क्या हरियाणा में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) साथ आ रहे हैं। ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और बीएसपी प्रमुख मायावती के बीच इसे लेकर बातचीत हुई है और इस बारे में जल्द ही कोई एलान हो सकता है। इस ख़बर के आने के बाद से ही हरियाणा का सियासी तापमान बढ़ गया है। चंद दिन पहले ही बीएसपी ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) से गठबंधन तोड़ दिया था।
हरियाणा में बीजेपी की सरकार है और सोमवार को ही मोदी ने रोहतक में रैली कर चुनावी बिगुल फूंका था। मोदी ने कहा था कि रैली में आई भीड़ से हवा का रुख पता चल रहा है और केंद्र व राज्य सरकार के डबल इंजन का पूरा फ़ायदा हरियाणा को मिला है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से पूरा प्रदेश नाप चुके हैं।
गुटों में बंटी है कांग्रेस
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, कांग्रेस राज्य में पांच गुटों में बंटी हुई है। इनमें हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, विधानसभा में विपक्ष की नेता रहीं किरण चौधरी और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला का गुट है। जींद विधानसभा उपचुनाव में जब सुरजेवाला हारे थे तो तब भी यह माना गया था कि गुटबाज़ी के कारण ही उनकी हार हुई है।
अब सवाल यह है कि क्या बीएसपी के कांग्रेस के साथ आने से हरियाणा में बीजेपी को हरा पाना आसान होगा। बीएसपी को हरियाणा में 6 से 7 फ़ीसदी वोट मिलते रहे हैं और कांग्रेस को उम्मीद है कि गठबंधन होने पर पार्टी को ये वोट मिल सकते हैं और वह बीजेपी को राज्य की सत्ता से बाहर कर सकती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीएसपी ने कांग्रेस को समर्थन दिया है।
बीएसपी हरियाणा में इससे पहले इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो), बीजेपी के पूर्व बाग़ी सांसद राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और इनेलो से टूटकर बनी जेजेपी से गठबंधन कर चुकी है लेकिन तीनों ही दलों से उसने बारी-बारी से गठबंधन तोड़ दिया।
जाट-दलित वोटरों पर नज़र
हरियाणा में क़रीब 25 से 27 फ़ीसदी जाट और 20 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं। कांग्रेस ने अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है जो दलित समुदाय से हैं वहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता और चुनाव प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनाकर जाट वोटों को साधने की कोशिश की गई है। जानकारों के मुताबिक़, हुड्डा चाहते थे कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाए लेकिन चूँकि अशोक तंवर दलित समुदाय से हैं इसलिए उन्हें हटाने से कहीं दलित मतदाता नाराज न हो जाएं इसलिए पार्टी ने दलित समुदाय के ही व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया। देखना होगा कि अगर कांग्रेस-बीएसपी में गठबंधन होता है तो क्या यह रणनीति कामयाब होगी?
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