चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बालाकोट हवाई हमले के नाम पर वोट माँगा है। हालाँकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बना लिया था और पुलवामा आतंकवादी हमले और बालाकोट हवाई हमले को भुनाना शुरू कर दिया था, लेकिन मंगलवार को उन्होंने जिस तरह खुले आम बालाकोट के नाम पर वोट माँगा, उससे लोग हतप्रभ हैं।
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मैं पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं से पूछना चाहता हूँ. क्या आपका पहला वोट बालाकोट में हमला करने वाले सैनिकों को समर्पित हो सकता है? क्या आपका पहला वोट उन शहीदों के नाम हो सकता है, जिन्होंने पुलवामा आतंकवादी हमले में अपनी जान गँवाई हैं?
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
300 आतंकवादी मारे गए?
याद दिला दें कि चुनाव आयोग ने पहले ही यह कह रखा है कि चुनाव प्रचार में सेना या सैनिकों का किसी तरह इस्तेमाल न हो। आयोग ने कहा था कि तस्वीरों, दूसरे प्रचार सामग्रियों या भाषणों में किसी भी रूप में सेना या सैनिकों का प्रयोग न किया जाए। साफ़ है, आयोग का मानना है कि सेना का राजनीतिक इस्तेमाल न हो। लेकिन लातूर के भाषण में मोदी ने इस आदेश का और इसकी मूल भावना का खुले आम उल्लंघन किया है। उन्होंने सेना का इस्तेमाल तो किया ही है, शहीदों के नाम पर वोट माँगा है।
याद रहे, 14 फ़रवरी को जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के पुलवामा में सीआरपीएफ़ के एक काफ़िले में जैश-ए-मुहम्मद के एक आतंकवादी ने अपनी गाड़ी घुसा कर विस्फ़ोट करा दिया। इस हमले में सीआरपीएफ़ के 40 जवान मारे गए। उसके बाद भारत ने बदले की कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में मौजूद जैश के प्रशिक्षण शिविर पर हवाई हमला किया। सत्तारूढ़ बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया कि इस हमले में 300 आतंकवादी मारे गए, हालाँकि अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों का कहना है कि उन्हें किसी के मरने की जानकारी नहीं मिली। अगले दिन पाकिस्तानी वायु सेना के जहाज़ भारतीय सीमा में घुस आए और बम गिराए। उन्हें रोकने की कोशिश में उड़ा भारतीय वायु सेना का एक हेलीकॉप्टर गिर गया और उसमें छह सैनिक शहीद हो गए।
शहीदों के नाम पर वोट?
प्रधानमंत्री ने पहली बार वोट डालने वालों से कहा, 'आप 18 साल के हो रहे हैं। आपको देश के लिए वोट डालना चाहिए, आपको मजबूत सरकार के लिए वोट देना चाहिए, आपको देश को मजबूत करने के लिए वोट डालना चाहिए।'
पर्यवेक्षकों का कहना है कि शहीद सैनिकों के नाम पर वोट माँगना यह दर्शाता है कि राजनीति किस स्तर तक जा चुकी है। चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी की नीतियों और उनके फ़ैसलों की आलोचना की जाती है, आरोप-प्रत्यारोप होते हैं, यहाँ तक तो ठीक है। पर सीधे सेना के नाम पर वोट माँगने को ग़लत माना जा रहा है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सेना या सैनिक किसी एक दल के नहीं होते हैं, सत्तारूढ़ दल के भी नहीं। इसलिए सेना पर किसी एक दल का अधिकार नहीं है। दूसरी बात यह है कि सेना का राजनीतिक इस्तेमाल पूरी तरह ग़लत समझा जाता है। शायद यह नए किस्म की राजनीति है, जहाँ इस तरह की बातों का कोई महत्व नहीं होता है। लोग राजनीति के लिए और अपने विरोधियों पर हमला करने के लिए किसी भी स्तर तक उतर सकते हैं।
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