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फ़िल्म शिकारा का एक दृश्य।

कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार, प्रेम कहानी की दास्तां है शिकारा

फ़िल्म- शिकारा: अ लव लेटर फ्रॉम काश्मीर

डायरेक्टर- विधु विनोद चोपड़ा

स्टार कास्ट- सादिया, आदिल ख़ान

शैली- हिस्टोरिकल-रोमांटिक

रेटिंग- 4/5

डायरेक्टर व प्रोड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा दर्शकों के लिए बेहद ही संवेदनशील मसले पर एक फ़िल्म लेकर आये हैं, जिसका नाम ‘शिकारा’ है। यह फ़िल्म 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को दर्शाती है, साथ ही एक प्रेम कहानी भी दिखाई गई है। फ़िल्म में मुख्य किरदार के तौर पर आदिल ख़ान और सादिया हैं। दोनों ही स्टार्स इस फ़िल्म से बॉलीवुड में एंट्री कर रहे हैं। तो आइये जानते हैं ‘शिकारा’ के बारे में-

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‘शिकारा’ में शांति धर (सादिया) और शिव धर (आदिल ख़ान), दोनों शादीशुदा हैं और शरणार्थी कैंप में रह रहे हैं। दोनों में बेशुमार प्यार है लेकिन 19 जनवरी 1990 को सब बदल जाता है और कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने का फ़रमान सुना दिया जाता है। फ़रमान के बाद कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और एक प्यारी-सी प्रेम कहानी पर फ़िल्म को केंद्रित किया गया है। ज़रा सोचिये, अगर आप कहीं सालों से रह रहे हों और कोई आकर आपसे कह दे कि कहीं और रहो जाकर तो आपकी क्या हालत होगी? वही हाल कश्मीरी पंडितों का हुआ था और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा था।

सामान रखते वक़्त हर इंसान यह सोच रहा था कि कौन सी चीज रखें और कौन सी छोड़ें। अलगाववादियों ने हर तरफ़ आग लगा दी थी और लोगों को मारा जा रहा था। किसी के आंगन में लगे सेब के पेड़ जल रहे थे तो किसी का आशियाना। लोग अपने ही घरों में अंधेरा करके बैठे थे, ये सोचकर कि कहीं उनका घर न जला दिया जाए। लोगों ने भयावह मंजर देखते हुए कश्मीर घाटी छोड़ दी इस उम्मीद में कि शायद फिर अपने घर वापस आ सकें लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आँखों में आँसू लिए लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित शरणार्थी कैंप में रहने को मजबूर थे, कैंप को ही घर और इसी ज़िंदगी को क़िस्मत मान लिया। इतने अत्याचारों के बीच कैसे शिव और शांति ने ख़ुद को संभाला? पलायन के बाद लोगों की क्या दुर्दशा हुई थी? ये सब जानने के लिए फ़िल्म ‘शिकारा’ को देखने के लिए पहुँच जाइए।

kashmiri pundits based shikara film review - Satya Hindi
फ़िल्म शिकारा का एक दृश्य।

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ?

साल 1989 से ही कश्मीरी हिंदुओं पर कहर बरपना शुरू हो गया था। कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, मकान, मंदिर सब जलाये जाने लगे। साथ ही लोगों के घरों के बाहर पोस्टर लगाकर लोगों को घर छोड़कर जाने के लिए कहा जाने लगा। कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ने को मजबूर हो गये और लोग कश्मीर छोड़कर रिफ्यूजी कैंप में रहने लगे। इसके बाद भी 19 जनवरी 1990 का दिन कश्मीर घाटी के लिए सबसे काला दिन था। कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों को काफिर घोषित कर दिया और इस एलान के बाद कट्टरपंथी कश्मीरी हिंदुओं को इसलाम कबूल करने या कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर करने लगे। इस दौरान लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ना पड़ा और 3 लाख से ज़्यादा लोग मारे गये थे। साथ ही कई महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया गया। क्रूरता और अत्याचार का यह मंजर बेहद खौफ़नाक था।

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डायरेक्शन

डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा ने दो पहलुओं को जोड़ते हुए फ़िल्म ‘शिकारा’ बनाई है। एक तऱफ उन्होंने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को दिखाया है और दूसरी तरफ़ एक प्रेम कहानी दिखाई है। फ़िल्म का डायरेक्शन बेहतरीन तरीक़े से किया गया है, हर सीन में ऐसा महसूस होगा जैसे आप कश्मीर में फँसे हुए हो।

कलाकारों की अदाकारी

एक्टर आदिल ख़ान और एक्ट्रेस सादिया दोनों ही इस फ़िल्म से डेब्यू कर रहे हैं। दोनों की एक्टिंग काफी अच्छी है। कई जगहों पर चेहरे के भावों से ही स्टार्स ने सीन को बेहतरीन बना दिया।

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फ़िल्म शिकारा का एक दृश्य।

क्यों देखें यह फ़िल्म?

कश्मीरी पंडित के साथ हुए अत्याचार को जानने के लिए आप यह फ़िल्म एक बार ज़रूर देख सकते हैं। इसमें दिखाया गया है कि कैसे लोगों को उनके घरों को छोड़कर जाना पड़ा था। इसके साथ ही एक ख़ूबसूरत प्रेम कहानी भी दिखाई गई है जो कि आपको बोर महसूस नहीं करायेगी। फ़िल्म आपको भावुक कर देगी और हर सीन में आपको लगेगा जैसे यह हमारे साथ हो रहा है।

क्यों न देखें?

अगर आपको लव स्टोरी और सीरीयस फ़िल्म न पसंद हो तो यह फ़िल्म आपके लिए एकदम नहीं है, क्योंकि इसमें कहीं पर भी कोई कॉमेडी सीन नहीं है और यह भावुक कर देने वाली फ़िल्म है।

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दीपाली श्रीवास्तव

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