loader

एक आंतरिक मामला या एक अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी?

देश की कुछ मशहूर हस्तियों और खेल सितारों को अगर ‘आंतरिक मामले’ और ‘अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी’ के बीच के बुनियादी अंतर को समझने की अच्छी क्षमता होती तो उनका स्टैंड इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कुछ और होता और वे आंतरिक मामले की आड़ में विश्व भर में उठ रही लोकतंत्र समर्थक आवाज़ों की आलोचना नहीं करते। 
डॉ. अजय कुमार

मुझे हाल ही में दुनिया के महानतम क्रिकेटर सर डोनाल्ड ब्रैडमैन के बारे में एक दिलचस्प क़िस्सा सुनने का मौक़ा मिला। लेकिन, यह क़िस्सा 'द डॉन' की महान बल्लेबाज़ी से संबंधित नहीं बल्कि एक खेल प्रशासक के रूप में ब्रैडमैन के अद्भुत निर्णय से संबंधित है। बात 1971-72 की है। दक्षिण अफ़्रीका की टेस्ट क्रिकेट टीम का ऑस्ट्रेलिया का दौरा प्रस्तावित था। सर डोनाल्ड ब्रैडमैन के सामने एक बहुत बड़ा सवाल यह था कि क्या ऑस्ट्रेलिया दौरे पर आने वाली रंगभेदी दक्षिण अफ़्रीका की टेस्ट क्रिकेट टीम पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। 

शुरू में ब्रैडमैन का विचार था कि खेल और राजनीति को अलग रखा जाना चाहिए और टेस्ट सीरीज़ को शेड्यूल के अनुसार आगे बढ़ने देना चाहिए। लेकिन ब्रैडमैन ने क्षणिक भावनाओं में बहकर आसान निर्णय लेने के बजाय मुद्दे की तह में जाने के लिए दक्षिण अफ़्रीका की यात्रा की तथा तत्कालीन दक्षिण अफ़्रीकी प्रधानमंत्री जॉन वर्स्टर से मिले। प्रधानमंत्री जॉन वर्स्टर हिटलर के प्रशंसक थे। 

ताज़ा ख़बरें

क़िस्से के अनुसार, जब ब्रैडमैन ने दक्षिण अफ़्रीकी प्रधानमंत्री जॉन वर्स्टर से पूछा कि दक्षिण अफ़्रीका में अश्वेत समुदाय को अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौक़ा क्यों नहीं मिलता है?  वर्स्टर ने ब्रैडमैन को उत्तर दिया कि अश्वेत समुदाय के लोग बौद्धिक रूप से हीन थे और क्रिकेट की पेंचीदगियों का सामना करने की क्षमता उनमें नहीं थी। जवाब में ब्रैडमैन ने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री महोदय ने गैरी सोबर्स के बारे में सुना है? सोबर्स को निर्विवाद रूप से क्रिकेट के मौजूदा इतिहास का सबसे बड़ा ऑलराउंडर माना जाता है। 

इस यात्रा ने ब्रैडमैन पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया लौटकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दौरे को रद्द करने की घोषणा की, जिसमें कहा गया था -’हम (ऑस्ट्रेलिया) उनके (दक्षिण अफ्रीका) साथ  तब तक नहीं खेलेंगे, जब तक कि वे ग़ैर-नस्लीय आधार पर एक टीम नहीं चुनते।’ 1986 में जब ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रमंडल देशों के एक प्रतिनिधिमंडल ने जेल में नेल्सन मंडेला से मुलाक़ात की तो ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री से मंडेला का पहला सवाल था - ‘क्या डॉन ब्रैडमैन अभी भी जीवित हैं?’

पिछले सप्ताह हमने भारत की कुछ खेल हस्तियों और मशहूर हस्तियों को एक ऐसे विषय पर अपनी राय रखते देखा है, जिसने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है और देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, बीजेपी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का विरोध प्रदर्शन क़रीब 3 महीने से चल रहा है। हज़ारों की संख्या में उत्तर भारत के किसानों ने भीषण ठंड और लगातार हो रही मौतों के बीच अपना आन्दोलन ज़िंन्दा रखा है। ये किसान मानते हैं कि ये कृषि क़ानून भारतीय किसानों को पूरी तरह तबाह कर देंगे।

अपने ही देश के इन किसानों के ख़िलाफ़ सरकार युद्ध जैसी तैयारी कर रही है। सरकार ने दिल्ली के चारों ओर बैरिकेड्स, कीलें और कँटीले तार बिछा दिए हैं। प्रभावित क्षेत्रों में इन्टरनेट सेवाएँ बंद कर दी गई हैं।

आज ‘विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र’ की राजधानी की सीमाएँ किसी युद्धग्रस्त राज्य की सीमाओं की तरह तनावपूर्ण दिखती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, जिन्होंने कभी ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था आज हतप्रभ होंगे कि आज किस प्रकार जवानों को किसानों के सामने संगीन लेकर खड़ा कर दिया गया है।

celebrities tweets after rihanna on farmers protest attracts criticism against bjp - Satya Hindi

ये तीनों कुख्यात कृषि क़ानून किसानों के हाथ से भोजन की थाली झपट कर भोजन को देश के बड़े औद्योगिक घरानों के परोसने वाले क़ानून हैं। सरकार के इस निर्णय के ख़िलाफ़ देश भर में बहस और आन्दोलन चल रहे हैं। लेकिन, आज मैं जिस विषय पर चर्चा करना चाहता हूँ, वह विषय विश्व की कुछ नामचीन हस्तियों द्वारा इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आन्दोलन से निबटने में सरकार द्वारा उठाये गए फासीवादी क़दमों की आलोचना से जुड़ा हुआ है।

हाल ही में एक प्रसिद्ध कलाकार रियाना (रिहाना) ने किसानों के ख़िलाफ़ भारत सरकार की कार्रवाई के बारे में सीएनएन के एक लेख को ट्वीट किया। जिसकी प्रतिक्रिया में बीजेपी की हेडलाइन प्रबंधन टीम ने रियाना के ख़िलाफ़ आक्रमक रूप से एक व्यापक प्रोपेगेंडा युद्ध शुरू कर दिया।

कितने दुर्भाग्य की बात है कि पिछले कुछ हफ्तों से मानवाधिकारों के बारे में बात करते हुए भारत को म्यांमार के समकक्ष उद्धृत किया जा रहा है, जहाँ पिछले सप्ताह सैन्य तख्तापलट हुआ था।

हमारे देश में लोकतांत्रिक मूल्यों के गिरते स्तर पर क्षोभ करने वालों में सिर्फ़ सेलिब्रिटी ही नहीं हैं जिन्हें भारत सरकार ने ‘अज्ञानी’ कहकर खारिज कर दिया है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय भी शामिल है, जिसने ट्वीट किया है कि ‘शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के अधिकार को ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों स्थानों पर संरक्षित किया जाना चाहिए।’ उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित इस संगठन को, जिसके नाम में ही ‘मानवाधिकार’ शब्द शामिल है; बीजेपी द्वारा ‘अज्ञानी’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।

celebrities tweets after rihanna on farmers protest attracts criticism against bjp - Satya Hindi

इन अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को भले सरकार द्वारा एक रणनीति के तहत एक झटके से ख़ारिज कर दिया गया हो लेकिन, देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों में आ रही लगातार गिरावट के मद्देनज़र  अंतराष्ट्रीय चिंताओं को सरकार नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। सरकार ने कहा है कि कृषि क़ानून एक आंतरिक मामला है तथा कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ टिप्पणी करने वाली अंतराष्ट्रीय हस्तियों को मुद्दों की सही समझ नहीं है। सरकार ने यह भी कहा है कि ये क़ानून संसद में पूरी बहस और चर्चा के बाद पारित किये गए हैं। 

इनमें से कोई भी सरकारी दावा सही नहीं है। पहली बात, सरकार ने तीन कृषि क़ानूनों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार पारित नहीं किया है। राज्य सभा का रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इन कृषि बिलों को पूरी तरह से असंवैधानिक तरीक़े से पारित किया गया था जिसमें ‘लोकतान्त्रिक और संवैधानिक मूल्यों’ का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया गया था।

मानवाधिकार एक मौलिक, अंतर्निहित और आंतरिक मानव अधिकार है जो प्रत्येक मनुष्य को इस तथ्य के आधार पर दिया जाता है कि वह मानव हैं। ये अधिकार हमें किसी सरकार द्वारा नहीं दिए गए हैं और इसलिए इसे केवल आंतरिक मामला कहकर सरकार द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता है। हम यह नहीं कह सकते कि दहेज की माँग करना ‘दो परिवारों के बीच एक आंतरिक मामला’ है, या घरेलू हिंसा ‘पति और पत्नी के बीच का आंतरिक मामला’ है। कुछ चीजें ऐसी हैं जो मूलभूत स्तर पर ग़लत हैं। अगर भारत सरकार आन्दोलनरत प्रदर्शनकारियों को पुलिस के डंडों या झूठे मुक़दमों से दबाने करने का प्रयास करेगी अथवा देश की राजधानी दिल्ली से उठ रहीं असहमति की आवाज़ों को खामोश करने के लिए इंटरनेट बंद करेगी तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना और शर्मिंदगी का सामना करना ही पड़ेगा। सरकार इन्हें आंतरिक मामला कह कर अंतराष्ट्रीय आवाज़ों को बंद नहीं कर सकती।

वीडियो चर्चा में देखिए, किसान आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश?

दुनिया भर में अश्वेत लोगों के हितों की रक्षा के लिए चलाये जाने वाले ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के पक्ष में कई भारतीय हस्तियों ने समय-समय पर सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ बुलंद की है।

इसी प्रकार कैपिटल हिल में हुए हिंसक प्रदर्शन की प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ट्विटर पर आलोचना की गई थी। चूँकि इस तरह की घटनाएँ लोकतंत्र पर एक काला धब्बा हैं और अंतरराष्ट्रीय बहस और जाँच का विषय हैं इसीलिए इनकी टिप्पणियों का स्वागत किया गया था।

देश की कुछ मशहूर हस्तियों और खेल सितारों को (जिन्हें अब शायद हीरो कहना सटीक नहीं होगा) अगर ‘आंतरिक मामले’ और ‘अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी’ के बीच के बुनियादी अंतर को समझने की अच्छी क्षमता होती तो उनका स्टैंड इन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कुछ और होता और वे आंतरिक मामले की आड़ में विश्व भर में उठ रही लोकतंत्र समर्थक आवाज़ों की आलोचना नहीं करते। 

हम भारत के लोग किसानों के आन्दोलन के मुद्दे पर समर्थन या विरोध के जिस स्थान पर खड़े हैं, वह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे नैतिक मूल्य कितने पुख्ता और परिपक्व हैं। अब जबकि हर कोई ब्रैडमैन बनना चाहता है, ब्रैडमैन के मामले की तरह ही इतिहास अंतिम न्यायाधीश होगा। लेकिन आने वाला समय यह भी बताएगा कि वास्तव में मौजूदा समय का जॉन वर्स्टर कौन है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
डॉ. अजय कुमार

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें