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क्या कॉर्पोरेट घराने कर रहे हैं बदलाव का इशारा ?

देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई से राजनीतिक बदलाव के संकेत आ रहे हैं। कॉरपोरेट जगत मोटे तौर पर अराजनीतिक बना रहता है और सरकार के साथ मिल कर अपने व्यावसायिक हितों की रक्षा करना ही उसका मक़सद रहता है। ऐसे में यदि कॉरपोरेट घरानों से जुड़े वोटर यह कहें कि उन्हें विपक्षी गठबंधन से कोई समस्या नहीे है तो इसे एक झटके से टाला नहीं जा सकता है। इसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। यह इसका संकेत है कि कॉपोरेट जगत विपक्ष को यह संकेत दे रहा है कि उससे भविष्य में बनने वाली गठबंधन सरकार से कोई समस्या नहीं है। इससे यह संकेत भी मिलता है केंद्र की सरकार बदल सकती है, नया नेतृत्व उसकी जगह ले सकता है, नई पार्टी या पार्टियों के गठबंधन की सरकार उस जगह आ सकती है।   

दूसरी बात यह है कि इस बार मायानगरी में काफ़ी दिनों बाद ज़बरदस्त वोटिंग हुई। यहाँ लंबे समय के बाद 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने वोट डाला। मुंबई की 6 सीटों पर 55.11 प्रतिशत वोटिंग हुई। गर्मी और उमस के बावजूद मुंबई के युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक में मतदान के लिए काफी जोश दिखा। यहां 1989 में 57.7 प्रतिशत मतदान हुआ था। उसके बाद तीन दशकों में केवल 2 बार (1998 और 2014 में) ही आधे से ज्यादा लोगों ने मतदान किया था। 
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उत्तर मुंबई से कांग्रेस की उर्मिला मातोंडकर और भारतीय जनता पार्टी के गोपाल शेट्टी में काँटे का मुक़ाबला है। वहाँ साल 2014  में 53.07 फ़ीसदी मतदान हुआ, जबकि इस बार वंहा 6 फ़ीसदी अधिक होकर 59.32 % हुआ है। उत्तर पश्चिम मुंबई लोकसभा सीट पर भी इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले 4% मतदान बढ़ा है। यंहा पर कांग्रेस के संजय निरुपम और शिव सेना के गजानन कीर्तिकर के बीच मुक़ाबला है। 

मतदाताओं का रुझान?

इस लोकसभा में मराठी, उत्तर भारतीय और मुसलिम मतदाताओं की संख्या क़रीब-क़रीब बराबर है। साल 2014 में यंहाँ 50.57 % मतदान हुआ था, जो इस बार बढ कर 54.71 % हो गया। उत्तर पूर्व मुंबई मुंबई में भी 2014  के 51.07% के मुकाबले 2019 में 56.31% मतदान हुआ। उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा सीट पर साल 2014 में 48.67% तो इस बार 52.84% मतदान हुआ। दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा में यह बढ़त 2% के आसपास रही। साल 2014 में यंहाँ 53.09% मतदान हुआ था, जबकि इस बार 55.35%। शहर की एक मात्र सीट दक्षिण मुंबई लोकसभा क्षेत्र में इस बार पिछले चुनाव से थोड़ा कम मतदान हुआ। साल 2014  में यंहा 52.49% मतदान हुआ जो इस बार घटकर 52.15% रह गया। 

इस बार के मतदान में एक बात ख़ास यह देखने को मिली की दलित और मुसलिम बस्तियों में बड़े पैमाने पर मतदान हुआ है। ये मतदाता परम्परागत रूप से कांग्रेस के होते थे, लेकिन इस बार प्रकाश आम्बेडकर व असदउद्दीन ओवैसी की वंचित आघाडी भी मैदान है। इसलिए वोटों के बँटवारे की संभावना है।

कॉरपोरेट जगत को गठबंधन से परहेज नहीं?

मुंबई में वोट करने के बाद कई कॉर्पोरेट घरानों के मुखियाओं ने प्रेस को दिए बयान में इस बात का जिक्र किया की गठबंधन सरकार से उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा और विकास प्रभावित नहीं होगा। मोटर कार और दूसरे उद्योगों में मजबूत उपस्थिति रखने वाले महिंद्रा समूह के प्रमुख आनंद महिंद्रा का यह कहना कि अतीत में भी गठबंधन की सरकारें रह चुकी हैं, बदलाव की ओर संकेत करता है। उनका यह कहना इसलिए भी अहम है क्योंकि वह मोदी के नज़दीक समझे जाते हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक कार्यक्रम में 'प्रकाश आपकी ओर से आ रहा है' बोलने वाले महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनन्द महिंद्रा की राय से यह संकेत मिल रहा है कि गठबंधन की सरकारों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं।
उन्होंने पत्रकारों से कहा, 'हम सभी में प्रगति एवं वृद्धि का कीड़ा समा गया है। अगर गठबंधन की सरकार आती है तो वह भी इन्हीं रास्तों पर चलेगी और वह हम लोगों के लिए लाभदायक है।' सोमवार को उन्होंने दक्षिण मुंबई के एक मतदान केंद्र पर वोट देने के बाद यह बात कही थी। आनन्द महिंद्रा ने कहा कि लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र की सत्ता में चाहे जो भी आए, भले ही वह गठबंधन सरकार ही क्यों न हो, उसे विकास के लिए काम करना चाहिए। 

केंद्र में गठबंधन सरकारें रह चुकी हैं और उन्होंने सुशासन दिया है। इसमें कोई दिक्क़त नहीं है। मेरी राय में हमारा लोकतंत्र बहुत परिपक्व है और हम गठबंधन सरकारों का सुशासन देख चुके हैं। इसलिए मैं चिंतित नहीं हूं।


सज्जन जिंदल, अध्यक्ष, जेएसडब्ल्यू

जिंदल ने कहा कि औद्योगिक वृद्धि, नौकरी और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम करने की जरूरत है. उन्होंने केंद्र में स्थिर सरकार की जरूरत पर बल दिया जो सतत विकास सुनिश्चित कर सके। गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज ने कहा, 'कोई गठबंधन अगर मजबूती से जुड़ा हुआ है तो हम अच्छा कर सकते हैं।'
रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी और बैंकर उदय कोटक ने मुंबई दक्षिण से कांग्रेस के उम्मीदवार मिलिंद देवड़ा के समर्थन में एक वीडियो में सार्वजनिक रूप से उनके लिए मतदान की अपील की थी।
कई जानकारों को लगता है कि इन चुनावों के बाद खंडित नतीजे आ सकते हैं। वैसे सोशल मीडिया और वेब न्यूज़ चलाने वाले कई वरिष्ठ पत्रकार भी हर चरण के बाद अपने -अपने विश्लेषण कर रहे हैं। इनमें से अधिकाँश पत्रकारों के विश्लेषण इस बात का इशारा कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी को हर चरण में नुक़सान हो रहा है। ऐसे में कॉर्पोरेट घरानों के प्रमुखों के ये बयान भी क्या इसी बदलाव का संकेत दे रहे हैं। 
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संजय राय

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