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शिवराज सरकार ने आंगनवाड़ियों में अंडे पर 'प्रतिबंध' क्यों लगाया?

मध्य प्रदेश की क़रीब एक लाख आंगनवाड़ियों में पहुँचने वाले मांसाहारी बच्चों को अंडा नहीं परोसा जायेगा। राज्य सरकार इन बच्चों को दूध मुहैया करायेगी। सभी बच्चों को अब से सप्ताह में तीन दिन दूध परोसा जायेगा। शिवराज सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में यह फ़ैसला लिया।

कैबिनेट में हुए निर्णय की जानकारी सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने दी। शिवराज सरकार के इस निर्णय के बाद सवाल उठने लगे हैं। चूँकि जल्द ही स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं, लिहाजा कांग्रेस और अंडे का समर्थन करने वाले दूसरे दल फ़िलहाल चुप्पी साधते हुए ‘देखो और इंतज़ार करो’ की मुद्रा में आ गये हैं।

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मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘कांग्रेस सरकार में अंडा परोसने का निर्णय नहीं हुआ था।’ प्रशासकीय स्वीकृति और एक अप्रैल 2020 से आंगनवाड़ियों में अंडे वितरण के फ़ैसले याद दिलाए जाने पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित ने शिवराज सरकार के आंगनवाड़ियों में अब से अंडा ना परोसे जाने के फ़ैसले पर आश्चर्य जताया। उन्होंने कहा, ‘लाखों बच्चे हर दिन आंगनवाड़ियों में आते हैं। बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित हैं। मध्य प्रदेश कुपोषण के लिये बदनाम है। कुपोषण से निपटने के लिए प्रोटीन महत्वपूर्ण तत्व है। प्रोटीन का सबसे सुगम साधन अंडा है। यदि मांसाहार करने वाले परिवारों के बच्चे अंडा खाते तो इसमें किसी को कोई हर्ज नहीं होना चाहिए था।’

बता दें कि प्रदेश की तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने आंगनवाड़ी के बच्चों को अंडा परोसने का क़दम उठाया था। नाथ सरकार ने नवंबर 2019 में आंगनवाड़ियों के बच्चों को अंडा परोसे जाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति देते हुए इस बारे में प्रशासकीय स्वीकृति दी थी। 

प्रशासकीय स्वीकृति के वक़्त तय हुआ था कि एक अप्रैल 2020 से बच्चों को हफ़्ते में तीन दिन अंडा परोसा करेगी। 

कमलनाथ सरकार के क़दम का बीजेपी और उसके अनुषांगिक संगठनों ने जमकर विरोध किया था। जैन समाज ने भी कमल नाथ सरकार के क़दम को अनुचित क़रार देते हुई विरोध किया था।

फ़ैसला लागू हो पाने के पहले ही कमल नाथ की सरकार चली गई। कांग्रेस के बाग़ी विधायकों की मदद से शिवराज सिंह की अगुवाई में बीजेपी फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता में आ गई।

शिवराज के सत्ता संभालते ही कोरोना की वजह से लॉकडाउन लग गया।

shivraj government rejects plan for eggs in anganwadi - Satya Hindi

अंडे के ‘फंडे’ पर जमकर हुई थी राजनीति

मध्य प्रदेश की कमल नाथ सरकार में अंडे के ‘फंडे’ पर जमकर राजनीति हुई थी। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश में पार्टी का बड़ा चेहरा कैलाश विजयवर्गीय ख़ूब बरसे थे। उन्होंने कमल नाथ सरकार के क़दम को समाज को भ्रष्ट करने का वाला निर्णय बता डाला था। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे शिवराज सरकार के पुराने वरिष्ठ मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ने भी ख़ूब सवाल उठाये थे।

कमल नाथ सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग का दायित्व संभालने वाली मंत्री इमरती देवी मुखरित होकर सामने आयी थीं। बीजेपी और उनके नेताओं से इमरती देवी ने जमकर सवाल-जवाब किये थे। यद्यपि बाद में वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के झंडे तले कमल नाथ सरकार को गिराकर बीजेपी में शामिल हो गई थीं। 

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शिवराज बाग़ी कांग्रेस विधायकों की मदद से जब चौथी बार सीएम बने थे तो उन्होंने ग़ैर विधायक इमरती देवी को अपनी काबीना में जगह देते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग ही सौंपा था। कोरोना की वजह से लंबे  लॉकडाउन के बाद हालात सामान्य होना शुरू हुए तो भी अंडे पर ख़ूब राजनीति हुई। 

शिवराज सरकार में महिला एवं बाल विकास विभाग की कमान संभालने के बाद भी अंडे को लेकर इमरती देवी के सुर नहीं बदले थे। उन्होंने आंगनवाड़ियों में अंडा वितरण की जमकर पैरवी की थी। बहरहाल, इमरती देवी बाद में चुनाव हार गईं और उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा।

पाँच हज़ार करोड़ का है बजट

महिला एवं बाल विकास विभाग आंगनवाड़ियों से जुड़ी व्यवस्थाओं के लिए हर साल अपने बजट में पाँच हज़ार करोड़ के लगभग की व्यवस्था करता है। इस राशि में वेतन-भत्तों और मूलभूत सरंचना के विस्तार के अलावा क़रीब 1300 करोड़ रुपयों की राशि पोषण आहार के लिए होती है। तमाम पौष्टिक खाद्य सामग्री पोषण आहार के तहत सरकार वितरित करती है।

कमल नाथ सरकार ने जब अंडा परोसने संबंधी क़दम उठाया था, तब अकेले अंडे पर 90 करोड़ रुपये साल का अतिरिक्त भार सरकारी खजाने पर आने संबंधी बात सामने आयी थी। कमल नाथ सरकार ने कुपोषण से लड़ाई के लिए इस राशि को एक झटके में सैद्धांतिक तौर पर मंजूर कर लिया था। 

सरकार ने यह भी माना था कि अंडा परोसे जाने का सबसे ज़्यादा लाभ आदिवासी इलाक़ों के बच्चों को होगा। दरअसल, कुपोषण का शिकार आदिवासी क्षेत्रों के सबसे ज़्यादा बच्चे हैं। मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले की खालवा तहसील देश के सबसे गंभीर कुपोषित बच्चों के तौर पर सामने आयी है।

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संजीव श्रीवास्तव

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