प्रधानमंत्री का प्रिय नारा है, 'न खाऊँगा, न खाने दूँगा।' वह लगभग हर चुनाव में यह नारा उछालते हैं। इस बार तो हरियाणा चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने बीजेपी का प्रचार किया था और वहाँ भी यह मुद्दा उछाला था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद बीजेपी यह नारा भूल गई।
लालू से परहेज क्यों?
बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में सज़ा भुगत रहे हैं और जेल में बंद हैं। उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल कांग्रेस के साथ है और इन दोनों दलों ने मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ा था। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस और आरजेडी पर ज़ोरदार हमला बोला था। उन्होंन उस समय भी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था।
सवाल यह उठता है कि यदि चौटाला जेल से छूट सकते हैं तो लालू यादव क्यों नहीं? उनकी तो उम्र भी ज़्यादा है और वह लंबे समय से बीमार हैं। उन्हें रांची के रांजेंद्र मेडिकल कॉलेज में रखा गया है।
कहाँ गया भ्रष्टाचार का मुद्दा?
इसके साथ ही जिस कांग्रेस के लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप प्रधानमंत्री लगाते हैं और हर सभा में कोसते रहते हैं, उनके मुद्दे पर भी मोदी से सवाल पूछा जा सकता है। मोदी ने राहुल और सोनिया गाँधी पर ज़बरदस्त हमले बोले हैं और उन्हें भष्ट्र कऱार देते हुए कहा है कि ये तो ज़मानत पर हैं, कभी भी जेल जा सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इन पर तो आरोप लगे हैं, किसी अदालत में साबित नहीं हुआ है, उन्हें जेल भी नहीं हुई है।बीजेपी ने जिस पार्टी के समर्थन से हरियाणा में सरकार बनाई है, उसके नेता जेल की सज़ा काट रहे हैं, उन पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट तक ने उसे सही पाया है।
मामला चिदंबरम का?
इसी तर्क को आगे बढ़ाने पर चिदंबरम का मामला भी ध्यान देने लायक है। सीबीआई अब तक पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं जुटा पाई है, जिस समय उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उस समय तक चिदंबरम के ख़िलाफ़ चार्जशीट तक दाखिल नहीं की गई थी। पर चिदंबरम बीते दो महीने से जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने चिदंबरम की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि गवाहों को प्रभावित करने का रत्ती भर साक्ष्य नहीं है। सीबीआई मामले में ज़मानत मिलने के साथ ही ईडी ने चिदंबरम को हिरासत में ले लिया, जबकि चिदंबरम ने पहले ही कहा था कि ईडी उनसे पूछताछ कर ले। ईडी ने नहीं किया था ताकि चिदंबरम को ज़्यादा से ज़्यादा समय तक जेल में रहना पड़े।अजय चौटाला पर क्या आरोप थे?
अजय चौटाला को 10 साल की सज़ा जूनियर बेसिक टीचर की नियुक्ति में घपला करने और हर उम्मीदवार से 3-4 लाख रुपये लेकर उन्हें नौकरी देने की वजह से हुई थी। उन पर लगे आरोप अदालत में साबित भी हो गए थे।
हरियाणा के प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने साल 2000 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि ओम प्रकाश चौटाला की सरकार ने 3,208 जूनियर बेसिक टीचर की नियुक्ति में घपला किया।
सीबीआई ने 6 जून 2008 को सौंपे चार्ज शीट में कहा था कि राज्य के सभी 18 ज़िलों की निर्वाचन समिति के सदस्यों और शिक्षा निदेशक की बैठक के बाद जो नई सूची बनाई गई थी। सीबीआई ने यह भी कहा था कि चौटाला पिता-पुत्र ने काग़ज़ात में धोखाधड़ी भी की थी।
इस मामले में तत्कालीन मुख्य मंत्री ओम प्रकाश चौटाला, उनके बेटे और शिक्षा मंत्री अजय चौटाला, शिक्षा निदेशक और इस मामले को उजागर करने वाले संजीव कुमार, चौटाला के ओएसडी विद्याधर व मुख्य मंत्री के राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बदशामी को दोषी पाया गया था।
वही अजय चौटाला फ़रलो पर रिहा हो गए हैं। उन्होंने फ़रलो के लिए 10 दिन पहले ही अर्जी़ दी थी।
क्या होता है फ़रलो?
लंबे समय के लिए जेल में बंद क़ैदियों को फ़रलो मिलता है और उन्हें सुधारने और जेल व्यवस्था को अधिक मानवीय बनाने के मक़सद से यह दिया जाता है। जितने दिन का फ़रलो मिलता है, वह अवधि उस क़ैदी की सज़ा में जोड़ी नहीं जाती है, यानी उतने दिन की सज़ा एक तरह से माफ़ मानी जाती है। फ़रलो देने का हक़ जेल प्रशासन के निदेशक को होता है। उसकी नियुक्त राज्य सरकार करती है। इसलिए राजनीतिक दबाव या हस्तक्षेप या दूसरे कारणों से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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