चुनाव बाद जो नई सरकार बनती, उसका क्या पता, वह कैसी होती? शायद वह राम मंदिर के मुद्दे को मोदी सरकार की ही तरह दरी के नीचे सरका देती। या ख़ुद राम मंदिर खड़ा करके वह बीजेपी, संघ और विहिप की जड़ों को मट्ठा पिला देती। कांग्रेस ने तो ऐसा संकेत भी दे दिया है।
अयोध्या मामले में मेरी स्पष्ट राय है कि यह मामला न अदालत सुलझा सकती है और न ही कोई आंदोलन! ये दोनों रास्ते ऐसे हैं, जिनसे राम मंदिर का मामला आगे जाकर भारत के गले का पत्थर बन जाएगा। इस मामले का स्थायी और सर्वमान्य हल यह है कि अयोध्या की इस कुल 70 एकड़ जमीन में एक सर्वधर्म तीर्थ खड़ा किया जाए, जहाँ राम का अपूर्व विश्व-स्तरीय सुंदर मंदिर बने और शेष स्थानों पर भारत के ही नहीं, विश्व के सभी प्रमुख धर्मों के पूजास्थल बन जाएँ। उनका एक संग्रहालय और पुस्तकालय भी बने।
याचिका वापस ले केंद्र सरकार
केंद्र सरकार ने अधिग्रहीत ज़मीन उसके मालिकों को वापस लौटाने की जो याचिका अदालत को दी है, ऐसा करके उसने उचित नहीं किया है। उसे वह तुरंत वापस ले। स्वामी स्वरुपानंदजी भी तीनों याचिकाकर्ताओं से बात करें। उन्हें सहमत करवाएँ। 21 फ़रवरी से आंदोलन न छेड़ें। सांसारिक नौकरशाहों के नौकरों यानी हमारे नेताओं पर आध्यात्मिक कृपा करें। उनकी बुद्धि और विवेक को जागृत करें। अयोध्या को 21 वीं सदी की नई युद्ध-भूमि न बनने दें।
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