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फ़ोटो साभार: ट्विटर/बीएसएफ़

यह सुरक्षा बलों का राजनीतिकरण नहीं तो और क्या है?

विपक्ष शासित राज्य सरकारों को अस्थिर या परेशान करने के लिए राज्यपाल, चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) आदि संस्थाओं और केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग तो केंद्र सरकार द्वारा पिछले छह-सात सालों से समय-समय पर किया ही जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से इस सिलसिले में केंद्रीय सुरक्षा बलों का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है। इस सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक नए आदेश के ज़रिए पंजाब और पश्चिम बंगाल में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) द्वारा तलाशी और गिरफ्तारी करने के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया है।

पहले बीएसएफ़ के ये अधिकार इन सीमावर्ती राज्यों की सीमा के अंदर 15 किमी तक सीमित थे, वहीं अब इन्हें बढ़ा कर 50 किलोमीटर तक लागू कर दिया गया है।

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हालाँकि केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह आदेश असम में भी लागू होगा, जहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन इसी आदेश में बीजेपी शासित गुजरात में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को 80 किलोमीटर से घटा कर 50 किलोमीटर कर दिया है। ग़ौरतलब है कि गुजरात भी सीमावर्ती राज्य है और उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा अंतरराष्ट्रीय है तथा पाकिस्तान से लगी हुई है। इस लिहाज से वह भी संवेदनशील राज्य है और वहाँ हाल ही में अडानी उद्योग समूह के निजी मुंद्रा बंदरगाह पर 3000 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी। 

गुजरात की तरह राजस्थान भी पाकिस्तान की सीमा से लगा राज्य है और वहाँ पहले से बीएसएफ़ के अधिकार क्षेत्र 50 किलोमीटर तक है, जिसे नए आदेश में भी बरकरार रखा गया है। पूर्वोत्तर में मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के पूरे इलाक़े में बीएसएफ़ के अधिकार क्षेत्र को भी पहले की तरह बनाए रखा गया है।

पंजाब और पश्चिम बंगाल के संदर्भ में केंद्र सरकार के इस आदेश से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वह केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों का भी राजनीतिकरण नहीं कर रही है?

इसी साल पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठा था। उस चुनाव में केंद्रीय बलों की भारी संख्या में तैनाती और एक मतदान केंद्र पर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ़ के जवानों की फायरिंग में कई लोगों के मारे जाने की घटना की ख़ूब आलोचना हुई थी। चुनाव में तो बीजेपी नहीं जीत सकी थी लेकिन चुनाव के बाद उसने अपने जीते हुए सभी 75 उम्मीदवारों यानी विधायकों की सुरक्षा में सीआरपीएफ़ के जवान तैनात कर दिए थे। चुनाव के दौरान भी कई बीजेपी उम्मीदवारों और चुनाव से पहले बीजेपी में दूसरे दलों से आए कई नेताओं को सीआरपीएफ़ की सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। अर्ध सैनिक बलों के राजनीतिकरण की यह एक मिसाल थी।

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अब केंद्र सरकार सीमा सुरक्षा के नाम पर राज्यों में बीएसएफ़ की भूमिका बढ़ा रही है। इसीलिए पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले पर आपत्ति जताते हुए इसे देश के संघीय ढांचे को बिगाड़ने वाला राजनीति से प्रेरित क़दम क़रार दिया है। लेकिन लगता नहीं है कि सरकार अपने क़दम पीछे खिंचेगी। 

ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने पंजाब में राज्य सरकार और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के अंदरुनी विवादों का फ़ायदा उठाने के इरादे से राज्य में बीएसएफ़ की भूमिका बढ़ाई है।

bsf operational jurisdiction extension in border states controversy - Satya Hindi

पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगती है और इस वजह से सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक बीएसएफ़ की गश्त और चौकसी चलती है। लेकिन केंद्र सरकार ने इसे बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाए गए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी खुन्नस निकालने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया है। इस सिलसिले में वह मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद दिल्ली आकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले और केंद्र सरकार ने आनन-फानन में पंजाब और पश्चिम बंगाल में बीएसएफ़ की निगरानी का दायरा बढ़ाने का ऐलान कर दिया। ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार के साथ केंद्र का टकराव पहले से ही जारी है।

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सवाल यह भी उठता है कि सीमा पर बीएसएफ़ की जब 15 किलोमीटर तक सारी चौकसी के बावजूद पाकिस्तानी ड्रोन या हथियारों की आमद और नशीले पदार्थों की तस्करी नहीं रोक पा रही है तो 50 किलोमीटर तक कैसे रोकेगी? जाहिर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के ताज़ा आदेश का सीधा मक़सद राज्य की अंदरुनी सुरक्षा को नियंत्रित करना है। इससे देश का संघीय ढांचा गड़बड़ाएगा और राज्य की पुलिस के साथ केंद्रीय सुरक्षा बलों का टकराव भी बढ़ेगा। केंद्र सरकार ने कहने को और भी राज्यों में बीएसएफ़ की चौकसी का दायरा बढ़ाया-घटाया है लेकिन वह सब दिखावा है। असली मक़सद पंजाब और पश्चिम बंगाल में क्रमश: कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की सरकार को परेशान करना और उनके साथ टकराव बढ़ाना है।
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अनिल जैन

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