या करता है, यही मुख्य कहानी है। कैसे भरत लाल ख़ुद को ज़िंदा साबित करेगा? क्या एक कागज़ ज़िंदा आदमी से ज़्यादा बड़ा है? फ़िल्म 'कागज़' ज़ी 5 पर आपको मिलेगी और इसकी अवधि 116 मिनट की है।

kaagaz movie review - Satya Hindi

कौन थे लाल बिहारी?

लाल बिहारी आजमगढ़ ज़िले के गाँव अमीलो के निवासी हैं। साल 1976 में जब लाल बिहारी अपनी दुकान के लिए कुछ करना चाहते थे। उन्होंने अपने पिता की एक एकड़ ज़मीन को गांरटी के तौर पर रखकर लोन लेने के बारे में सोचा और उसके कागज़ जुटाने लगे। जब कागज़ लेने वह राजस्व विभाग पहुंचे तो मालूम हुआ कि लेखपाल ने उनकी ज़मीन उनके चचेरे भाइयों के नाम करके उन्हें कागज़ों पर मृत घोषित कर दिया है। लोग जानते थे कि लाल बिहारी ज़िंदा हैं, लेकिन कोई भी कागज़ी कार्रवाई में पड़ना नहीं चाहता था। यहीं से लाल बिहारी की ख़ुद को ज़िंदा साबित करने की जंग शुरू हो गई।

लाल बिहारी ने कई तरीक़े अपनाए। ऑफिसों का चक्कर काटने के बाद उन्होंने 9 सितंबर 1986 के विधानसभा में पर्चे फेंके और गिरफ्तारी दी, लेकिन उनका मक़सद पूरा नहीं हुआ। इसके बाद दिल्ली के वोट क्लब पर 56 घंटे तक अनशन किया। इन सब के बावजूद राजस्व विभाग उन्हें ज़िंदा मानने को तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने अमेठी से दिवंगत पीएम राजीव गांधी के ख़िलाफ़ 1989 में लोकसभा का चुनाव लड़ा। इससे पहले 1988 में इलाहाबाद संसदीय सीट से पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ भी चुनाव मैदान में उतरे। मृतक संघ की स्थापना भी की। यहाँ तक कि उन्होंने अपने नाम के आगे मृतक भी जोड़ लिया और यही उनकी पहचान भी बन गई थी। 18 साल बाद 1994 में उन्‍हें कागज़ों पर वापिस जीवित माना गया। लाल बिहारी 'मृतक' के संघर्ष को देखते हुए अमेरिका द्वारा उन्हें इग्नोवल पुरस्कार भी दिया जा चुका है।

kaagaz movie review - Satya Hindi

निर्देशन-

अक्सर ऐसा होता है कि आम आदमी के ऊपर फ़िल्म बनाई जाती है लेकिन वही केंद्र में नहीं होता, लेकिन निर्देशक और अभिनेता सतीश कौशिक के निर्देशन में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने जिस आम आदमी को लेकर फ़िल्म बनाई उसे बराबर केंद्र में रखा। फ़िल्म में कुछ भी फालतू नहीं जोड़ा गया और इससे कहानी में कसावट बनी रही। कई फ़िल्मों में संवाद लिख चुके इम्तियाज हुसैन ने अच्छी कहानी लिखी है। फ़िल्म में डायलॉग है, 'कर्जा लेना कुत्ता पालने जैसा है। कहने को वह सुरक्षा देता है। फिर रोज भौंक-भौंक कर रोटी मांगता है। समय से रोटी न दो तो काट लेता है।' इसके अलावा सतीश कौशिक के वॉइस में एक लाइन आती है, जो सीन पर सटीक बैठती है, 'सुना है सच और झूठ की जंग में जीत हमेशा सच की होती है, अपने देश का सच तो यह है कि जीत उसी की होती है, जिसके पक्ष में कागज़ होता है इतनी ताक़त है अपने सिस्टम में कागज की।'

अभिनय

साल 2020 पंकज त्रिपाठी के नाम ही रहा और अब साल 2021 में भी उन्होंने दमदार फ़िल्म और अपनी शानदार एक्टिंग के साथ धमाकेदार शुरुआत की है। लाल बिहारी के किरदार को पंकज त्रिपाठी ने भरत लाल बनकर बख़ूबी जिया है। रुक्मणि के किरदार में एम मोनल ने शानदार अभिनय किया है। मीता वशिष्ठ और सतीश कौशिक भी मंझे हुए कलाकार हैं, उन्होंने भी उम्दा काम किया है। इसके अलावा ब्रिजेंद्र काला, अमर उपाध्याय, नेहा चौहान, संदीपा धर, विजय कुमार ने भी बेहतरीन अभिनय किया है।

kaagaz movie review - Satya Hindi
बदलते सिनेमा के इस दौर में कभी-कभी ही अच्छी फ़िल्में आती हैं और उसमें से एक फ़िल्म 'कागज़' रिलीज़ हुई है। भले ही यह एक बायोग्राफ़ी फ़िल्म है, लेकिन इसे देखते वक़्त आपको सिस्टम पर ग़ुस्सा और भरत लाल जैसे हज़ारों लोगों पर तरस आयेगा। जो कागज़ों के पचड़े में फँसे हुए हैं। हर जगह यह बताया जायेगा कि हमारे देश में कागज़ की कितनी अहमियत है। असल में तो हम भी अपने दस्तावेज़ों को संभालकर रखते हैं, क्योंकि वही हमारी पहचान है। इसके साथ ही फ़िल्म में कुछ भी अलग से पेश नहीं किया गया है, मुख्य कहानी अंत तक चलती रहती है। आपको अपशब्द भाषा सुनने या अंतरंगी दृश्य भी देखने को नहीं मिलेंगे। इसके साथ ही फ़िल्म एकदम सीरियस टाइप नहीं है, इसमें कॉमेडी भी है, जो आपको गुदगुदाएगी। 'कागज़' को आप अपने परिवार के साथ देख सकते हैं। फ़िल्म के गाने भी आपको ख़ूब पसंद आयेंगे।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
दीपाली श्रीवास्तव

अपनी राय बतायें

सिनेमा से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें