21 दिन का लॉकडाउन पार्ट 1 ख़त्म हो गया है और 19 दिन का लॉकडाउन पार्ट 2 शुरू हो चुका है। हमारा देश दुनिया के सबसे लंबी अवधि वाले लॉकडाउन से गुजर रहा है। देश में जब लॉकडाउन घोषित किया गया था उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर बहुत सारे संगठनों ने इस क़दम की सराहना की थी। लॉकडाउन को लेकर केंद्र सरकार का दावा था कि इसके ज़रिए वह संक्रमण की चेन को रोक देगी।
यही नहीं, आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च) की स्टडी में दावा किया गया था कि आइसोलेशन, लॉकडाउन जैसे क़दम उठाकर भारत कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या 62 फीसदी से 89 फीसदी तक कम कर सकता है।
सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन से हमारी केंद्र व राज्य सरकारों ने वह हासिल कर लिया जिसके दावे किए गए थे? या लॉकडाउन के बाद एक और लॉकडाउन करके ही कोरोना वायरस पर विजय पाने की बात केंद्र व राज्य सरकारों ने सोच रखी है?
24 मार्च को जब भारत में लॉकडाउन पार्ट वन घोषित किया गया, उस समय कोरोना संक्रमितों की संख्या करीब 590 थी और इसके पूरे होने तक यह आंकड़ा 11400 के पार पहुंच गया है। भारत ही नहीं, दुनिया में चीन समेत दर्जनों देशों ने कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन को एक महत्वपूर्ण हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है।
हमारी सरकारों ने क्या किया?
लॉकडाउन की अवधि में दुनिया के बाक़ी देशों में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण से जुड़ी जांचें की गईं और संभावित ख़तरे से निपटने के लिए आईसीयू, वेंटिलेटर्स, पीपीई, जांच किट, मास्क आदि की सुविधा को बढ़ाया गया। लेकिन जिस तरह की ख़बरें हमारे देश में छपी हैं, उनसे एक बात यह सामने आ रही है कि 21 दिन का लॉकडाउन ख़त्म होने तक हमारे देश में केंद्र व राज्य सरकारें इस मोर्चे पर मजबूती से खड़ी दिखाई नहीं दे रही हैं। अधिक से अधिक जांच भी अभी तक पहेली बनी हुई है।
राज्य सरकारें कोरोना से लड़ने की सामग्री को लेकर केंद्र पर आश्रित बैठी हैं और केंद्र को अभी भी चीन से मास्क, पीपीई और जांच किट आने का इंतज़ार है।
कब आएंगी किट?
आईसीएमआर के अधिकारी हर प्रेस कॉन्फ्रेन्स में यह कहते हुए दिखते हैं कि हमारे पास किट की कमी नहीं है और विदेश से एक-दो दिन में आपूर्ति आने वाली है। अगर यह सही है तो केरल और महाराष्ट्र को क्यों पीपीई, जांच किट और मास्क के लिए अपने स्तर पर क़दम उठाने को बाध्य होना पड़ा है। केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को हिदायत भी दी हुई है कि वे अपने स्तर पर इस प्रकार की सामग्री नहीं खरीदें, ऐसे में राज्य आख़िर कब तक इंतजार करें।
दवाइयों की होगी भारी कमी!
लॉकडाउन पार्ट 1 के दौरान केंद्र सरकार कितनी तैयार हुई, इसका उदाहरण 11 अप्रैल को ‘द हिंदू’ अख़बार में प्रकाशित एक रिपोर्ट से मिलता है। रिपोर्ट के मुताबिक़, ‘फ़ार्मास्युटिकल विभाग ने गृह मंत्रालय को चेताया है कि आने वाले दिनों में देशभर में दवाइयों और मेडिकल उपकरणों की भारी कमी होगी। विभाग ने दवा निर्माताओं को मौजूदा लॉकडाउन के बीच ही उत्पादन शुरू करने के उपाय किए जाने और अनुमति देने का आग्रह गृह विभाग से किया है।’
आधे वेंटिलेटर बेकार!
फ़ार्मा सचिव पी.डी. वाघेला ने 9 अप्रैल को गृह सचिव अजय भल्ला को भेजे अपने संदेश में कहा है कि विभिन्न उद्योगों से मिले फ़ीडबैक के मुताबिक़, दवा और मेडिकल उपकरण बनाने वाले निर्माता अपनी क्षमता का सिर्फ 20 से 30 फीसदी ही उत्पादन कर पा रहे हैं। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों की एक बैठक में यह पता चला है कि संभवतः भारत के मौजूदा 40 हज़ार वेंटिलेटर में से आधे स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण काम नहीं कर रहे थे।
कम हो रही हैं जांच
क्या लॉकडाउन की वजह से कोरोना के संक्रमण की रफ़्तार कम हुई है या उसकी गति थमी है? आंकड़ों को देखकर यह भी संतोषजनक नहीं दिखाई दे रहा। 21 दिन के लॉकडाउन में यह आंकड़ा 590 से 11400 तक पहुंच गया है। हमारे देश में दुनिया के बहुत से देशों के मुक़ाबले जांच कम हो रही हैं, इसलिए भी यह शक पैदा करता है कि कोरोना को लेकर यथार्थ तसवीर क्या है।
कब तक क़ैद रखेंगे मजदूरों को?
ऐसे में मुंबई के बांद्रा में ट्रेन चलने की अफ़वाह पर हजारों लोगों का एकत्र हो जाना या सूरत में प्रवासी मजदूरों का घर जाने की मांग को लेकर हंगामा करना कुछ और भी संकेत दे रहा है। मजदूरों को किसी किस्म की कोई मदद या राहत नहीं देकर उन्हें कितने दिन तक घरों में क़ैद रखा जा सकता है, यह भी बड़ा सवाल उभर कर सामने आ रहा है।
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