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प्रतीकात्मक तसवीर

आगरा: ऑक्सीजन मॉकड्रिल को क्यों छिपा रहा है प्रशासन?

मीडिया के समक्ष संचालक डॉ. अरिंजय जैन ने कहा कि ‘जो मरीज 10 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन फ्लो पर भर्ती थे उनके लिए ऑक्सीजन पर्याप्त नहीं थी। हमें 200 सिलिंडर की जगह 110 सिलिंडर मिले। मुझे मेरे वेंडर ने बताया कि मोदी नगर और अन्य जगह प्लांट ड्राई हो गए हैं। उसी बात को मैंने वीडियो में कहा है।’
अनिल शुक्ल

ऑक्सीजन की मॉकड्रिल के चलते हुई 22 कोरोना रोगियों की मृत्यु की अस्पताल संचालक की आत्मस्वीकृति का वीडियो वायरल होने से आगरा शहर में उठे नागरिकों के हंगामे के बाद आख़िरकार ज़िला प्रशासन को मजबूर होकर बुधवार की दोपहर अस्पताल को सीज़ करने के साथ-साथ उसका और उसके संचालक डॉक्टर का लाइसेंस निलंबित करना पड़ा। इससे पहले 3 दिन तक प्रशासन सहायक सीएमओ की अध्यक्षता में एक जाँच समिति बनाकर मामले को रफा दफा करने की कोशिश में लगा हुआ था।

बहरहाल, अब भी उसका सारा ज़ोर इस बात को साबित करने में है कि बीती 26/27 अप्रैल को (जैसा कि अस्पताल के संचालक ने अपने वीडियो में क़बूल किया है) न तो उक्त अस्पताल में किसी प्रकार का ऑक्सीजन का संकट था, न आगरा शहर में और न प्रदेश में। ऐसा उसे इसलिए साबित करना पड़ रहा है ताकि उन दिनों मुख्यमंत्री के उस वक्तव्य की भद्द न पिट जाय जिसमें योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ऑक्सीजन के किसी प्रकार के संकट की संभावना से पूर्णतः इंकार किया था। फ़िलहाल प्रशासन ने अस्पताल और उसके मालिकों पर जो मुक़दमे दायर किये हैं उसमें उन 22 रोगियों की संख्या छुपाने का कोई ज़िक्र नहीं है जिनकी मृत्यु अस्पताल की लापरवाही के चलते 26/27 अप्रैल को हुई बल्कि ज़िला प्रशासन की सारी चिंता 7 जून 2021 को वायरल हुए उस वीडियो क्लिपिंग से है जिसने (प्रशासन की दृष्टि से) आगरा की शांति को भंग किया है।

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अपनी चिकित्स्कीय क्रूरता के लिए सारे देश में 3 दिन से चर्चा में आया असरदार प्रबंधन वाला आगरा का 'श्री पारस हॉस्पिटल' गत वर्ष कोरोना की पहली लहर में भी चिकित्सकीय प्रोटोकॉल का पालन न करने और 90 से अधिक कोविड संक्रमण को आसपास के कई ज़िलों तक फ़ैलाने के गंभीर जुर्म में फंसा था। कहा जाता है कि लखनऊ स्थित शासन के उच्च पदस्थ सूत्रों की मदद से इसे बचाने की बड़े पैमाने पर कोशिश हुई थी लेकिन मीडिया और मृतकों के परिजनों के बड़े बवाल के बाद अंततः इसे सीज़ कर दिया गया है। कुछ दिनों बाद न सिर्फ़ इसे खोल दिया गया बल्कि इस बार 'कोविड स्पेशल हॉस्पिटल' की मान्यता से भी इसे नवाज़ दिया गया। इस बार भी अस्पताल के मालिक और पेशे से डॉक्टर की क्रूर हरकत के वीडियो के वायरल हो जाने से उठे विवाद के बाद पहले 'जांच' का तम्बूरा बैठा कर इसे बचाने की कोशिश की गयी। आख़िर प्रशासन क्यों इस घटना को छिपाने की कोशिश में जुटा है?

मज़ेदार बात यह है कि इस बार भी प्रशासन ऑक्सीजन के अभाव में हुईं 22 मौतों की इसके मालिक की स्वीकारोक्ति को छिपाने की कोशिश में जुटा है ताकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस दौर के ‘ऑक्सीजन की कमी न होने’ के दावे का झूठ उजागर न हो। कोविड की पहली और दूसरी 'वेव' के दौरान होने वाली निजी अस्पतालों की क्रूरता, प्रोटोकॉल के पालन को खड्ड में डालना और मरीज़ों के परिजनों को दोनों हाथों से लूटने वाला 'श्री पारस हॉस्पिटल' प्रदेश का अकेला अस्पताल नहीं है। बेशक योगी सरकार अपनी प्रशासकीय प्रबंधन के कौशल के कितने ही दावे क्यों न पेश करे।
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इस वर्ष अप्रैल महीने में जबकि देश में ऑक्सीजन का संकट अपने चरम पर था, तब इस अस्पताल के प्रबंधकों ने ऑक्सीजन की मॉक ड्रिल करके कैसे 22 मरीज़ों को मार डाला, इस पर बात करने से पहले अस्पताल के संचालक अरिंजन जैन के छह मिनट के चार वीडियो में कही गई बातों को पढ़ा जाए जो 2 दिन से पूरे देश में वायरल हो रहा है:

वीडियो नंबर 1-  

डॉ. अरिंजन जैन : मेरे पास ट्रेडर का फोन आया। संभवी वाले का… कहां हो बॉस आप कहां हो..? मैंने कहा-राउंड ले रहा हूं। उसने कहा-राउंड लेते रहना, हम मिलने आ रहे हैं। मैंने पूछा क्या हो गया? वह बोले-अरे नहीं, बॉस कत्ल की रात है। मुझे लगा कोई कांड हो गया ऑक्सीजन का। 12 बजे वह आया। बोला सर सुबह तक का माल है। मोदी नगर ड्राई हो गया। गाजियाबाद ड्राई हो गया। दिल्ली से गाड़ी आ नहीं रही। माल नहीं आ पाएगा। मैंने कहा- कैसी बात करते हो? ऑक्सीजन नहीं मिलेगी क्या? उसने कहा-कहां से मिलेगी। डीएम साहब ऑक्सीजन नहीं देंगे, कहां से देंगे। हम तो उसकी (ट्रेडर) बात को हल्के में ले रहे थे। आधा घंटा तो स्वीकार करने में लगा कि ऐसी घटना भी हो सकती है आगरा में कल। मरीज भर्ती थे 96… मेरे पास 12 घंटे का समय था।

वीडियो नंबर 2

डॉ. अरिंजन जैन : मेरे पास 12 घंटे का समय था, या ये सब मर जाएंगे या इन्हें रेफर कर दो। दिमाग बिल्कुल ख़त्म। कोई रास्ता दिखा ही नहीं। एक घंटे तक वार्डों में फोन किया कि कैसे बचें ये मरीज। रात एक बजे एक पत्र लिखा तीमारदारों के लिए आवश्यक सूचना। कि आगरा में पावर सप्लाई ऑक्सीजन की ख़त्म हो गई है। मरीजों के तीमारदार कहीं से इंतजाम कर लें। सुबह 10 बजे तक समय है। पत्र दिया नरेंद्र, गौरव चौहान को, लालजीत को। कहा कि सभी मरीजों को पढ़ा के आओ। नोटिस चिपकाते तो वायरल हो जाता। ढाई बजे रात में हड़कंप। हॉस्पिटल के बाहर तीमारदार इकठ्ठा हो गए।

दूसरा शख्स: जीवन ज्योति में तो खूब मारपीट हुई। 

डॉ. अरिंजन जैन : अरे नहीं मेरे यहां कोई घटना नहीं हुई है। मैं रिसेप्शन पर आया। सभी लोग लॉबी में खड़े थे। लोगों को समझाया तो लोग बोले कि हम जिएं या मरें कहां जाएंगे। सभी ने जाने से इनकार कर दिया।

वीडियो नंबर 3

डॉ. अरिंजन जैन : इसके बाद फैसला हो गया कि कोई कहीं नहीं जाएगा। हमने कहा, इतना बड़ा कांड हो गया, लास्ट ईयर कांड तो कुछ भी नहीं था। अब लिखा जाएगा कि पारस में 96 मरीजों की मौत। 

दूसरा शख्स : मौत का मंजर देखने को मिलेगा। 

डॉ. अरिंजन जैन : अब तो हो गया खेल खत्म। अब कैरियर भी खत्म। 304 लिखवाएंगे पत्रकार, मानेंगे नहीं। जेल भी होगी। आखिरी रात है, क्या करते फिर से मैंने ऑक्सीजन का ग्रुप पकड़ा। उस पर एक बड़ा पत्र डाला। अपनी मजबूरी लिखी। मैंने पत्र डाला कि ऑक्सीजन खत्म हो गई है। मैंने त्यागी वेंडर्स आदि से भी मदद मांगी। कुछ लोगों का रिप्लाई आया। एक ने 5 सिलेंडर देने की बात कही। मैंने कहा इससे क्या होगा। दो लाख, पांच लाख, दस लाख की गाड़ी ले लो, लेकिन सिलिंडर दे दो। भोपाल या कहीं से भी दिलवाओ। जिंदगी बचानी थी, कैरियर बचाना था। मैंने कहा-सोने का भाव लगा दो, टैंकर खड़ा करो। कैसे भी खड़ा करो। मुख्यमंत्री भी सिलिंडर नहीं दिलवा सकता था।

वीडियो नंबर 4

डॉ. अरिंजन जैन : मैंने आईएमए के संजय चतुर्वेदी को फोन किया। वह बोले- बॉस कि आप मरीजों को समझाओ, डिस्चार्ज करना शुरू करो। ऑक्सीजन कहीं नहीं है। मुख्यमंत्री भी ऑक्सीजन नहीं मंगा सकता। मोदीनगर ड्राई हो गया है। मेरे तो हाथ-पांव फूल गए। कुछ लोगों (मरीजों के परिवार वालों को) को व्यक्तिगत समझाना शुरू किया। कहा- समझो बात को। कुछ पेंडुलम बने रहे.. नहीं जाएंगे… नहीं जाएंगे। कोई नहीं जा रहा है। फिर मैंने कहा दिमाग मत लगाओ अब वो छांटो जिनकी ऑक्सीजन बंद हो सकती है। एक ट्रायल मार दो। पता चल जाएगा कि कौन मरेगा कौन नहीं। मॉकड्रिल सुबह 7 बजे की। ज़ीरो कर दिए … 22 मरीज छंट गए, 22 मरीज। नीले पड़ने लगे हाथ पैर, छटपटाने लगे, तुरंत खोल दिए। 

दूसरा शख्स : कितने देर की मॉकड्रिल थी। 

डॉ. अरिंजय जैन : 5 मिनट की मॉकड्रिल थी, इसके बाद तीमारदारों से कहा कि अपना-अपना सिलिंडर लेकर आओ। सबसे बड़ा प्रयोग यही रहा।

ऑक्सीजन के मॉकड्रिल में 22 कोरोना मरीजों को मार डाला जाना, शहर के चिकित्सा जगत के इतिहास की एक अभूतपूर्व और हैरतअंगेज़ घटना थी। वीडियो वायरल होते ही शहर में हंगामा उठ खड़ा हुआ।

प्रशासन ने इसकी पड़ताल करने के बदले तत्काल बचाव करने की नीति अपनायी। सबसे पहली प्रतिक्रिया आगरा के ज़िलाधिकारी प्रभु एन सिंह की आयी। जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके थे कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है तो भला डीएम कैसे ऑक्सीजन की कमी मानते। 

पहले दिन डिप्टी सीएमओ की अध्यक्षता में 'जांच' बैठा कर मामले को रफा दफा करने की कोशिश हुई। स्थानीय नागरिकों का ग़ुस्सा जब चरम पर पहुँचने लगा तो दूसरे दिन अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को इधर-उधर स्थानांतरित कर इसे सील कर दिया गया।

थाना न्यू आगरा में ‘श्री पारस हॉस्पिटल’ के संचालक डॉ. अरिंजय जैन के ख़िलाफ़ उप मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. आरके अग्निहोत्री ने रिपोर्ट दर्ज कराई है। उस पर धारा 144 के उल्लंघन, महामारी अधिनियम, आपदा प्रबंधन आदि अधिनियम के अंतर्गत चालान किया गया है।

26 अप्रैल 2021 के दिन अस्पताल में 4 कोविड रोगियों की मृत्यु दर्शायी गयी है। उनकी मृत्यु के कारण भी ऑक्सीजन की कमी न होकर अन्य चिन्हित किये गए हैं। 

प्रशासन ने मृतकों की वास्तविक संख्या और मृत्यु के कारणों की जांच करने की बजाय मुक़दमे में कहा है कि आगरा में संचालक के 7 जून के वीडियो वायरल होने से भ्रम की स्थिति बनी। जबकि अप्रैल माह में अस्पताल में पर्याप्त ऑक्सीजन की उपलब्धता थी। ‘इसमें डॉ. अरिंजय जैन, संचालक, श्री पारस अस्पताल की ओर से मोदीनगर, गाजियाबाद स्थित प्लांट पर भी ऑक्सीजन न होने और तथाकथित मॉक ड्रिल की बात कही गई है, जबकि ज़िला प्रशासन, औषधि निरीक्षक की टीम, स्थानीय और शासन स्तर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति कराई गई थी। इसके बाद भी डॉ. अरिंजय जैन के तथाकथित बयान से जनमानस में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है, जबकि आगरा में ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता थी। डॉ. अरिंजय जैन का यह कृत्य लोक शांति के निहित प्रावधानों के विपरीत है।’
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मीडिया के समक्ष संचालक डॉ. अरिंजय जैन ने कहा कि ‘जो मरीज 10 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन फ्लो पर भर्ती थे उनके लिए ऑक्सीजन पर्याप्त नहीं थी। हमें 200 सिलिंडर की जगह 110 सिलिंडर मिले। मुझे मेरे वेंडर ने बताया कि मोदी नगर और अन्य जगह प्लांट ड्राई हो गए हैं। उसी बात को मैंने वीडियो में कहा है।’ उधर मीडिया में दिए गए अपने वक्तव्य में ज़िलाधिकारी आगरा का कहना है कि अस्पताल में ऑक्सीजन की किल्लत नहीं थी। पारस अस्पताल में तीन दिन 25 से 27 अप्रैल तक 387 सिलिंडर भेजे गए। इतने सिलिंडर वहाँ भर्ती मरीजों के लिए पर्याप्त थे। इससे पहले और बाद में भी पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई। ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पताल में कोई मौत नहीं हुई थी। इसके अलावा अस्पताल में 20 रिजर्व सिलिंडर थे। जिनसे तीन से चार घंटे तक आकस्मिक स्थिति में भर्ती मरीजों को ऑक्सीजन दी जा सकती थी। इस प्रकरण के खुलने से 2 दिनों के भीतर ही 1 दर्जन से अधिक मृत मरीज़ों के घरवालों ने अपने रिश्तेदारों के उपरोक्त अस्पताल में 26 अप्रैल को ही मृत्यु होने की पुष्टि स्थानीय मीडिया के समक्ष अथवा एसएसपी को लिखित रूप में की है।  

यहाँ यह बात भी ग़ौरतलब है कि अस्पताल में कोरोना के 45 बेड थे। इसके बावजूद 96 मरीजों के भर्ती होने की बात स्वयं संचालक ने अपने वायरल वीडियो में की है। कोरोना की पहली लहर के दौरान अप्रैल 2020 में पारस अस्पताल के संचालक डॉ. अरिन्जय जैन और प्रबंधक के विरुद्ध डीएम प्रभु एन सिंह ने महामारी फैलाने के आरोप में मुक़दमा दर्ज कराया था। आरोप था कि अस्पताल ने बिना प्रशासन को सूचित किए कोरोना मरीज भर्ती किए। फिर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया। इससे 10 ज़िलों में संक्रमण फैला था। अस्पताल में दस महीने तक कोविड मरीज भर्ती पर रोक लगी रही। फिर शासन स्तर से एक जनप्रतिनिधि की पैरवी पर मुक़दमा ख़त्म हो गया। अप्रैल, 2021 में दोबारा पारस अस्पताल को कोविड मरीज भर्ती करने की अनुमति मिल गई। प्रश्न यह है कि कोरोना की पहली 'वेव' में संक्रमण फैलाने पर पारस हॉस्पिटल पर लगाई गई सील किसके आदेश पर खोली गई? 
इतना ही नहीं, संक्रमण फैलाने पर डॉ. अरिंजय जैन के ख़िलाफ़ की गयी क़ानूनी कार्रवाई वापस क्यों ले ली गई? क्यों और किसके आदेश से पारस हॉस्पिल को दूसरी 'वेव' में कोविड हॉस्पिटल घोषित किया गया?

इस बार भी अस्पताल के मामले को दबा दिया जाता यदि स्थानीय लोग बड़े पैमाने पर उत्पात न करते। इतना ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने लगातार सोशल मिडिया पर 2 दिन जम कर अभियान चलाया। दुःख की बात यह है कि न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, न भाजपा के किसी शीर्ष नेता और न ही स्थानीय भाजपा सांसद (संख्या में 2) और भाजपा विधायकों (संख्या में 9) ने इस समूचे नरसंहार की आलोचना में दो शब्द कहने की कोई ज़रूरत महसूस की।   

यूपी में मेडिकल माफिया का ज़ोर चरम पर है। किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, इस माफिया से अटकने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता। पर्यटन स्थली होने के चलते आगरा इसमें और भी विशिष्ट स्थान रखता है। 'मेडिकल टूरिज़्म' का यहाँ ज़बरदस्त दौर साल भर चलता रहता है। विदेशों से आने वाले टूरिस्ट अपनी बीमा कम्पनी के खर्चे से मन माँगे बिलों पर अपना इलाज (और बचत) कारवाने में सक्षम हैं, पर्यटन तो इस बहाने मुफ़्त में हो ही जाता है। कोरोना काल में  विदेशियों की आवाजाही कमज़ोर पड़ी तो इस मेडिकल माफिया ने कोरोना के पाँव पकड़ कर स्वदेशियों का ही कचूमड़ बना डाला। प्रशासन भी इसमें बराबरी का साझीदार होता है।

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