loader

बुर्क़ा और घूंघट, दोनों ही जाएँ

एक अच्छा मुसलमान बनने के लिए यह जरूरी नहीं है कि हर बात में अरबों की नकल की जाए। भारतीय मुसलमानों को इस मामले मे इंडोनेशिया के मुसलमानों को अपना आदर्श बनाना चाहिए। उनके नाम कैसे होते हैं? सुकर्ण, सुहृत, मेघावती आदि! वे रामायण और महाभारत की कथा करते हैं और उनके कथानकों पर मनोहारी नाटकों का आयोजन करते हैं। क्या वे हमारे या पाकिस्तानी मुसलमानों के मुक़ाबले घटिया मुसलमान हैं? 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

केरल की मुसलिम एजुकेशन सोसायटी ने श्रीलंका सरकार की ही तरह अपने यहाँ छात्राओं के बुर्क़ा पहनने पर रोक लगा दी है। उसने बुर्क़ा शब्द का प्रयोग नहीं किया है लेकिन कहा है कि छात्राएँ ऐसा कपड़ा न पहनें, जिससे उनका चेहरा छिप जाता हो। जाहिर है कि बुर्के़ में जो नक़ाब लगा होता है, वह चेहरे को बिल्कुल छिपा देता है। उसके होने पर यह जानना आसान नहीं रहता कि बुर्के़ के अंदर कौन है? वह आदमी है या औरत है? आतंकवादी इसी भ्रमजाल का फायदा उठाकर हमला कर देते हैं। 

ताज़ा ख़बरें

इस मुसलिम एजुकेशन सोसायटी के लगभग डेढ़ सौ स्कूल चलते हैं। ये भारत के साथ-साथ कई अरब देशों में भी हैं। इस संस्था ने अपने सभी स्कूलों के लिए यह नियम बनाया है। यह नियम बनाते समय इस संस्था ने केरल उच्च न्यायालय के पिछले साल के एक निर्णय को उद्धृत किया है, जिसमें कहा गया है कि ‘धर्म या आधुनिकता के नाम पर ऐसी वेश-भूषा को मान्यता नहीं दी जा सकती, जो समाज में स्वीकार्य नहीं है।’ यानी बिकिनी या बुर्क़ा, दोनों ही केरल के मलयाली स्कूलों में नहीं चल सकते। 

विचार से और ख़बरें
केरल के कई मुसलमान नेताओं ने माना है कि इस तरह की वेश-भूषा मलयाली सभ्यता के विरुद्ध है। मलयाली मुसलमान अरबों के नकलची क्यों बनें? इस बारे में मुझे यह कहना है कि एक अच्छा मुसलमान बनने के लिए यह जरूरी नहीं है कि हर बात में अरबों की नकल की जाए। भारतीय मुसलमानों को इस मामले मे इंडोनेशिया के मुसलमानों को अपना आदर्श बनाना चाहिए। उनके नाम कैसे होते हैं? सुकर्ण, सुहृत, मेघावती आदि! वे रामायण और महाभारत की कथा करते हैं और उनके कथानकों पर मनोहारी नाटकों का आयोजन करते हैं। क्या वे हमारे या पाकिस्तानी मुसलमानों के मुक़ाबले घटिया मुसलमान हैं? 
इंडोनेशिया में भी बुर्क़े पर प्रतिबंध है। वास्तव में अरबों का बुर्क़ा और भारतीय महिलाओं का घूंघट या पर्दा, दोनों ही नारी अपमान के प्रतीक हैं।

हिंदुओं की इस पर्दा-प्रथा का महर्षि दयानंद और आर्य समाज ने कड़ा विरोध किया था। मुसलमानों में ही कोई ऐसी समाज-सुधारक जमात पैदा क्यों नहीं होती? दाढ़ी, टोपी, बुर्क़ा, पाजामा, कुर्बानी, मांसाहार- ये ही इस्लाम नहीं हैं। असली इस्लाम तो एक अल्लाह में विश्वास है। बाकी सब बाहरी प्रपंच हैं, जैसे कि हिंदुओं में चोटी, जनेऊ, तिलक, छाप वग़ैरह हैं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें