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पेड़ काटेंगे, जानवर मारेंगे तो कोरोना से महातबाही तो होगी!

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार वर्ष 1960 के बाद से पनपी नई बीमारियों और रोगों में से तीन-चौथाई से अधिक का संबंध जानवरों, पक्षियों या पशुओं से है, और यह सब प्राकृतिक क्षेत्रों के विनाश के कारण हो रहा है। नवंबर से दुनिया भर में फैल रहे कोरोना वायरस के लिए भी यही कहा जा रहा है। दरअसल, दुनियाभर में प्राकृतिक संसाधनों का विनाश किया जा रहा है और जंगली पशुओं व पक्षियों की तस्करी बढ़ रही है।  

घने जंगलों में तमाम तरह के अज्ञात वैक्टीरिया और वायरस पनपते हैं, और जब जंगल नष्ट होते हैं तब ये वायरस मनुष्यों में पनपने लगते हैं। इनमें से अधिकतर का असर हमें नहीं मालूम पर जब सार्स, मर्स या फिर कोरोना जैसे वायरस दुनिया भर में तबाही मचाते हैं, तब ऐसे वायरसों का असर समझ में आता है।

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इसी को ध्यान में रखकर अब वैज्ञानिक पूरे पृथ्वी के स्वास्थ्य की बात करने लगे हैं। कोरोना की उत्पत्ति का केंद्र चीन के जिस वुहान शहर के मांस के बाज़ार को बताया जा रहा है, वहाँ तस्करी के जंगली जानवरों का बहुत बड़ा कारोबार किया जाता था। इस कारोबार को चीन सरकार ने नवंबर के बाद प्रतिबंधित कर दिया है। अनुमान है कि इन्हीं वन्य जीवों से यह वायरस पहले चीन में और अब पूरी दुनिया में फैल गया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के सम्पादकीय पृष्ठ पर अपने लेख में डेविड कुंममें ने लिखा है, हम पेड़ काट रहे हैं, हम जानवरों को मार रहे हैं या फिर इन्हें पिंजरे में डाल कर बाज़ार में बेच रहे हैं– इससे हम पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं और विभिन्न वायरस को प्रभावित कर रहे हैं। हम उसे उसके परंपरागत होस्ट से अलग कर रहे हैं, इन्हें नया होस्ट चाहिए और अधिकतर मामलों में यह मनुष्य होता है जो पृथ्वी पर हरेक जगह है। 

वर्ष 1996 में गबोन नामक अफ्रीकी देश में कुछ बच्चे शिकारी कुत्तों के साथ जंगल गए, जहाँ कुत्तों ने एक चिम्पांजी को मार डाला। बच्चे मरे चिम्पांजी को उठा लाए और फिर पूरे गाँव में इसके मांस की दावत दी गई। इस मांस को साफ़ करने वाले, काटने वाले, पकाने वाले और बाद में खाने वाले सभी लोगों को एक नया और रहस्यमय रोग हो गया और बड़ी आबादी इससे मर गयी। अनुसंधान के बाद दुनिया को यह पता चला कि इसका कारण चिम्पांजी में पनपने वाला ‘एबोला’ वायरस था। मध्य-पूर्व में ऊँटों से ‘मर्स’ वायरस फैला था। नाइजीरिया से ‘लस्स’ फीवर, मलेशिया से ‘निपाह’ वायरस, चीन से ‘सार्स’ वायरस और अफ्रीका से ‘जिका’ और ‘वेस्ट नाइल’ वायरस पनपे। कोरोना वायरस भी इसी श्रेणी में आता है जिसकी उत्पत्ति चीन से हुई।

दूसरी तरफ़ जिन देशों में कोरोना का कहर अत्यधिक तेज़ी से बढ़ा या बढ़ रहा है, वहाँ की सरकारों ने पूरे देश को या फिर चुनिंदा शहरों को लॉकडाउन कर दिया।

ऐसी स्थिति में जब लोगों को घर से बाहर निकलने को मन किया तब बाज़ार और उद्योग भी बंद हो गए और सड़कें सूनी हो गयीं। ज़ाहिर है जब गतिविधियाँ कम हो गयीं तब वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण के स्रोत भी कम हो गए।

अनेक अध्ययनों के अनुसार चीन, इटली और अमेरिका के अनेक शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में 25 से 40 प्रतिशत तक की कमी आँकी गयी। चीन की कुछ नदियों और इटली के वेनिस की नहरों का पानी अपेक्षाकृत साफ़ हो गया। हमारे देश के भी अनेक शहरों में इसका असर दीखने लगा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन शहरों में वायु प्रदूषण में आती कमी से इतना तो समझा जा सकता है कि हम अपनी सामान्य ज़िंदगी से किस कदर प्रदूषण फैलाते हैं। कोई भी वैज्ञानिक कोरोना के कहर को फ़ायदेमंद नहीं कहेगा पर इसका यह फायदा तो स्पष्ट है।

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प्रदूषण वाले क्षेत्रों में ख़तरा ज़्यादा

इटली के कैग्लिआरि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक दल के अनुसार कोरोना सरीखे वायरस के संक्रमण से ग्रस्त लोग यदि अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं तो उनके मरने की संभावनाएँ बढ़ जातीं हैं। वायु प्रदूषण से फेफड़े और हृदय सबसे अधिक प्रभावित होते हैं और कोरोना वायरस भी फेफड़े को ही सबसे पहले जकड़ता है। 

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वैज्ञानिक सारा डेमत्तिएस के अनुसार अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले इसके मरीज की इस रोग से लड़ने की क्षमता अपेक्षाकृत कम रहती है। ऐसा पहले भी देखा गया है। वर्ष 2003 में जब चीन से सार्स वायरस फैला था, तब वायु प्रदूषण के संदर्भ में अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में मृत्यु दर कम प्रदूषित क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक थी। सऊदी अरब में जब 2012 में मर्स वायरस फैला तब अधिकतर मरने वाले वे थे जो नियमित धूम्रपान करते थे। हार्वर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिक आरोन बेर्नस्तें के अनुसार आजकल फैले कोरोना वायरस के प्रभाव से भी धूम्रपान करने वाले और अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले अधिक प्रभावित होंगे।
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महेंद्र पाण्डेय

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