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बिहार में आख़िरी चरण में एनडीए-महागठबंधन में जोर-आजमाइश

लोकसभा चुनाव के आख़िरी चरण में बिहार में नालंदा, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, आरा, बक्सर, काराकाट, जहानाबाद और सासाराम की सीटों पर वोट डाले जाएँगे। पिछले लोकसभा चुनाव की तसवीर यदि देखें तो ये सारी सीटें तब एनडीए के पास थीं। हालाँकि इनमें से 2 सीट काराकाट और जहानाबाद तब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के पास थीं जिसके प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा अब महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं। संभावनाओं के लिहाज से यदि इन सीटों को देखें तो ऐसा लगता है कि शायद एनडीए 2014 के प्रदर्शन को नहीं दुहरा सकेगा।  
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नालंदा, बक्सर की सीटों पर पर बीजेपीनीत ख़ेमे को निर्णायक बढ़त मिलती दिख रही है। नालंदा की जहाँ तक बात है, इस पर निर्विवाद रूप से जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का पलड़ा भारी है। कौशलेन्द्र कुमार यहाँ हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं। यहाँ इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी होगा कि 2014 जैसे कठिन हालात में भी जेडीयू ने यह सीट जीती थी और कौशलेन्द्र कुमार ने लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के सत्यानंद शर्मा को लगभग 10,000  वोटों से हराया था। यह परिणाम तब था जब नीतीश कुमार ने 2013 में बीजेपी को अलविदा कह दिया था और अकेले चुनाव मैदान में उतरे थे। यह सीट निश्चित रूप से नीतीश कुमार का गढ़ है, कुर्मी बहुल है और साथ ही यहाँ के अन्य सभी जातियों के मतदाता कमोबेश नीतीश कुमार को वोट देते रहे हैं। इस बार बीजेपी, जदयू और लोजपा साथ-साथ हैं और महागठबंधन से मांझी की पार्टी के अशोक कुमार आज़ाद अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बिहार की बक्सर लोकसभा सीट पर 2014 में हुए चुनाव में बीजेपी के अश्विनी कुमार चौबे ने जीत हासिल की थी। उन्हें 3,19,012 वोट मिले थे, वहीं 1,86,674 वोटों के साथ राष्ट्रीय जनता दल के जगदानंद सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। ब्राह्मण और राजपूत बहुल इस क्षेत्र में बीजेपी, महागठबंधन पर भारी पड़ती दिख रही है। हालाँकि आरजेडी के जगदानंद सिंह भी काफ़ी ताक़तवर, ज़मीनी और पुराने नेता हैं और कई बार विधायक रहे हैं।
लालू यादव के पुराने और विश्वस्त साथियों में शुमार जगदानंद सिंह ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताक़त झोंक रखी है। अश्विनी चौबे को 2014 में 35.88 फ़ीसदी वोट मिले थे जबकि जगदानंद सिंह को 20.99 फ़ीसदी मत मिले।
एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में जहाँ नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, योगी आदित्यनाथ की सभाएँ हो चुकी हैं, वहीं महागठबंधन के प्रत्याशी के समर्थन में तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा सभा कर चुके हैं। लेकिन यह 15 फ़ीसदी का अंतर जगदानंद बाबू कैसे पाटेंगे, यह देखने वाली बात होगी।

पाटलिपुत्र, पटना साहिब का घमासान

पाटलिपुत्र में इस बार आरजेडी ने पूरे संसाधन झोंक दिए हैं। पैसे से लेकर गाड़ी तक, सभाओं से लेकर गठबंधन के सभी दिग्गजों तक के रोड शो तक, दाँव से लेकर पेच तक, आरजेडी इस सीट को बीजेपी से छीनने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। इसलिए इस सीट पर इस बार लड़ाई बहुत ही कठिन है और कुछ भी स्पष्ट रूप से कह पाना बहुत ही ज़्यादा मुश्किल है।2014 में बीजेपी के रामकृपाल यादव ने आरजेडी नेत्री और लालू की पुत्री मीसा भारती को लगभग 50000 वोटों से शिकस्त दी थी। लेकिन इस बार की बात अलग है। मीसा ने इस सीट को यदि इस बार नहीं जीता तो यह लोकनेता के तौर पर उनकी पहचान स्थापित करने की जद्दोजहद को पूरी तरह चकनाचूर कर देगा। इसलिए मीसा के लिए इस सीट को जीतना बहुत ज़रूरी है। लेकिन सब कुछ अपने मनमुताबिक होता तो बात और होती।
मीसा भारती के लिए सबसे मजबूत पक्ष यह है कि वह लालूजी की बेटी हैं और सबसे कमजोर पक्ष यह है कि वह लोगों के बीच की नेता नहीं हैं।
दूसरी ओर, बीजेपी के रामकृपाल यादव का सबसे मजबूत पक्ष है कि वह पाटलिपुत्र की गली-गली से, ईंट-ईंट से परिचित हैं। पाटलिपुत्र के संभ्रांत जन से लेकर गुंडे-मवाली, चोर-उचक्के सभी को वह जानते हैं और सब उन्हें भी जानते हैं। लेकिन इस बार उनकी राह पिछली बार की तरह आसान नहीं है। पिछले चुनाव में यादवों ने भी जमकर रामकृपाल यादव को वोट डाले थे। इसके दो कारण थे। एक तो उनका टिकट काटकर मीसा को चुनाव लड़वाने  से उपजी सहानुभूति और ऊपर से नरेंद्र मोदी की लहर।

मीसा को मिल सकते हैं यादव वोट

भूमिहारों की अच्छी-ख़ासी आबादी वाले इस क्षेत्र में यादव भी निर्णायक संख्या में हैं। लेकिन यादव के वोट इस बार मीसा भारती को मिल रहे हैं, ऐसा लग रहा है। दियर का इलाका जहाँ के यादवों ने पिछली बार मीसा को वोट नहीं दिया था, इस बार वहाँ से ख़बर उनके लिए सकारात्मक है। दूसरी अच्छी बात उनके लिए यह है कि सीपीआई माले ने पिछले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारकर उतना नुक़सान कर दिया था  जितने से वह हार गयी थीं, जो इस बार नहीं है।
पटना साहिब में रविशंकर प्रसाद के पक्ष में माहौल मज़बूत है। इस तथ्य के बावजूद कि वहाँ के स्थानीय बीजेपी विधायक उनसे नाराज़ हैं। ऐसी स्थिति में भीतरघात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
साल 2014 में पटना साहिब में 19 लाख से ज़्यादा मतदाता थे और 19 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। तब बीजेपी नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने सबको पछाड़ते हुए 4 लाख 85 हजार 905 वोट लेकर जीत का परचम लहराया था। तब कांग्रेस के उम्मीदवार कुणाल सिंह 2 लाख 20 हजार वोटों के दम पर दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार जहाँ शत्रुघ्न सिन्हा को उनका साथ मिल रहा है, वहीं आरजेडी और महागठबंधन का एक मजबूत वोट बेस भी है। लेकिन इस सबके बीच इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि बहुत बड़ी आबादी वाला कायस्थ सहित सवर्ण मतदाता बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े हैं।
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आरा, सासाराम में महागठबंधन मजबूत आरा में सीपीआई (माले) के राजकुमार यादव बीजेपी के आरके सिंह को कड़ी टक्कर देंगे लेकिन वह जीत से दूर हैं। आरा में राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं जो बिना किसी शक-सुबहा के बीजेपी के साथ हैं। साल 2014 में आरा में 18 लाख से ज़्यादा मतदाता थे तब बीजेपी उम्मीदवार राजकुमार सिंह को 3 लाख 91 हजार से ज़्यादा वोट मिले थे और वह चुनाव जीते थे। आरजेडी के उम्मीदवार भगवान सिंह कुशवाह को 2 लाख 55 हजार 204 वोट मिले थे। जेडीयू की महिला प्रत्याशी मीना सिंह 75 हजार वोट लाकर तीसरे नंबर पर रहीं थीं। इस तरह बीजेपी ने सवा लाख से भी अधिक वोटों से यह सीट जीती थी।
तब बीजेपी को 43.78 फ़ीसदी, आरजेडी को 28.57 फ़ीसदी, जेडीयू को 8.50 फ़ीसदी वोट मिले थे। इस बार सीपीआई (माले) के उम्मीदवार राजू यादव आरके सिंह के जीत के अंतर को यदि कम कर दें तो यह उनकी बड़ी उपलब्धि होगी। स्थिति में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं है। इस सीट पर भी बीजेपी बहुत मजबूत और जीतती हुई दिखती है। सासाराम में महागठबंधन जीत की उम्मीद कर सकता है। काराकाट में उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार सकते हैं, ऐसा लगता है। जहानाबाद सीट पर भी एनडीए मज़बूत दिख रहा है।
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क़मर वहीद नक़वी

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